राकेश दुबे
भारतीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला नया नहीं है। खासकर चुनावी बेला में यह चरम पर होते हैं,लेकिन इस टकराव से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा नहीं आनी चाहिए।युद्ध की तरह राजनीति के भी अपने नियम होते हैं और मुकाबले के लिए बराबरी के अवसर भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। यह भी ज़रूरी है कि सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच संवाद नही टूटना चाहिए ।
बीते गुरुवार देश के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की पत्रकार वार्ता में आरोप लगाए गए कि खाते फ्रीज कर पार्टी को आर्थिक रूप से पंगु बनाने की कोशिश सत्ता पक्ष की ओर से की जा रही है। यूं तो कांग्रेस पिछले पांच वर्षों में लगातार सत्ता पक्ष की रीतियों-नीतियों पर हमलावर रही है,लेकिन फिलहाल कांग्रेस के आरोप गंभीरता से विचार की मांग करते हैं । कांग्रेस का आरोप है कि मुख्य विपक्षी पार्टी को आयकर विभाग की कार्रवाई से वित्तीय संकट की ओर धकेला जा रहा है।यह पहला अवसर है कि पार्टी के तीन शिखर नेता अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में नजर आए।
किसी भी लोकतंत्र की खूबसूरती इस बात में है कि सत्ता पक्ष प्रतिपक्ष को पूरा सम्मान देते हुए कांग्रेस के आरोपों की स्वतंत्र जांच कराए। पार्टी का कहना है कि वह कृत्रिम रूप से पैदा किए गए आर्थिक संकट के कारण न तो विज्ञापन दे सकती है और न अपने नेताओं के लिए हवाई टिकट बुक करा पा रही है। उसे रैलियां भी करने में परेशानी हो रही है।
कांग्रेस के आरोपों से इतर सरकार व आयकर विभाग के अधिकारियों की अपनी दलीलें हैं। गत 13 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट ने आईटीएटी के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें सौ करोड़ से अधिक के बकाया कर की वसूली के लिये कांग्रेस पार्टी को आयकर विभाग से जारी नोटिस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया गया था। हालांकि,हाईकोर्ट ने पार्टी को तब नये स्थगन आवेदन के साथ आईटीएटी का रुख करने की छूट दी थी। ऐसे में इस मुद्दे पर अंतिम राय बनाने से पहले सभी पक्षों के तर्कों पर विचार भी जरूरी है।
सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता ने इन आरोपों को पार्टी की हताशा का परिणाम बताया है। यह भी कहा है कि कांग्रेस के आरोपों से भारतीय लोकतंत्र की छबि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
एक बात साफ होती है कि इससे चुनावों की पारदर्शिता व विश्वसनीयता पर आंच आएगी। विपक्षी दलों के इन आरोपों को भी बल नहीं मिलना चाहिए कि सरकार विपक्ष को दबाने के लिये सरकारी एजेंसियों व विभागों का इस्तेमाल कर रही है । ऐसे आरोपों से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को लेकर अच्छा संदेश नहीं जाएगा।