राजेश बादल
हाल ही में आए तूफ़ान बिपरजॉय की कवरेज कमोबेश हर चैनल ने अलग अलग अंदाज़ में की। कुछ प्रयोग परंपरागत थे और एकाध प्रयोग ऊटपटांग भी था। एक राष्ट्रीय चैनल की एंकर को उसके संपादकीय प्रबंधन ने स्टूडियो में तूफ़ान के प्रभाव को असरदार ढंग से दर्शकों तक पहुँचाने का निर्देश दिया। एंकर ने एक छतरी हाथ में लेकर स्टूडियो में क़रीब क़रीब नृत्य करते हुए तूफ़ान के समाचार को पहुँचाया। इस बेहूदे प्रयोग को देखकर दर्शकों ने माथा पीट लिया। वे नहीं समझ पा रहे थे कि हँसें या रोएँ। ज़िंदगी के तमाम रंग होते हैं। इन रंगों से जुड़े समाचार भी हमें मिलते हैं। लेकिन कुछ नया करने के नाम पर हम वही नहीं दोहरा या दिखा सकते , जो असल ज़िंदगी में होता है। खेल समाचारों में हम वर्चुअल स्क्रीन पर एंकर को क्रिकेट या हॉकी खेलते कुछ वर्षों से देख ही रहे हैं। कुछ अन्य समाचारों में परदे पर भौंडी हरक़तें करने के उदाहरण हमारे सामने हैं।
लेकिन मैं याद कर सकता हूँ कि समाचारों को इस तरह प्रस्तुत करने का अंदाज़ पश्चिमी और यूरोपीय टीवी चैनलों की विकृत नक़ल है।जब कंटेंट घटिया होता है और ख़बरें स्तरहीन होती हैं तो देखने वाले चैनल से छिटक जाते हैं। ऐसे में पत्रकारिता जैसे गंभीर काम में प्रबंधन बेतुके और अश्लील प्रयोग करने के लिए अपने समाचार प्रस्तुत कर्ताओं को कहते हैं। यह संयोग नहीं है कि अश्लील और घृणित प्रस्तुतिकरण के लिए वे सिर्फ़ महिलाओं या लड़कियों का चुनाव करते हैं। अनेक विदेशी चैनल इसके उदाहरण हैं। कोरिया के एक टीवी चैनल का नाम ही नेकेड न्यूज़ है। उसमें समाचार प्रस्तुत करने वाली लड़की समाचार बोलने के साथ साथ अपने कपड़े भी उतारती जाती है। अंत में वह निर्वस्त्र हो जाती है। खेद है कि अपनी अस्मिता के लिए अत्यंत संवेदनशील और जागरूक महिलाएँ अपनी देह का इस तरह दुरूपयोग होने देती हैं।
सवाल यह है कि क्या ज़रूरी है कि ख़बर के चरित्र अथवा भाव को प्रकट भी किया जाए ? मैंने वर्षों तक रेडियो और टीवी चैनलों पर समाचार प्रस्तुत किए हैं। पर, इस समय मैं 1988 को याद करना चाहूँगा। जयपुर दूरदर्शन पर समाचार पेश करने के लिए हम कुछ लोगों को चुना गया। उस दौर के चोटी के कमेंट्रेटर जसदेव सिंह हमें एक कार्यशाला में टिप्स देने आए। तब यह प्रश्न उठा कि क्या समाचार का भाव भी न्यूज़रीडर की आवाज़ या चेहरे पर प्रकट होना चाहिए ? जसदेव सिंह ने कहा कि निरपेक्ष भाव से दिया गया समाचार ही सर्वाधिक प्रामाणिक माना जाता है। तब हमारे एक साथी ने कहा कि क्या भारत के विश्व कप जीतने और किसी प्रधानमंत्री की हत्या की ख़बर एक ही ढंग से पढ़ी जानी चाहिए। जसदेव सिंह ने कहा ," बेशक़ ! अगर आप भाव की चिंता करेंगे तो फिर मात खाएँगे। दुर्घटना ,दुष्कर्म ,हत्या, शास्त्रीय नृत्य ,खेलकूद और भूकंप की ख़बरों को आप कैसे पढ़ेंगे ? वर्षों बाद जसदेव सिंह वाली बात रेडियो पर समाचार प्रस्तुत करने वाले भारत के सुपरस्टार देवकी नंदन पांडे ने मुझसे कही थी। वे मेरी एक डाक्यूमेंट्री की एंकरिंग करने स्टूडियो आए थे और फ़ुरसत के पलों में मैंने यह मुद्दा उनके सामने रखा था। उनका कहना था ," जसदेव ठीक कहते हैं। आज मेरी जो पहचान है ,वह इसी कारण है कि मैं समाचार के साथ रोता नहीं और उसके साथ हँसता नहीं। ख़बर को ख़बर की तरह गंभीरता से श्रोताओं तक पहुँचाने का काम करता हूँ। यही मन्त्र है। इसके अलावा कोई दूसरा तरीक़ा समाचार संसार में नहीं है।हालाँकि टीवी न्यूज़ के सुपरस्टार सुरेंद्र प्रताप सिंह याने एस पी इससे आंशिक रूप से तनिक अलग राय रखते थे। उनका कहना था कि अस्सी फ़ीसदी समाचारों को निरपेक्ष भाव से ही परोसना चाहिए ,लेकिन सियासत ,भ्रष्टाचार और राजनेताओं के अलोकतांत्रिक आचरण के बारे में आप जो समाचार दिखाते हैं ,उनकी एंकरिंग में वह तंज और विद्रूपता एंकर के चेहरे पर भी दिखनी चाहिए। गंदे नेताओं के प्रति आपकी नफ़रत स्क्रीन का हिस्सा बनना चाहिए।
लब्बोलुआब यह कि समाचार का प्रस्तुतिकरण भद्दा और नौटंकी वाला नहीं होना चाहिए। हम लोग नाट्य रूपांतरण करते रहे हैं ,पर इसका मतलब यह नहीं कि हर समाचार के लिए ड्रामेबाज़ी का सहारा लिया जाए। यदि आप मर्यादा की सीमा से बाहर गए तो टीवी स्क्रीन को भी दर्शक बाहर फेंक देगा ।