गांव का चौपाल हो या शहरों की लगातार ऊंची उठती मीनारें, नन्हीं-मुन्नी गौरैया अब कम दिख रही हैं. अधिकांश शहरों में तो यह पक्षी प्रायः लुप्त हो चुकी है. कभी हर घर की सदस्य सी लगने वाली गौरैया आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. भारत ही नहीं बल्कि युरोप और ब्रिटेन में भी यह खत्म होने की कगार पर है. इसकी संरक्षा के लिए ही हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस का आयोजन किया जाता है, ताकि इनके अस्तित्व को बचाया जा सके.
भारत के प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल, दिल्ली एवं दक्षिण भारतीय भू भाग पर गौरैयों की कम होती संख्या आज सभी के लिए चिंता का सबब बन चुकी है. इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के सर्वे की बात करें तो आंध्र प्रदेश में गौरैयों की संख्या 80 फीसदी तो केरल, गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में करीब 40 प्रतिशत कम हुई
गांव का चौपाल हो या शहरों की लगातार ऊंची उठती मीनारें, नन्हीं-मुन्नी गौरैया अब कम दिख रही हैं. अधिकांश शहरों में तो यह पक्षी प्रायः लुप्त हो चुकी है. कभी हर घर की सदस्य सी लगने वाली गौरैया आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. भारत ही नहीं बल्कि युरोप और ब्रिटेन में भी यह खत्म होने की कगार पर है. इसकी संरक्षा के लिए ही हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस का आयोजन किया जाता है, ताकि इनके अस्तित्व को बचाया जा सके.
भारत के प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल, दिल्ली एवं दक्षिण भारतीय भू भाग पर गौरैयों की कम होती संख्या आज सभी के लिए चिंता का सबब बन चुकी है. इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के सर्वे की बात करें तो आंध्र प्रदेश में गौरैयों की संख्या 80 फीसदी तो केरल, गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में करीब 40 प्रतिशत कम हुई