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Added on : 2024-07-20 09:20:25

राकेश दुबे 

भारत दुनिया में सबसे बड़ा फिल्म निर्माता देश है। यहां वर्ष 2023 में करीब 1,800 फिल्में रिलीज हुई।पिछले अनेक वर्षों में फ़िल्मों की संख्या 1,700 से 1,900 के बीच रही है । सवाल है कि इन 1,800 में से कितनी फ़िल्मों को जारी करने के लिए बेहतर सप्ताहांत मिल पाएगा ? उन्हें कितने दर्शक मिल पाएंगे और वे कितना मुनाफा कमाएंगी?
सप्ताहांत के दौरान बड़ी इवेंट जैसे कि क्रिकेट मैच, चुनाव, परीक्षाएं या फिर छुट्टियों को निकाल दें। इस तरह फिल्म रिलीज के लिए करीब 40 सप्ताहांत बचते हैं। अगर वर्ष 2023 में रिलीज हुई 1,800 फिल्म को 40 हफ्तों में बांट कर देखें तब हर हफ्ते 45 फिल्म रिलीज हो रही हैं। 
विश्व के सबसे विकसित फिल्म बाजार हॉलीवुड, में एक वर्ष में औसतन 500-600 फिल्म रिलीज होती हैं, लेकिन यहां भी इसी तरह की दिक्कत है। इस साल अच्छे सप्ताहांत की होड़ में एड शीरन, लोलापलूजा, वीर दास और कई अन्य प्रदर्शनों के साथ लाइव इवेंट का उभरता बाजार भी जुड़ गया है। इसके अलावा 10 हफ्ते से अधिक समय तक चलने वाला इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) और करीब सात हफ्ते से अधिक समय तक चलने वाले आम चुनाव का आयोजन भी इसमें शामिल है। इस वजह से इस साल भारतीय बाजारों में फिल्म रिलीज के लिए 30 सप्ताहांत से भी कम का समय था।
 फिल्म रिलीज करने के लिए उपयुक्त समय के सवाल का ताल्लुक पूरे 2.3 लाख करोड़ रुपये के मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार के लिए विचारणीय है। फिल्म की हिस्सेदारी 19,700 करोड़ रुपये के कुल राजस्व (बॉक्स ऑफिस, स्ट्रीमिंग एवं टीवी सहित) के साथ महज 8.5 प्रतिशत है। यह भी गौरतलब  है कि फिल्म, शो, इवेंट, वीडियो की लगातार बढ़ती संख्या से आमदनी पर उल्टा असर पड़ रहा है।
फिल्म की पहचान या उसे खोज कर देखने की समस्या का समाधान फिल्म रिलीज होने के लिए उपयुक्त समय (विंडो) का सवाल महत्त्वपूर्ण  है। अगर फिल्म की ओपनिंग  खाली सप्ताहांत में होती है तब सफल होने का मौका होता है और यह आर्थिक रूप से या समीक्षकों के लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
अगर कोई चीज देखी या सुनी नहीं जाती , तब इसके कमाई करने की संभावना खुद ब खुद कम हो जाती है। इस चुनौती का सामना संगीतकार, अभिनेता और लेखक कर रहे हैं, भले ही उनका काम बढ़ रहा है लेकिन उनकी आमदनी नहीं बढ़ती है।
इसके अलावा व्यवस्थित  फिल्म रिलीज कैलेंडर का सवाल भी  है। अगर फ़िल्में पूरे वर्ष नियमित अंतराल पर जारी होती रहें तब थियेटर और इससे जुड़े तंत्र में पैसा पर्याप्त  बना रहेगा। अप्रैल और मई में आईपीएल और चुनाव के चलते ‘कल्कि’ सहित कई फ़िल्मों की रिलीज टाल दी गई। इस वजह से सिनेमाघरों में दिखाने के लिए बेहद कम विकल्प बचा।
फिल्म उद्योग के जानकारों का मानना है कि अगर फिल्म को ओटीटी पर रिलीज नहीं किया गया होता तब तो सिनेमाघरों के जरिये ही फिल्म बॉक्स ऑफिस पर 120-130 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर लेती।  फिल्म निर्माण के दौरान ही स्ट्रीमिंग कंपनियों के साथ कई करार हो जाते हैं क्योंकि फिल्म निर्माताओं को कार्यशील पूंजी की जरूरत होती है इसलिए रिलीज की तारीखें अनुबंध का हिस्सा होती हैं।
यह केवल फिल्म के बारे में नहीं है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के लोकतंत्रीकरण ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। इसी वजह से दुनिया भर में शो,फिल्में और वीडियो की भरमार है। हमारे पास ‘सामग्री’का अंबार है लेकिन इन्हें देखने के लिए हमारे पास केवल 24 घंटे का ही वक्त है।

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