-एल. एस. हरदेनिया
इस समय गांधी, गौतम और महावीर के देश में अनेक स्थानों से हिंसक घटनाओं की खबरें आ रही हैं। मणिपुर में तीन महीने से ज्यादा समय से जारी हिंसक घटनाओं के बीच पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा हुई। भाजपा और गोदी मीडिया पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों के दौरान हुई हिंसा के लिए वहां की टीएमसी सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं तो क्या फिर मणिपुर की घटनाओं के लिए वहां की सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए?
वैसे देश में जारी हिंसक घटनाओं के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं क्योंकि हम हिंसक घटनाओं को लेकर चिंता नहीं दिखाते और ना ही उनके कारणों का विश्लेषण करते हैं। हमें जघन्य हिंसा की कई घटनाओं के बारे में आए दिन पढ़ते, सुनते और देखते हैं। जैसे, एक बेटे ने अपनी मां की इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उसकी मां ने उसे शराब के लिए पैसे नहीं दिए। फिर एक पति ने अपनी पत्नि की इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उसे अपनी पत्नि के चरित्र पर संदेह था। एक बाप ने अपनी प्यारी बेटी की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि उसने एक ऐसे व्यक्ति से विवाह कर लिया था जिसे वह अगाध प्रेम करती थी। बाप इस बात को भूल जाता है कि प्रेम से ज्यादा पवित्र रिश्ता और कोई नहीं हो सकता। हम प्रेम संबंधों की कहानियां पढ़कर-सुनकर आंसू बहाते हैं, सिनेमा के पर्दे और किताबों में दिखी और पढ़ी कहानियों को याद रखते हैं।
इसके अलावा छोटी-छोटी बातों में जैसे पार्किंग के स्थान को लेकर और गाड़ी ओवरटेक करने के प्रश्न पर हत्याओं की खबरें सुनने में आती हैं। कुल मिलाकर हम छोटी-छोटी बातों पर हिंसक हो जाते हैं।
व्यक्तिगत के अलावा हम सामाजिक मामलों को लेकर भी हिंसक हो जाते हैं। हम आज भी उन व्यक्तियों और संस्थाओं की निंदा करने का साहस नहीं दिखाते हैं जो भारत क्या सारे विश्व में श्रद्धा के पात्र की हत्या करने वाले व्यक्ति की पूजा करते हैं, उसके मंदिर स्थापित करते हैं। हम उस व्यक्ति की भी निंदा नहीं करते जिसने एक ईसाई पादरी और उनके बच्चों को एक जीप में जिंदा जलाकर मार डाला था। हम उन व्यक्तियों का स्वागत करने से नहीं हिचकिचाते जिन्होंने हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध किए थे और इसके बावजूद उन्हें सजा की अवधि पूर्ण होने के पहले ही रिहा कर दिया गया। हम ऐसे दबंगों के विरूद्ध कुछ नहीं करते जो एक महिला के अधजले शव को चिता से इसलिए उठाकर फेंक देते हैं क्योंकि वह महिला दलित थी और उसका अंतिम संस्कार तथाकथित उच्च जातियों के लिए ‘आरक्षित’ शमशान पर हो रहा था। हम एक दलित बच्चे की पिटाई सिर्फ इसलिए कर देते हैं क्योंकि उसने उच्च जाति के शिक्षक के पात्र से पानी पीने की कोशिश की थी।
हम आईआईटी के कुछ छात्रों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर देते हैं क्योंकि वे उच्च जाति के छात्रों द्वारा किए जाने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार को नहीं सह पाते। हम एक महिला की हत्या सिर्फ इसलिए कर देते हैं क्योंकि हम उसे डायन मानते हैं। हम एक दूल्हे को घोड़ी से उठाकर फेंक देते हैं क्योंकि वह दलित समुदाय का है और हमारी मान्यता है कि दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठने का अधिकार नहीं है।
हम किसी व्यक्ति की इसलिए हत्या कर देते हैं क्योंकि हमें संदेह है कि वह गौमांस ले जा रहा है। हम किसी ईसाई पादरी को सिर्फ इसलिए दंडित करते हैं क्योंकि हमें संदेह है कि वह धर्म परिवर्तन करवा रहा है। हम अल्पसंख्यकों की ओर प्रायः संदेह की उंगली उठाते हैं। हम इनके बारे में यह भी कहते हैं कि इन्हें गोली मारो।
कुल मिलाकर हम सामाजिक स्तर पर हिंसा की वकालत ही नहीं करते वरन् हिंसक वारदात करने से भी नहीं हिचकते। सारे देश के राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षणिक एवं धार्मिक संगठनों को आपसी मतभेद भुलाकर हिंसा मुक्त भारत बनाने का प्रयास करना चाहिए तभी मणिपुर जैसी घटनाएं रोकी जा सकेंगीं।