Know your world in 60 words - Read News in just 1 minute
हॉट टोपिक
Select the content to hear the Audio

Added on : 2023-06-07 07:33:18

राकेश दुबे

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट यानी सीएसई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत में कृषि क्षेत्र से जुड़े 10881 लोगों ने आत्महत्याएं की हैं। इसका सीधा अर्थ यह है कि वर्ष 2021 में प्रतिदिन आत्महत्या करने वालों की संख्या तीस रही थी। भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिये  शर्मनाक है कि एक साल के भीतर दस हजार से ज्यादा किसान व खेतिहर श्रमिकों ने आत्मघाती कदम उठाये।मध्यप्रदेश इस अवधि में किसानों  की आत्महत्या  करने वाले प्रदेश में तीसरे स्थान पर था। 
उल्लेखनीय है कि इस एक साल में मरने वालों का आंकड़ा पांच वर्षों में सर्वाधिक रहा है। निश्चय ही यह चुनौतीपूर्ण समय था, जब देश विश्वव्यापी कोरोना संकट से जूझ रहा था तो  किसान केंद्र सरकार के तीन कृषि सुधारों के खिलाफ खड़े थे। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021 में सबसे अधिक आत्महत्या करने वाले किसानों व खेतिहर मजदूरों का आंकड़ा महाराष्ट्र में 4064 रहा। उसके बाद कर्नाटक में 2169 तथा फिर तीसरे नंबर पर मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा 671 रहा। वहीं खाद्यान्न का कटोरा कहे जाने वाले पंजाब व हरियाणा में आत्महत्या करने वाले किसानों व खेतिहर श्रमिकों की यह संख्या 270 और 226 रही। इससे पहले वर्ष 2016 में करीब 11,379 कृषि कर्म से जुड़े सर्वाधिक लोगों ने आत्महत्याएं की थी। 
 चिंता तो यह है कि पिछले वर्षों में इन आंकड़ों में गिरावट के बाद वर्ष 2021 में फिर आत्महत्या के मामलों में तेजी कैसे आई है? वास्तव में इस आंकड़े में तेजी की एक बड़ी वजह हाल के दिनों में मौसम के मिजाज में आए अप्रत्याशित बदलाव के चलते खाद्यान्न उत्पादन में आई गिरावट रही भी है। दरअसल, फसलों पर कीटों के प्रभाव तथा उपज के दाम में कमी के चलते किसानों के लिये लागत पाना भी कठिन हो गया। देश के बड़े हिस्से में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा है। किसान घाटा पूरा करने के लिये ऋण लेते हैं और फिर कर्ज के जाल में फंसकर रह जाते हैं। एजेंटों द्वारा अपमान व हताशा के बीच उन्हें आत्महत्या ही वैकल्पिक रास्ता लगता है।
आज किसानों के लिये खेती घाटे का सौदा साबित हो रहा है। यही वजह है कि या तो किसान आत्महत्या कर रहे हैं या फिर उनके बच्चे खेती छोड़ रहे हैं। ऐसे में सवाल  स्वाभाविक है कि केंद्र व कुछ राज्य सरकारों ने किसानों को सब्जबाग दिखाते हुए जिस आय को दुगनी करने का वादा किया था, उसका क्या हुआ? आज तत्काल रूप से किसानों के संरक्षण के लिये ऐसी नीतियों के क्रियान्वयन की जरूरत है जो किसानों को उनकी उपज का न्यायसंगत दाम दिला सके। दु:ख की बात है कि जो अन्नदाता खून-पसीने की मेहनत से देश की खाद्य सुरक्षा में बड़ा योगदान देता है, हम उसके जीवन की रक्षा नहीं कर पाते। किसान की आय बढ़ाने के लिये विभिन्न सरकारों ने जिन नीतियों की घोषणा की थी, उनका व्यावहारिक धरातल पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए कि हकीकत में उसका लाभ किसानों को क्यों नहीं मिल रहा है।
सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से फसलों पर जो घातक असर पड़ रहा है उससे उबरने के लिये किसानों को हर स्तर पर कैसे मदद की जाए। ऐसे प्रयास हों, जिससे किसानों का मनोबल ऊंचा हो। साथ ही मौसम की मार से फसलें बचाने और उत्पादन बढ़ाने के लिये फसलों का विविधीकरण करने की जरूरत है। इसके अलावा उन्नत किस्म के बीज तैयार करने होंगे, जो कम पानी और उच्च ताप में भी पर्याप्त उत्पादकता देते हों। इसके लिये कृषि वैज्ञानिकों व कृषि विश्वविद्यालयों को युद्धस्तर पर प्रयास करने होंगे। अन्यथा न केवल किसानों की बड़ी क्षति होगी बल्कि देश की खाद्यान्न सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। यह हकीकत है कि कोई किसान व कृषि श्रमिक तभी मौत को गले लगाता है, जब उसे सभी दरवाजे बंद नजर आते हैं।

आज की बात

हेडलाइंस

अच्छी खबर

शर्मनाक

भारत

दुनिया