चंद्रमा (Moon) की सतह पर पहुंचने से पहले चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के लैंडर विक्रम का संपर्क भले ही टूट गया हो, लेकिन मिशन मून के लिए इसरो (ISRO) की उम्मीदें अभी खत्म नहीं हुई हैं. चंद्रयान-2 के साथ गया ऑर्बिटर अपनी कक्षा में स्थापित हो चुका है और लगातार चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है. वह चंद्रमा पर पानी और खनिज पदार्थ (Minerals) होने की संभावना को लेकर तमाम तरह की जानाकरी जुटा रहा है. बड़ी बात यह है कि 8 पेलोड्स का ये ऑर्बिटर अगले 7 साल तक काम करता रहेगा.

नासा (NASA) के वैज्ञानिक जैरी लिनेगर ने कहा कि चंद्रयान-2 के लैंडर से संपर्क टूटने के बावजूद उसका ऑर्बिटर (Orbiter) अभी भी चांद को 3 आयामों से माप रहा है. वह चांद की सतह के अंदर जानकारियां इकट्ठी कर रहा है. उन्होंने कहा कि चंद्रयान के आर्बिटर से हमें बहुत सारी जानकारियां मिलने की उम्मीद हैं. भविष्य में जब भी कोई देश चांद पर अपना स्टेशन स्थापित करने की कोशिश करेगा, तो उसे चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से मिली जानकारियों से बड़ी मदद मिलेगी. जैरी लिनेगर नासा के वही वैज्ञानिक हैं जिन्होंने साल 1997 में रूस के स्पेस सेंटर मीर में 5 महीने बिताए थे.

100 किमी की ऊंचाई से भी अध्यन कर सकता है ऑर्बिटर
वहीं, 2008 में चंद्रयान-1 मिशन के प्रॉजेक्ट डारेक्टर रहे वैज्ञानिक एम अन्नादुरई ने कहा कि ऑर्बिटर वह काम कर सकता है जो लैंडर और रोवर भी नहीं कर सकते. उन्होंने बताया कि रोवर का रिसर्च का दायरा 500 मीटर तक सीमित रहता है, जबकि ऑर्बिटर करीब 100 किमी की ऊंचाई से भी पूरे चंद्रमा जानकारी जुटा सकता है. उसमें लगे IR स्पेक्टोमीटर, दो कैमरे और डुअल-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रेडार आकलन करने में बहुत तेज होते हैं.

 

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Added on : 2019-09-08 18:33:08

चंद्रमा (Moon) की सतह पर पहुंचने से पहले चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के लैंडर विक्रम का संपर्क भले ही टूट गया हो, लेकिन मिशन मून के लिए इसरो (ISRO) की उम्मीदें अभी खत्म नहीं हुई हैं. चंद्रयान-2 के साथ गया ऑर्बिटर अपनी कक्षा में स्थापित हो चुका है और लगातार चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है. वह चंद्रमा पर पानी और खनिज पदार्थ (Minerals) होने की संभावना को लेकर तमाम तरह की जानाकरी जुटा रहा है. बड़ी बात यह है कि 8 पेलोड्स का ये ऑर्बिटर अगले 7 साल तक काम करता रहेगा.

नासा (NASA) के वैज्ञानिक जैरी लिनेगर ने कहा कि चंद्रयान-2 के लैंडर से संपर्क टूटने के बावजूद उसका ऑर्बिटर (Orbiter) अभी भी चांद को 3 आयामों से माप रहा है. वह चांद की सतह के अंदर जानकारियां इकट्ठी कर रहा है. उन्होंने कहा कि चंद्रयान के आर्बिटर से हमें बहुत सारी जानकारियां मिलने की उम्मीद हैं. भविष्य में जब भी कोई देश चांद पर अपना स्टेशन स्थापित करने की कोशिश करेगा, तो उसे चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से मिली जानकारियों से बड़ी मदद मिलेगी. जैरी लिनेगर नासा के वही वैज्ञानिक हैं जिन्होंने साल 1997 में रूस के स्पेस सेंटर मीर में 5 महीने बिताए थे.

100 किमी की ऊंचाई से भी अध्यन कर सकता है ऑर्बिटर
वहीं, 2008 में चंद्रयान-1 मिशन के प्रॉजेक्ट डारेक्टर रहे वैज्ञानिक एम अन्नादुरई ने कहा कि ऑर्बिटर वह काम कर सकता है जो लैंडर और रोवर भी नहीं कर सकते. उन्होंने बताया कि रोवर का रिसर्च का दायरा 500 मीटर तक सीमित रहता है, जबकि ऑर्बिटर करीब 100 किमी की ऊंचाई से भी पूरे चंद्रमा जानकारी जुटा सकता है. उसमें लगे IR स्पेक्टोमीटर, दो कैमरे और डुअल-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रेडार आकलन करने में बहुत तेज होते हैं.

 

चंद्रमा (Moon) की सतह पर पहुंचने से पहले चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के लैंडर विक्रम का संपर्क भले ही टूट गया हो, लेकिन मिशन मून के लिए इसरो (ISRO) की उम्मीदें अभी खत्म नहीं हुई हैं. चंद्रयान-2 के साथ गया ऑर्बिटर अपनी कक्षा में स्थापित हो चुका है और लगातार चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है. वह चंद्रमा पर पानी और खनिज पदार्थ (Minerals) होने की संभावना को लेकर तमाम तरह की जानाकरी जुटा रहा है. बड़ी बात यह है कि 8 पेलोड्स का ये ऑर्बिटर अगले 7 साल तक काम करता रहेगा.

नासा (NASA) के वैज्ञानिक जैरी लिनेगर ने कहा कि चंद्रयान-2 के लैंडर से संपर्क टूटने के बावजूद उसका ऑर्बिटर (Orbiter) अभी भी चांद को 3 आयामों से माप रहा है. वह चांद की सतह के अंदर जानकारियां इकट्ठी कर रहा है. उन्होंने कहा कि चंद्रयान के आर्बिटर से हमें बहुत सारी जानकारियां मिलने की उम्मीद हैं. भविष्य में जब भी कोई देश चांद पर अपना स्टेशन स्थापित करने की कोशिश करेगा, तो उसे चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से मिली जानकारियों से बड़ी मदद मिलेगी. जैरी लिनेगर नासा के वही वैज्ञानिक हैं जिन्होंने साल 1997 में रूस के स्पेस सेंटर मीर में 5 महीने बिताए थे.

100 किमी की ऊंचाई से भी अध्यन कर सकता है ऑर्बिटर
वहीं, 2008 में चंद्रयान-1 मिशन के प्रॉजेक्ट डारेक्टर रहे वैज्ञानिक एम अन्नादुरई ने कहा कि ऑर्बिटर वह काम कर सकता है जो लैंडर और रोवर भी नहीं कर सकते. उन्होंने बताया कि रोवर का रिसर्च का दायरा 500 मीटर तक सीमित रहता है, जबकि ऑर्बिटर करीब 100 किमी की ऊंचाई से भी पूरे चंद्रमा जानकारी जुटा सकता है. उसमें लगे IR स्पेक्टोमीटर, दो कैमरे और डुअल-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रेडार आकलन करने में बहुत तेज होते हैं.

 

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