प्रमोद भार्गव
सिंधिया की मुसीबतें बढ़ती लग रही हैं। उन्हें उनके लंबे समय तक सिपहसालार रहे बैजनाथ सिंह यादव ने बड़ा झटका दिया है। वे बीते सप्ताह बड़ी धूमधाम से कांग्रेस में षामिल हो गए। षिवपुरी के यादव बहुल कोलारस क्षेत्र के दिग्गज माने जाने वाले नेता बैजनाथ एक बड़े काफिले के साथ भोपाल पहुंचे। उनके काफिले में करीब 500 वाहन थे। प्रदेष कांग्रेस कार्यालय भोपाल में उनके आगमन की प्रतीक्षा में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, अरुण यादव और जयवर्धन सिंह तैयार खड़े थे। एक बड़ा मंच बनाकर उन्हें कांग्रेस की सदस्यता दिलाई गई। हालांकि मूल रूप से बैजनाथ पीढ़ियों से कांग्रेसी ही रहे हैं। 2020 में सिंधिया ने जब कांग्रेस से बगावत कर भाजपा का हाथ थामा था, तब बैजनाथ भी भाजपा में षामिल हो गए थे। अतएव षामिल होने की औपचारिकता को बैजनाथ ने इस परिवर्तन को घर वापसी की संज्ञा दी और कहा कि मैं बीजेपी में घुटन महसूस कर रहा था। अब चैन की सांस मिली है। हालांकि उनका यह दल बदल सीधे-सीधे कोलारस विधानसभा सीट से टिकट मिल जाने की उम्मीद में हुआ है। भाजपा में बीजेपी को एक ओर बड़ा झटका महाकौषल क्षेत्र के पूर्व विधायक धु्रव प्रताप सिंह ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर दिया है। साथ ही उन्होंने बेबाकी से ऐलान भी कर दिया कि वे कांग्रेस में षामिल हो सकते हैं। सिंह कटनी जिले की विजयराघव गढ़ विधानसभा से विधायक रहे हैं। उन्होंने पार्टी पर अनेक आरोप भी लगाए। भाजपा के प्रदेष अध्यक्ष बीडी शर्मा को पत्र लिखकर कहा कि आपके कार्यकाल में पार्टी और संगठन अपने मूल सिद्धांतों से भटक गई है।
विधानसभा चुनाव के निकट आते-आते भाजपा में विद्रोह के स्वर मुखर हो रहे हैं। लेकिन आष्चर्य है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान अपनी जगह पूरी दमखम के साथ खड़े हैं। उनका आभामंडल लाडली बहना योजना के बाद और निखार पर हैं। शिवराज की वोटर को लुभाने की ताकत निरंतर बढ़ रही है। कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पूरी होती नहीं दिख रही। बल्कि कहा जाए तो 2023 के चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान सिंधिया को अपने ही गढ़ ग्वालियर-अंचल में होने जा रहा है। बैजनाथ और मुगांवली के यादवेंद्र सिंह यादव ने भाजपा छोड़ कांग्रेस में जाकर इस बात की तस्दीक कर दी है कि सिंधिया की ताकत का क्षरण हो रहा है। सिंधिया की तरह ही प्रदेष अध्यक्ष बीडी षर्मा की स्थिति है। हालात इस हाल में पहंुच गए हैं कि भाजपा एक सिरा सुधारने की कोषिष करती है तो दूसरे सिरे में बगावत में कोई न कोई सिर उठ खड़ा होता है। भाजपा के लिए सबसे अच्छे हालात मालवा क्षेत्र में हैं और सबसे बड़ी चुनौती ग्वालियर और विंध्य क्षेत्र में है। इन्हीं क्षेत्रों को सिंधिया और शर्मा का गढ़ माना जाता है।
जिन बैजनाथ यादव को कांग्रेस में बड़े जश्न के साथ शामिल किया गया है, वे मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में बदरवास से जनपद अध्यक्ष और जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहने के साथ जिला कांग्रेस के भी अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने अपनी करिष्मई चतुरई के चलते अपनी पत्नी कमला बैजनाथ यादव को जिला पंचायत का अध्यक्ष बनवाकर स्वयं पांच साल पंचायत की अध्यक्षी भी की है। इन वजहों से क्षेत्र में उनका प्रभाव कायम है। हालांकि भोपाल में जिस काफिले को लेकर बैजनाथा पहुंचे थे, उसमें बड़ा योगदान जिला कांग्रेस के अध्यक्ष विजय सिंह चैहान का भी रहा है। बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि बैजनाथ को आसानी से टिकट मिल जाएगा। यादव बहुल कोलारस में यादव प्रत्याषी के समक्ष यादव ही चुनौती बनकर खड़े हो जाते हैं। लिहाजा रामकुमार सिंह यादव भी कांग्रेस से कोलारस विधानसभा का टिकट के प्रबल दावेदार हैं। उनके साथ सबसे बड़ प्लस पाइंट है कि कांग्रेस से उनकी कभी निश्ठा नहीं डिगी। जबकि उनके चाचा लाल सिंह यादव का परिवार भी कांग्रेस का समर्थक पीढ़ियों से रहा है। सिंधिया से जितनी निकटता बैजनाथ की है, उतनी ही रामकुमार और उनके परिवार की भी रही है। लिहाजा कमलनाथ जैसा कि दावा कर रहे है कि उम्मीदवार के चयन में प्रत्याषी की कांग्रेस के प्रति निश्ठा भी देखी जाएगी। ऐसा होता है तो रामकुमार का पलड़ा भारी दिखाई देगा। बहरहाल उम्मीदवार जो भी हो, कांग्रेस यादव को ही टिकट देगी। जिससे पूरे ग्वालियर-अंचल में यादवों को लुभाया जा सके।
दरअसल भाजपा करीब 20 साल से प्रदेष की सत्ता में है, नतीजतन वर्तमान में जबरदस्त सत्ता विरोधी वातावरण का अनुभव कर रही है। इसलिए वह मानकर चल रही है कि इस बार मुकाबला कड़ा होने वाला है। समाज के अनेक वर्गों के अलावा षिक्षित बेरोजगार युवा बड़ी संख्या में भाजपा से नाराज है। दूसरी तरफ राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से कांग्रेस कार्यकताओं में जुनून सवार हो गया है। युवा वोट बैंक का झुकाव कांग्रेस के पक्ष में बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए भाजपा सिंधिया का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने की मंषा पाले हुए थी, जिसे पलीता लगता नजर आ रहा है। दरअसल ज्योतिरादित्य की खिलाफत मूल भाजपाईयों और संघ के कार्यकर्ताओं में तो बढ़ ही रही है, जो कांग्रेसी सिंधिया के साथ भाजपा में गए थे, वे भी कांग्रेस का रुख करने लग गए हैं। इस कारण सिंधिया का असर भाजपा और जनता में बेअसर दिखाई देने लगा है। कार्यकर्ता और मतदाता की इस मंषा को षायद षिवराज ने भी भांप लिया है, इसलिए उनके मंच पर अब सिंधिया कम से कम दिखाई दे रहे हैं।