राजेश बादल
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाज़ा आसिफ़ के एक बयान ने सारे संसार में भारत के इस पड़ोसी का क्रूर और स्याह चेहरा एक बार फिर उजाग़र कर दिया है। यह ताज्जुब की बात है कि जब समूची मानवता आतंकवाद को कलंक मानकर उससे तौबा कर रही है ,तब एक मुल्क़ छाती ठोक कर बेशर्मी से कहता है कि हाँ ! हमने आतंकवाद को पाला पोसा है। वह भी साल दो साल नहीं ,बल्कि दशकों तक। यूरोप और पश्चिमी पढ़े लिखे देशों का यह कैसा रवैया है कि वे इस कबूलनामें के बाद भी न पाकिस्तान से संपर्क तोड़ रहे हैं और न उसे अलग थलग कर रहे हैं। चार पांच दिन पहले बरतानवी अख़बार द स्काई को ख़्वाजा आसिफ़ ने साफ़ साफ़ कहा कि उनका राष्ट्र अमेरिका तथा पश्चिमी देशों के लिए यह गंदा धंधा करता आया है । इन देशों ने अपने स्वार्थों के चलते पाकिस्तान का इस्तेमाल किया है । उग्रवाद को समर्थन देना या आतंकवादियों को प्रशिक्षण देना पाकिस्तान की भयंकर भूल थी ।इस भूल का दंड आज पाकिस्तान भुगत रहा है । एक परमाणु संपन्न देश के रक्षामंत्री का यह खुलासा कोई नया नहीं है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि अमेरिका और अन्य गोरे देशों ने पाकिस्तान का उपयोग आतंकवाद को पालने पोसने के लिए किया है, उसको मोहरा बनाया है इसलिए यह सारे मुल्क़ आज चुप बैठे हैं । उनकी दोहरी विदेश नीति की कलई खुल गई है ।भारत के लिए निश्चित रूप से ऐसी नीतियाँ बड़े झटके से कम नहीं हैं और यह निष्कर्ष निकालने के लिए काफी हैं कि भारत उनके लिए एक खुले बाज़ार से कम नहीं है।
मगर, यह कोई पहली बार नहीं है ,जब इस शैतानी देश ने खुल्लमखुल्ला स्वीकार किया है कि आतंकवाद को समर्थन देना उसकी सरकारी नीति रही है और रहेगी । जो करना हो सो कर लो। आपको याद है कि क़रीब छह साल पहले 24 जुलाई 2019 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अमेरिका में यही हक़ीक़त बयान की थी ।उन्होंने वाशिंगटन में अमेरिका के शांति प्रतिष्ठान में अपना भाषण दिया था ।इसमें उन्होंने मंज़ूर किया था कि पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी समूह जम्मू-कश्मीर में हमले करते रहे हैं। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तानी आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद भारत के खिलाफ काम कर रहा है।ये आतंकवादी प्रशिक्षित हैं। उन्हें कश्मीर में हमले करने का अनुभव है, इसलिए पाकिस्तान पुलिस उन्हें संभाल नहीं सकती। इमरान ख़ान ने कहा था, " भारत के पुलवामा में हमले से पहले ही हमने फ़ैसला लिया था कि हम पाकिस्तान में सभी आतंकवादी समूहों को निरस्त्र और अलग थलग कर देंगे। यह पाकिस्तान के हित में होगा । मैं दोहराता हूं कि यह हमारे हित में है क्योंकि पाकिस्तान आतंकवादी समूहों से तंग आ चुका है "। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान में 40 आतंकवादी समूह सक्रिय थे। खान ने कहा, ‘‘हम आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई लड़ रहे थे। पाकिस्तान का 9/11 से कुछ लेना-देना नहीं था। अल-कायदा अफगानिस्तान में था। पाकिस्तान में कोई तालिबानी आतंकवादी नहीं था। लेकिन हम अमेरिका की लड़ाई में शामिल हुए। दुर्भाग्यवश जब चीजें गलत हुई तो हमने अमेरिका को कभी ज़मीनी हक़ीक़त से वाक़िफ नहीं कराया। इसके लिए मैं अपनी सरकार को जिम्मेदार ठहराता हूं।
कुछ और पीछे चलते हैं ।प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की सरकार के ख़िलाफ़ तख्ता पलट कर फ़ौजी तानाशाही क़ायम करने वाले जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने भी इमरान ख़ान के बयान से पहले ही खुल्लमखुल्ला कहा था कि उनके कार्यकाल के दौरान भारत में हमले के लिए जैश ए मोहम्मद का इस्तेमाल पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों ने किया था। इतना ही नहीं मुशर्रफ ने यह भी स्वीकार किया था कि जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा कश्मीर में हिंसा और सीमा पर तनाव का केंद्र बिंदु हैं ।कौन नहीं जानता कि कारगिल का छद्म युद्ध परवेज़ मुशर्रफ़ के दिमाग़ की उपज था। अब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के कथन की चर्चा करते हैं ।उन्होंने एक साक्षात्कार में स्पष्ट स्वीकार किया था कि कारगिल युद्ध उस परवेज मुशर्रफ की देन थी,जिसे उन्होंने ही सेनाध्यक्ष बनाया था। पाकिस्तान की इंटेलिजेंस हमेशा से ही भारत के विरुद्ध काम करती रही हैं।दो हज़ार एक में अमेरिकी विदेश मंत्री कॉलिन पॉवेल ने मुशर्रफ को धमकाया था कि पाकिस्तान या तो हमारे साथ होगा या हमारे खिलाफ़।इसके बाद मुशर्रफ ने ख़ुलासा किया था कि एक अन्य अमेरिकी अधिकारी ने धमकी दी थी कि अगर पाकिस्तान दूसरा विकल्प चुनता है तो वे उसे वापस पाषाण युग में ले जाएंगे।
पाकिस्तान के फौजी और सियासी लीडरों की तरफ़ से इस तरह के बयान और भी पहले आते रहे हैं।जनरल याह्या ख़ान ,जनरल जिया उल हक़ , ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो से लेकर बेनज़ीर भुट्टो तक सभी अलग अलग स्थितियों में इस तरह की स्वीकारोक्ति करते रहे हैं. पर ,अपने देश में आतंकवाद की फसल पर पाबंदी लगाने की दिशा में किसी ने पहल नहीं की। वे कर भी नहीं सकते थे क्योंकि वे सेना के दबाव में काम करते रहे। सिर्फ़ इमरान ख़ान इसका अपवाद इसलिए है कि उसे सत्ता में लाई तो फ़ौज ही थी ,पर जब उसकी फ़ौज से ठन गई तो फिर उसने मोर्चा खोल लिया। अब तक सेना इमरान को झुका नहीं पाई है। तो पाकिस्तानी स्वीकारोक्तियाँ अब चौंकाती नहीं हैं। अब विकसित गोरे राष्ट्रों पर आश्चर्य होता है ।अमेरिका पर ताज्जुब होता है कि वह पाकिस्तान को ऐसे बयानों पर फटकारता नहीं है। वह उसे पुचकारता रहता है ,जिससे चीन और रूस के ख़िलाफ़ सैनिक अड्डा बनाने की उसकी संभावनाएँ बनी रहें। हिन्दुस्तान के लिए इस रवैए में चेतावनी छिपी है।