राजेश बादल
अमेरिका उतावला है ।भारतीय उप महाद्वीप में वह अपना ताकतवर सैनिक अड्डा बनाना चाहता है।चीन और रूस की घेराबंदी के लिए दशकों से वह जगह की खोज में है । पाकिस्तान,मालदीव और श्रीलंका में चीन और भारत के कारण उसकी दाल नहीं गली।भारत में मज़बूत लोकतंत्र और सार्वभौमिकता के मद्दे नज़र बात नही बनी ।बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद से उसने तीन वर्ग किलोमीटर का एक छोटा सा सेंट मार्टिन द्वीप खरीदना चाहा ।वहां से भी उसे टका सा जवाब मिल गया ।इस पर बौखलाए अमेरिका ने बांग्लादेश में फ़ौज की मदद से उनकी सरकार गिरा दी ।अमेरिका की यह पुरानी तरकीब है। कम से कम शेख़ हसीना तो यही कहती हैं । अपदस्थ किए जाने के बाद पहली बार उन्होंने मुंह खोला है ।उन्होंने कहा है कि अमेरिका की इच्छा पूरी नहीं करने के कारण उन्हें अपनी निर्वाचित सरकार खोनी पड़ी है। अगर वे ऐसा नहीं करतीं तो मुल्क में रक्तपात और व्यापक हिंसा की आशंका थी ।पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि वे अमेरिका की ख़्वाहिश के अनुसार काम करतीं तो न उनकी सरकार जाती और न मुल्क़ में ख़ून ख़राबा होता। शेख हसीना ने कहा कि उन्होंने जो भी फ़ैसला किया , वह बांग्लादेश की भूमि बचाने के लिए किया। उन्होंने कहा है कि वे जल्द ही स्वदेश लौटेंगी और देशवासियों की एक बार फिर सेवा करेंगी ।बता दूँ कि लगभग तीन साल पहले भी यह द्वीप अमेरिका को देने का मामला संसद में उठा था। बांग्ला देश वर्कर्स पार्टी के अध्यक्ष रशीद ख़ान ने इस मामले को उठाया था। इस द्वीप को अमेरिका को देने के लिए ख़ालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने समर्थन किया था। इस बार तख़्ता पलट के पीछे यही सौदेबाज़ी है। यह अवामी लीग का दावा है।
अब पाकिस्तान का उदाहरण देखिए ।अमेरिका में एक गोपनीय दस्तावेज़ से ख़ुलासा हुआ था कि जो बाइडेन सरकार के इशारे पर इमरान ख़ान की निर्वाचित सरकार गिराई गई थी। इमरान ख़ान नियाज़ी प्रधानमंत्री थे तो अमेरिका ने उनसे भी पाकिस्तान में अपना सैनिक अड्डा बनाने की इजाज़त देने के लिए कहा था । चीन के दबाव में इमरान ख़ान ने इनकार कर दिया । यही नहीं ,अमेरिकी राजदूत की बात अनसुनी करके वे फरवरी 2022 में राष्ट्रपति पुतिन से मिलने मॉस्को चले गए।बक़ौल इमरान वे रूस से सस्ता क्रूड आयल खरीदने के लिए बातचीत करने गए थे ,जैसा कि भारत करता है। इसके बाद अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना की मदद से इमरान की सरकार गिरा दी ।अमेरिका पहले भी नवाज़ शरीफ़ और परवेज़ मुशर्रफ़ के कार्यकाल में यह प्रस्ताव रख चुका है।वह सैनिक संधियों के ज़रिए अपना अड्डा कराची के आस पास बनाना चाहता है। इमरान ख़ान चीख चीख कर कहते रहे कि उनकी सरकार गिराने के पीछे अमेरिका का हाथ है।उनके पास पर्याप्त सुबूत हैं ।लेकिन इस क्रिकेटर रहे प्रधानमंत्री की किसी ने नहीं सुनी ? अंततः वे जेल में डाल दिए गए ।माना जा सकता है कि वे तब तक सलाखों के पीछे रहेंगे,जब तक अमेरिका चाहेगा ।अब इमरान की पार्टी के लोग अमेरिकी राजनेताओं से माफ़ीनामा भेज रहे हैं मगर अमेरिका के कान पर जूँ नहीं रेंग रही। अमेरिका का यही तरीक़ा है। इमरान ख़ान ने तो चीन को भी नाराज़ कर लिया था। चीन ने भी इस मामले में चुप्पी साधे रखी ।आमतौर पर चीन संवेदनशील मामलों में मुँह नहीं खोलता। पाकिस्तान में सेना इस परिवर्तन के पीछे थी और बांग्लादेश में भी आईएसआई के माध्यम से बांग्ला सेना ने शेख़ हसीना को चलता किया ।आईएसआई ने एक तीर से दो निशाने किए ।एक तो शेख़ हसीना वाजेद की सरकार गिरा दी और दूसरा हिंदुओं के खिलाफ़ विष वमन कर बांग्लादेश की अवाम को भारत के खिलाफ़ भड़काने का काम किया ।अब वह अप्रत्यक्ष रूप से बांग्ला देश में भारतीय निकटता के सारे सुबूत मिटाने के प्रयास कर रही है।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के सन्दर्भ में बांग्लादेश का घटनाक्रम देखें देखें तो जो बाइडेन की राष्ट्रपति पद से उम्मीदवारी से हटने के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस के लिए संभावनाएँ बढ़ती दिखाई दे रही हैं।उन्हें कश्मीर के मामले में पाकिस्तान समर्थक सांसदों का समर्थन भी मिल रहा है। यह पार्टी अमेरिका की परंपरागत विदेश नीति पर ही चलने की पक्षधर है। ऐसे में पाकिस्तान और बांग्लादेश का साथ साथ आना उनके लिए फ़ायदेमंद है।कमला भले ही भारतीय मूल की हों ,लेकिन वे भारत की कश्मीर नीति की मुखर आलोचक रही हैं। बांग्लादेश में अमेरिका समर्थक सरकार आने से उसका रौब समूचे उप महाद्वीप पर पड़ सकता है। रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप चीन के कट्टर आलोचक हैं। आप उन्हें चीन का दुश्मन कह सकते हैं। मगर बराक ओबामा ,जो बाइडेन और कमला हैरिस चीन से रिश्तों में सुधार भी चाहते हैं।ताइवान के मामले में गंभीर मतभेद होते हुए भी डेमोक्रेट्स चीन से अच्छे नहीं तो सामान्य संबंध चाहते हैं। हाल के दिनों में कुछ ऐसे संकेत मिले भी हैं।चीन चाहेगा कि वहाँ ट्रंप की वापसी नहीं हो लेकिन बांग्ला देश के ताज़ा घटनाक्रम से शायद चीन की पेशानी पर बल पड़ें। फिर भी वह चाहेगा कि डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में आए। ऐसे में इन शिखर ताक़तों के बीच कूटनीतिक संबंधों का नए सिरे से निर्धारण हो सकता है।
भारत के लिए बांग्लादेश का घटनाक्रम निश्चित रूप से चिंता बढ़ाने वाला हो सकता हैं।उसके लिए अनेक मोर्चे एक साथ खुल गए हैं। अमेरिका ने दोस्त होने का दम भरते हुए भी बांग्लादेश में भारत हितैषी सरकार गिरा दी तो यह दोस्ती वाला धर्म तो नहीं निभाया। दूसरी तरफ पाकिस्तान की हेकड़ी देखने लायक होगी। भारत को पूरब और पश्चिम दोनों सीमाओं पर सतर्क रहना होगा। उत्तर में चीन ने पहले से ही भारतीय परेशानी बढ़ा रखी है।इसके अलावा बांग्लादेश के साथ कारोबार को तगड़ा झटका लगेगा। लगभग पंद्रह अरब डॉलर का व्यापार दोनों देशों के बीच है।इसके अलावा रेल संपर्क , सड़क संपर्क,बिजली उत्पादन,दाल निर्यात और रक्षा संबंधी कई समझौते चल रहे हैं। अब पाकपरस्त सरकार की नीति पर सब कुछ निर्भर करेगा।