राजेश बादल
केरल के उच्च न्यायालय ने एक कार्टूनकार को संरक्षण देकर संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की आज़ादी का सम्मान किया है।प्रदेश के बड़े अख़बार मलयाला मनोरमा में प्रकाशित कार्टून भारतीय जनता पार्टी को पसंद नहीं आया।उसके एक पदाधिकारी ने समाचारपत्र के विरुद्ध मामला दर्ज़ कराया।पार्टी ने दावा किया कि राष्ट्रध्वज के रंग को बदलना और महात्मा गाँधी की तस्वीर के साथ टिप्पणी देना दोनों प्रतीकों का अपमान और अपराध है।लेकिन,हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19 (1)(अ)प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी का हक़ देता है।कोर्ट ने राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम,1971 की धारा 2 के तहत दर्ज केस खारिज़ कर दिया।अख़बार के प्रकाशक,संपादक और कार्टूनिस्ट ने बीजेपी की ओर से दर्ज कराए गए मामले पर अदालत की शरण ली थी।न्यायमूर्ति पी वी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि छोटा सा चित्र भी ताक़तवर अभिव्यक्ति है,जो देखने वालों को प्रेरित करता है।कार्टूनिस्ट भी प्रेस और मीडिया का ही हिस्सा हैं।उन्हें भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हासिल है।हालाँकि अनुच्छेद 19(2) के तहत कुछ प्रतिबंध भी हैं,ताकि देश की एकता,अखंडता को नुकसान नहीं हो।मलयाला मनोरमा की ओर से कहा गया कि वे राष्ट्रध्वज और महात्मा गाँधी से उतना ही प्यार करते हैं,जितना मुल्क़ का कोई और नागरिक।
बात यहाँ से शुरू होती है।भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रध्वज और महात्मा गाँधी के कथित अपमान का मुद्दा उठाया था।कौन भूल सकता है कि इस राजनीतिक दल के वैचारिक उदगम स्थल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय में अरसे तक राष्ट्रध्वज नहीं फहराया गया।मान्यता है कि इस राष्ट्रध्वज को वे नहीं मानते थे। इसी तरह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की छबि धूमिल करने के प्रयास भी इस राजनीतिक दल के कार्यकर्त्ता करते रहे हैं।उन्हें देश के बँटवारे का मुजरिम कहा जाता रहा और हिन्दू विरोधी तक कहा गया।इसके अलावा भी उनके ख़िलाफ़ कुप्रचार की सारी सीमाएँ तोड़ दी गईं। तब तो इन दोनों राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति सम्मान की भावना कहीं विलुप्त थी।कोई मामला पंजीबद्ध नहीं कराया गया।ज़ाहिर है कि पार्टी की तीख़ी आलोचना मलयाला मनोरमा के पन्नों पर रहती है,जो दल के नियंताओं को रास नहीं आती।
दरअसल भारतीय पत्रकारिता का राजनेताओं को अहसानमंद होना चाहिए कि वह अभी भी पश्चिम और यूरोपीय पत्रकारिता की शैली से दूर है।जिस दिन वह उस तर्ज़ पर काम करने लगेगी,उस दिन सियासत की कालिख भरी विकराल तस्वीर देश के लोगों के सामने आएगी।अभिव्यक्ति की आज़ादी का दुरूपयोग करना अभी उसे नहीं आया है।अभी तो उसे अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हक़ का सही इस्तेमाल करना ही सीखना है।जिस दिन उसने ऐसा शुरू कर दिया,वह भारत के सियासतदानों के लिए बेहद कठिन घड़ी होगी।इसलिए राजनेताओं को चाहिए कि वे पत्रकारिता को स्वस्थ आलोचक के रूप में लें। निंदक नियरे राखिए के उद्धरण को याद रखते हुए वे लोकतंत्र के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझेंगे तो देश का भला करेंगे और अपना भी।यह पत्रकारिता के लिए भी सबक़ है कि वह राजनीति का पिछलग्गू न बने,चारण शैली छोड़ दे अन्यथा उनके भी दुर्दिन शुरू हो जाएंगे मिस्टर मीडिया !