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Added on : 2023-04-12 16:47:09

महेश झालानी

अगर आलाकमान सचिन पायलट से सख्ती के साथ पेश आता है तो वे तुरूप के इक्के के रूप में तीनों नेता शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ का मुद्दा उठाकर आलाकमान को निरुत्तर कर सकते है । 

ध्यान होगा कि 25 सितम्बर को दिल्ली से आए पर्यवेक्षकों के समानांतर बैठक हुई थी । पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन ने इस बैठक आयोजन के लिए धारीवाल, जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ को अनुशासनहीनता का दोषी माना था । तीनो के खिलाफ कार्रवाई लम्बित है । जबकि सचिन पायलट यह मुद्दा उठा चुके है । उन्होंने प्रेस के जरिये आलाकमान से जानना चाहा कि तीनों दोषी लोगो के खिलाफ कार्रवाई से परहेज क्यो ?

प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि यह प्रकरण उनकी नियुक्ति से पहले का है । इसके अलावा मामला अनुशासन समिति के अधीन होने के कारण वे इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने के लिए अधिकृत नही है । 

ज्ञात हुआ है कि पायलट को अनुशासनहीनता का नोटिस दिए जाने या स्पस्टीकरण मांगना प्रस्तावित है । पायलट का मुख्य तर्क यही होगा कि उपरोक्त तीनो अनुशासनहीनता के आरोपियों के खिलाफ छह माह से कार्रवाई लम्बित क्यो । जहां तक अनशन करने का सवाल है, उनकी ओर से यही तर्क दिया जाना संभावित है कि अनशन सरकार के खिलाफ न होकर तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के भ्रष्ट क्रियाकलापो की जांच लेकर था । 

सूत्र कहते है कि इस दफा पायलट का जवाब यचनापूर्ण न होकर आक्रामक हो सकता है । उनका सवाल होगा कि वसुंधरा के खिलाफ अशोक गहलोत ने सत्ता में आने से पहले आरोप नही लगाए थे ? यदि आरोप लगाए थे पिछले चार साल से अनदेखी क्यो ? विधायको की समानांतर बैठक किसके इशारे और संरक्षण हुई, आलाकमान को स्पस्ट करना चाहिए ।

ऐसा माना जा रहा है कि पायलट यह मुद्दा उठा सकते है कि उनसे जो वादा किया गया था, क्या वह पूरा होगया ? पता यह भी चला है कि पायलट कि ओर से अशोक गहलोत पर सीधा हमला और आरोप लगाए जा सकते है । उनकी ओर से यह तर्क भी दिया जा सकता है कि जब संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सार्वजनिक रूप से बयान जारी कर दिया, इसके बाद भी उन्हें निकम्मा, नकारा आदि किसने कहा, इसकी भी जांच होनी चाहिए । पायलट यह भी पूछ सकते है कि उनकी चिट्ठियों का क्या हुआ ? सरकार की ओर से क्यो नही जवाब दिया गया ?

उधर गहलोत खेमा भी पूरे घटनाक्रम पर नजर गड़ाए हुए है । गहलोत खेमे का मुख्य तर्क यही होगा कि जो व्यक्ति भाजपा के साथ मिलकर उनकी सरकार को गिराने की साजिश में लिप्त हो, क्या उसे मुख्यमंत्री बनाना न्यायोचित है ? वस्तुत अनशन की आड़ में सरकार और पार्टी की छवि को विकृत करना ही पायलट समर्थको का एकमात्र लक्ष्य था ।

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