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हॉट टोपिक
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Added on : 2025-02-26 21:00:25

राजेश बादल
अमेरिका का नया निज़ाम अवाम पर बेहद भारी पड़ रहा है।वे मतदाता भी सकते में हैं ,जिन्होंने डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति के लिए अपना मत दिया था।अपने को संसार का आधुनिकतम लोकतंत्र मानने वाला मुल्क़ अब घनघोर सामंती घेरे में है।दो पूँजीपति डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क अपने राष्ट्र की सियासत को एक ऐसे रास्ते पर लेकर चल पड़े हैं ,जिस पर फिसलन है ,कीचड़ है और अब तक की सारी प्रतिष्ठा दाँव पर लगी है।डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका फर्स्ट के नारे ने बेशक मतदाताओं को लुभाया था,लेकिन अब इस नारे की कलई खुलती जा रही है।अमेरिकी नागरिक समझ रहे थे कि उनके देश की पूँजी उनके हित में लगाई जाए ,यह तो बात समझ में आती है लेकिन हुकूमत उनको ही रोज़ रोज़ परेशान करने लगे,यह उनके लिए तक़लीफ़देह है। हम जानते हैं कि अमेरिकी लोग संसार में सबसे आरामतलब और सुविधाजीवी हैं।इसलिए उनकी सरकार अब उनसे ही मिनट मिनट का हिसाब मांग रही है तो वे हैरान और परेशान हैं। 
ट्रंप के दोस्त और वहाँ के शासकीय दक्षता मंत्रालय के मुखिया एलन मस्क ने दो दिन पहले एक अजीबोग़रीब फ़रमान जारी किया। उन्होंने सभी केंद्रीय कर्मचारियों को 48 घंटे के अंदर अपने कामकाज की रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया है। यदि उनकी दक्षता रिपोर्ट संतोषजनक नहीं पाई गई तो नौकरी खोने के लिए तैयार रहना होगा। यही नहीं ,अगर वे अपनी परफॉर्मेंस रिपोर्ट प्रस्तुत करने में नाकाम रहे तो वे अपने आपको नौकरी से बर्ख़ास्त समझ सकते हैं। आपको याद होगा कि अमेरिका में कोविड के प्रकोप के समय से ही बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी घर पर रह कर ही काम कर कर रहे हैं। उन्हें पूरी वेतन मिल रही है। मस्क की चेतावनी उन कर्मचारियों के लिए भी है। दिलचस्प यह कि डोनाल्ड ट्रंप ने भी मस्क के इस फ़रमान को अपना समर्थन दे दिया है। 
लेकिन मस्क के इस हुक्मनामें से बड़ा बवाल हो गया है। एलन मस्क के इस आदेश का कई सरकारी एजेंसियों ने खुलकर विरोध करना शुरू कर है।मस्क निजी और कॉर्पोरेट शैली में सरकारी कर्मचारियों तथा अधिकारियों से काम लेना चाहते हैं। सरकारी कर्मचारी इसके लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि पेंटागन ,विदेश मंत्रालय ,गृह मंत्रालय ,नासा ,फेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन,पुलिस और सेना के लोग इसे कैसे मान सकते हैं ? उनका काम न तो प्रोजेक्ट वर्क जैसा होता है और न ही उसे रोज़ काम के घंटों में बाँधा जा सकता है। ट्रंप सरकार ने बीते दिनों एफ बी आई के नए मुखिया काश पटेल को नियुक्त किया है। पटेल ही इस आदेश के ख़िलाफ़ खड़े हो गए हैं। उन्होंने अपनी जाँच एजेंसियों के कर्मचारियों को मस्क के मेल का उत्तर देने से रोक दिया है।पटेल का कहना है कि उनके ब्यूरो की एक प्रक्रिया है ,जिसके तहत परफॉर्मेंस रिपोर्ट मांगी जाती है और कर्मचारियों का मूल्यांकन किया जाता है। यही प्रक्रिया मान्य है और इससे हटने का सवाल ही नहीं है।काश पटेल का पूरा नाम कश्यप प्रमोद विनोद पटेल है और वे पाटीदार समुदाय के गुजराती हैं।उनका परिवार लगभग अस्सी साल पहले गुजरात के आनंद से अमेरिका जाकर बस गया था।वे ट्रंप के बेहद निकट हैं। उनके तेवर ट्रंप सरकार के अंतर्विरोधों को उजागर करते हैं।    
इसी कड़ी में स्वास्थ्य एवं मानव सेवा विभाग के प्रमुख रॉबर्ट एफ.कैनेडी जूनियर ने पहले तो अपने कर्मचारियों से कहा कि वे ईमेल का उत्तर देते हुए अपनी रिपोर्ट भेज दें, मगर बाद में उनका रुख बदल गया। दरअसल विभाग के वकील ने साफ़ साफ़ कहा कि ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसी मंत्रालय के कार्यवाहक जनरल काउंसल सीन केवेनी ने अपने बयान में कहा कि वे आहत और अपमानित महसूस कर रहे हैं। केवेनी के अनुसार उन्होंने अपनी विभागीय  प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए पिछले सप्ताह सत्तर घंटे तक काम किया है । यह मेल निष्ठा को अपमानित करने वाला है। गौर तलब यह है कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों दलों के कई नेता एलन मस्क के इस रवैए का खुलकर विरोध कर रहे हैं । रिपब्लिकन सीनेटर जॉन कर्टिस ने कहा है कि मस्क का रूख क्रूर और अमानवीय है।सरकार को समझना चाहिए कि कर्मचारी भी इंसान हैं।उनके परिवार हैं और उन पर बैंक के कर्ज हैं। छंटनी का यह ढंग ग़लत है। इसी तरह एलन मस्क के विरोध में विदेश और रक्षा विभाग के आला अफसर भी हैं। उन्होंने बाक़ायदा कर्मचारियों को औपचारिक तौर पर कहा है कि उन्हें मस्क के इस मेल का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है ।पदभार सँभालने के बाद से उन्होंने जितने आदेश जारी किए हैं ,उनमें से क़रीब आधा दर्ज़न मामलों में अदालतों ने रोक लगा दी है।ट्रंप इससे बौखलाए हुए हैं। उपराष्ट्रपति जे डी वेन्स और एलन मस्क ने तो न्यायपालिका के ख़िलाफ़ आक्रामक अभियान छेड़ दिया है। वेन्स ने कहा कि न्यायपालिका अपनी हद पार कर रही है।उन्होंने यहाँ तक कहा कि एक जज फौजी जनरल को क्या यह बताएगा कि सैनिक अभियान कैसे चलाया जाता है। न्यायाधीशों को कार्यपालिका के मामलों में टांग नहीं अड़ाना चाहिए। इसी क्रम में मस्क ने तो यहाँ तक कह डाला कि एक जज सारी ज़िंदगी जज कैसे बना रह सकता है ? इसके बाद स्वयं डोनाल्ड ट्रंप न्यायपालिका से मोर्चा लेते नज़र आए। उन्होंने कहा कि जिन न्यायाधीशों ने उनके फैसलों पर रोक लगाईं है ,संभव है कि उन न्यायाधीशों की भी जाँच की ज़रुरत हो। 
यह मानना जल्दबाज़ी नहीं होगी कि डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में अजीब सा व्यवहार करते नज़र आ रहे हैं।वे अपने राष्ट्र से ही जैसे रार ठान कर उससे बदला लेने पर उतारू दिखाई देते हैं।वे शुभचिंतक और पिछलग्गू देशों को नाराज़ कर रहे हैं।यूरोपीय यूनियन अब अमेरिका की अंधभक्त नहीं रही।वह अमेरिका के मसले पर दो फाड़ हो गई है।कोई नहीं जानता कि ट्रंप सियासत का कौन सा पाठ लिख रहे हैं ?

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