Know your world in 60 words - Read News in just 1 minute
हॉट टोपिक
Select the content to hear the Audio

Added on : 2023-04-30 10:08:09

 

राकेश दुबे

देश के राज्यों में आजकल बाहुबलियों के ही किस्से चल रहे हैं, चाहे वह अतीक अहमद हो, मुख्तार अंसारी हो या फिर पंजाब की जेल में बन्द लारेंस बिश्नोई हो । लारेंस बिश्नोई की ख़ूबी यह है कि वह जेल में होने के बावजूद अपने वीडियो बना कर बाहुबली होने का प्रमाण देता रहता है। हर सरकार का बाहुबलियों से निपटने का अपना-अपना तरीका है। पंजाब सरकार का अपना है, उत्तर प्रदेश सरकार और मध्यप्रदेश का अपना है। मध्यप्रदेश में ज्योतिरदित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में शामिल हुए पूर्व विधायक रघुराज सिंह कंसना के ख़िलाफ़ सभी मुक़दमें ख़त्म कर दिए जाने की खबर है, उनपर मुरैना में डकैती, हत्या के प्रयास और 

अपहरण जैसे गंभीर अपराधों को लेकर कई मामले दर्ज थे ।

मध्य प्रदेश में भी पिछले हफ्ते राज्य के गृह विभाग की मंजूरी के बाद आपराधिक मामलों को खत्म कर दिया गया है ।

बिहार के गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की 1994 में हत्या के दोषी आनंद मोहन सिंह की रिहाई पर सियासी घमासान उठा हुआ है ।

मध्यप्रदेश के पूर्व विधायक रघुराज सिंह कंसाना पर कई मामलों में आरोप लगे थे। 2012 में उन पर मुरैना में डकैती, हत्या के प्रयास और अपहरण जैसे गंभीर अपराधों का आरोप लगा थे 2018 में रघुराज सिंह को कांग्रेस विधायक के रूप में चुना गया था। इसके कुछ ही समय बाद कमलनाथ सरकार ने उनके खिलाफ मामलों को खारिज करने का प्रयास किया, लेकिन कानून विभाग ने इनकार कर दिया कि आरोप हटाए जाने के लिए बहुत गंभीर हैं।2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हो गए थे ।

पिछले हफ्ते गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने गृह मंत्री को एक प्रस्ताव भेजा था, जिसमें कहा गया था, ‘मुकदमा वापसी के लिए विभागीय सहमति पर विचार करने के लिए उचित आदेश के लिए मामला प्रस्तुत किया गया है।19 अप्रैल को मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने रघुराज सिंह कंसाना के खिलाफ आपराधिक मुकदमा हटाने का फैसला किया। अगर भविष्य में राजनीतिक कारणों से गंभीर किस्म के अपराधों को लेकर इस तरह के निर्णय हुए कानून का राज स्थापित करने का सपना भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। सारे देश में कानून का सख्ती से पालन होना चाहिए और राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

समस्या गहरी है । उदाहरण के एक बाहुबली शहाबुद्दीन की तो अरसे पहले जेल में ही मौत हो गई थी। छोटे मोटे बाहुबलियों से काम चलने वाला नहीं था। आखिर उत्तर प्रदेश का अतीक और मुख्तार अंसारी, पंजाब का लारेंस बिश्नोई तो बिहार का भी उसी टक्कर का हो नीतीश कुमार सारे काम धंधे छोड़ कर इसी काम में लग गए। खोजबीन शुरू हुई तो पुराने साथियों की सूचियां निकाली गईं। अतीक अहमद लोकसभा का सदस्य तक रह चुका था। तो नीतीश कुमार का बाहुबली भी उसी स्तर का होना चाहिए। सारे पैरामीटर चैक किए गए तो आनन्द मोहन नम्बर का नाम एक नम्बर पर आया। उसने तो अपने साथियों समेत गोपालगंज के जिलाधीश की ही उसकी सरकारी गाड़ी से खींच कर सार्वजनिक रूप से हत्या कर दी थी। जिलाधीश अनुसूचित जाति के थे। युवा थे। उत्साह में रहते थे। वैसे यह भी कहा जाता है कि आनन्द मोहन मारना किसी दूसरे जिलाधीश को चाहते थे लेकिन पकड़ में चन्द्रशेखर आ गए। गवाह इत्यादि को पकडऩे पकड़ाने के बाद भी आनन्द मोहन को फांसी की सजा हो गई। अब आनन्द मोहन का क़िस्सा चर्चा में है।राजनीतिज्ञों का काम बाहुबलियों के बिना चलता नहीं। अपनी अपनी जरूरतों का सवाल है। कानून कहता है कि हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में आजीवन कारावास का अर्थ अन्तिम सांस तक जेल में ही रहना होता है, परन्तु ऐसा नहीं होता राजनीति जो करे सो कम है।

नई व्याख्या के अनुसार आगे हत्या और बलात्कार जैसे अपराध अब से जघन्य अपराध नहीं माने जाएंगे। इस प्रकार के अपराधी भी चौदह-पन्द्रह साल की जेल काट लेंगे तो उसे आजीवन कारावास ही मान लिया जाएगा। इस नई व्याख्या के अनुसार आनन्द मोहन जेल से बाहर आ गए। वैसे भी अतीक अहमद के चले जाने के बाद बहुत बड़ा शून्य आ गया था। इन मामलों में कांग्रेस, वामपंथी व अन्य सभी खड़े नजर आ रहे हैं। सवाल है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं?

आज की बात

हेडलाइंस

अच्छी खबर

शर्मनाक

भारत

दुनिया