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Added on : 2019-11-04 19:34:07

हिन्दुस्तान के मौजूदा सन्दर्भ में आज कला को कारोबार से जोड़ने की आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति में जीवन के प्रत्येक रंग को कला ने प्रभावित किया है इसलिए कला को आज उद्यम से अलग करके नहीं देखा जा सकता। यह विचार नेशनल स्माल इंडस्ट्रीज़ कार्पोरेशन के चेयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर राम मोहन मिश्रा ने दिल्ली के इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर में जानी मानी सूफ़ी गायिका सोनम कालरा की प्रस्तुति के बाद प्रकट किए। कार्यक्रम का आयोजन इंटरनेशनल मेलोडी फाउंडेशन ने इस मंत्रालय के सहयोग से किया था।इस अवसर पर एमएसएमई के सचिव डॉक्टर ए के पांडा ने इस अनूठी पहल की सराहना की। ग़ौर तलब है कि भारत में इस तरह के आयोजनों की अवधारणा श्री राममोहन मिश्रा ने ही विकसित की है।इसमें कला और कारोबार के अन्तर्निहित रिश्तों को सार्वजनिक मंच दिया जाता है।  

फाउंडेशन के महासचिव डॉक्टर हरीश भल्ला ने इस आयोजन की ज़रूरत को रेखांकित किया उन्होंने कहा कि दरअसल हिन्दुस्तान में कला और कारोबार का रिश्ता सदियों से रहा है। यह इस देश में देह और आत्मा जैसे संबंध की तरह है।तभी तो ढोलक बनाने वाला खुद भी अच्छी ढोलक बजाता है ,मृदंग और तबला बनाने वाला उन्हें बजाकर दिखाता है।यही हाल सारंगी, डफली,हारमोनियम,मंजीरे,खड़ताल,जल तरंग,बाँसुरी और मटकी बजाने वालों का है।इन संगीत के उपकरणों को दिल के तारों से जोड़कर लोगों को सम्मोहित कर देने वाले कलाकारों को तो सारी दुनिया जानती है,लेकिन उन कला-शिल्पियों को कौन जानता है,जो कलाकारों के लिए इन वाद्ययंत्रों का निर्माण करते हैं।ठीक वैसे ही जैसे हम खादी के कपड़े,हथकरघे के दुशाले ,शॉल,हस्त शिल्प,लौह शिल्प,काष्ठ शिल्प को कला से तो जोड़ देते हैं लेकिन उन सैकड़ों अनाम शिल्पकारों को याद नहीं रखते।ऐसे कलाकारों को अब नेपथ्य में नहीं ,मंच पर लाने की आवश्यकता भी है।फाउंडेशन के कार्यकारी अध्यक्ष और फ़िल्मकार राजेश बादल ने मौजूदा माहौल में सूफ़ी भावना का महत्त्व बताया।उन्होंने ऐसे कार्यक्रमों को समूचे देश में विस्तार देने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।फाउंडेशन की प्रोग्राम निदेशक पलक आहूजा और संयुक्त सचिव पूजा जैन ने समन्वय और प्रबंधन की ज़िम्मेदारी सँभाली।    

इन्हीं विचारों के संगम से उपजी शाम दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में सैकड़ों लोगों के लिए कभी न भूलने वाली शाम बन गई। सोनम कालरा ने सूफ़ी भाव और अपनी आत्मा के मेल को ज्ञान-आनंद पात्रों में उँड़ेल दिया। सोनम के पास संगीत के सुरों का अच्छा ज्ञान तो है ही,उनके गले से जब आत्मा और परमात्मा के मिलन की धारा बहती है तो श्रोता किसी दूसरे लोक में चले जाते हैं।इस कार्यक्रम में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक सुरेंद्रनाथ त्रिपाठी, क्रिकेटर बिशनसिंह बेदी, पंजाब के मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस इक़बाल अहमद ,भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी अजय चौधरी,शिक्षाविद कैप्टन एल एस बहल,जानी मानी गायिका रश्मि अग्रवाल,कनाडा से आईं डॉक्टर स्नेह ठाकुर जैसे अनेक संगीत रसिक, सूफियाना संस्कारों में पले ,बढे लोग मौजूद थे।

हिन्दुस्तान के मौजूदा सन्दर्भ में आज कला को कारोबार से जोड़ने की आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति में जीवन के प्रत्येक रंग को कला ने प्रभावित किया है इसलिए कला को आज उद्यम से अलग करके नहीं देखा जा सकता। यह विचार नेशनल स्माल इंडस्ट्रीज़ कार्पोरेशन के चेयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर राम मोहन मिश्रा ने दिल्ली के इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर में जानी मानी सूफ़ी गायिका सोनम कालरा की प्रस्तुति के बाद प्रकट किए। कार्यक्रम का आयोजन इंटरनेशनल मेलोडी फाउंडेशन ने इस मंत्रालय के सहयोग से किया था।इस अवसर पर एमएसएमई के सचिव डॉक्टर ए के पांडा ने इस अनूठी पहल की सराहना की। ग़ौर तलब है कि भारत में इस तरह के आयोजनों की अवधारणा श्री राममोहन मिश्रा ने ही विकसित की है।इसमें कला और कारोबार के अन्तर्निहित रिश्तों को सार्वजनिक मंच दिया जाता है।  

फाउंडेशन के महासचिव डॉक्टर हरीश भल्ला ने इस आयोजन की ज़रूरत को रेखांकित किया उन्होंने कहा कि दरअसल हिन्दुस्तान में कला और कारोबार का रिश्ता सदियों से रहा है। यह इस देश में देह और आत्मा जैसे संबंध की तरह है।तभी तो ढोलक बनाने वाला खुद भी अच्छी ढोलक बजाता है ,मृदंग और तबला बनाने वाला उन्हें बजाकर दिखाता है।यही हाल सारंगी, डफली,हारमोनियम,मंजीरे,खड़ताल,जल तरंग,बाँसुरी और मटकी बजाने वालों का है।इन संगीत के उपकरणों को दिल के तारों से जोड़कर लोगों को सम्मोहित कर देने वाले कलाकारों को तो सारी दुनिया जानती है,लेकिन उन कला-शिल्पियों को कौन जानता है,जो कलाकारों के लिए इन वाद्ययंत्रों का निर्माण करते हैं।ठीक वैसे ही जैसे हम खादी के कपड़े,हथकरघे के दुशाले ,शॉल,हस्त शिल्प,लौह शिल्प,काष्ठ शिल्प को कला से तो जोड़ देते हैं लेकिन उन सैकड़ों अनाम शिल्पकारों को याद नहीं रखते।ऐसे कलाकारों को अब नेपथ्य में नहीं ,मंच पर लाने की आवश्यकता भी है।फाउंडेशन के कार्यकारी अध्यक्ष और फ़िल्मकार राजेश बादल ने मौजूदा माहौल में सूफ़ी भावना का महत्त्व बताया।उन्होंने ऐसे कार्यक्रमों को समूचे देश में विस्तार देने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।फाउंडेशन की प्रोग्राम निदेशक पलक आहूजा और संयुक्त सचिव पूजा जैन ने समन्वय और प्रबंधन की ज़िम्मेदारी सँभाली।    

इन्हीं विचारों के संगम से उपजी शाम दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में सैकड़ों लोगों के लिए कभी न भूलने वाली शाम बन गई। सोनम कालरा ने सूफ़ी भाव और अपनी आत्मा के मेल को ज्ञान-आनंद पात्रों में उँड़ेल दिया। सोनम के पास संगीत के सुरों का अच्छा ज्ञान तो है ही,उनके गले से जब आत्मा और परमात्मा के मिलन की धारा बहती है तो श्रोता किसी दूसरे लोक में चले जाते हैं।इस कार्यक्रम में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक सुरेंद्रनाथ त्रिपाठी, क्रिकेटर बिशनसिंह बेदी, पंजाब के मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस इक़बाल अहमद ,भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी अजय चौधरी,शिक्षाविद कैप्टन एल एस बहल,जानी मानी गायिका रश्मि अग्रवाल,कनाडा से आईं डॉक्टर स्नेह ठाकुर जैसे अनेक संगीत रसिक, सूफियाना संस्कारों में पले ,बढे लोग मौजूद थे।

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