माधव राव सप्रे की पत्रकारिता पर दो दिनी राष्ट्रीय विमर्श
-----------------------------------------
भोपाल का माधवराव सप्रे स्मृति समाचार संस्थान हिन्दुस्तान ही नहीं ,समूचे विश्व में अनूठा है। यहाँ करोड़ों पन्नों में इस मुल्क़ की अदभुत और दुर्लभ दास्तानें सुरक्षित हैं। पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने यह अनमोल उपहार हमें सौंपा है। इसी नायाब अभिलेखागार में माधवराव सप्रे की याद में ग्यारह और बारह मई को शानदार जलसा हो रहा है। इसमें देश भर के अनेक विद्वान हिस्सा लेने आ रहे हैं। प्रसंग के तौर पर बता दूँ कि सप्रे जी पत्रकारिता के ऐसे पूर्वज हैं ,जिन्होंने महात्मा गांधी से भी कई बरस पहले पूर्ण स्वराज और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अभियान छेड़ा था। सुबह ग्यारह बजे पहले सत्र में सप्रे जी के योगदान पर मैं अपने विचार रखूँगा। आप सबको इसमें पधारने का न्यौता है।
अब बात हो जाए सप्रे जी की पत्रकारिता के बारे में।
आज़ादी से पहले हिंदी और हिंदी पत्रकारिता के विकास में ग़ैर हिंदीभाषियों का योगदान अदभुत और अविस्मरणीय है।इनमें महात्मा गांधी ,कन्हैया लाल मानक लाल मुंशी , सी राजगोपालाचारी ,प्रेमचंद और सरदार भगत सिंह जैसे कई नाम हैं। लेकिन माधवराव सप्रे का नाम सबसे ऊपर है। उस ग़ुलाम हिन्दुस्तान में उन्होंने कलम और विचारों से लोगों को जगाने का जो काम किया,दुनिया के इतिहास में उसकी कोई मिसाल नहीं है।दरअसल माधव राव सप्रे भारतीय स्वाधीनता संग्राम के क्षितिज पर महात्मा गांधी के उदय से पहले बहुत बड़ा नाम था। उन्होंने 13 अप्रैल 1907 से लोकमान्य तिलक के लोकप्रिय मराठी केसरी का हिंदी में हिंदी केसरी नाम से प्रकाशन किया।इसका उद्देश्य था - राजनीतिक ग़ुलामी दूर करके पूर्ण स्वराज प्राप्त करना। हिंदी केसरी में स्वतंत्रता सेनानियों का खुला समर्थन होता था ,स्वराज हासिल करने के तरीक़ों पर वैचारिक आलेख छपते थे। स्वदेशी का प्रचार और विदेशी का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित करने वाला साहित्य छपता था। गोरी सरकार ये तेवर बर्दाश्त नहीं कर पाई। आख़िरकार सप्रे जी और सहयोगी संपादक कोल्हटकर को गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर राजद्रोह का मुक़दमा चलाया गया।वे जेल में डाल दिए गए।
अलौकिक आभा से पत्रकारिता दमकती है
************************
पर, हिंदी केसरी उनका पहला शाहकार नहीं था।हिंदी केसरी से साल भर पहले उन्होंने नागपुर से मई 1907 में हिंदी ग्रन्थमाला का प्रकाशन शुरू किया था।इसके लिए हिंदी ग्रन्थ प्रकाशन मण्डली का गठन किया गया था। उसमें भारत को आज़ाद कराने वाले ओजस्वी लेख प्रकाशित किए जाते थे।इस कड़ी में सप्रे जी के एक आलेख स्वदेशी आंदोलन और बायकॉट ने तो अवाम को झकझोर दिया था। जिस अंक में यह लेख छपा था ,उस पर बंदिश लगा दी गई थी।ऐसे ही तेज़ तर्राट लेखों ने गोरी हुकूमत को हिला दिया था।गोरे इनसे भयभीत रहते थे।अँगरेज़ सरकार ने डाकख़ाने से उन ग्राहकों के डाक के पते हासिल किए,जिन्हें हिंदी ग्रंथमाला के अंक भेजे जाते थे। फिर उन्हें मजबूर किया गया कि वे सप्रे संपादित ग्रंथमाला को मँगाना बंद कर दें।यही नहीं ,सरकारी कर्मचारियों से कहा जाता था कि वे इन अंकों को पढ़ना बंद कर दें। यदि उनके पास ये अंक पाए जाते तो उन्हें नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया जाता। इसके बाद पुलिस उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज़ करती और तीन साल के लिए वे जेल में डाल दिेए जाते । हिंदी ग्रंथमाला से पहले उन्होंने छत्तीसगढ़ के पेंड्रा रोड से सन 1900 की जनवरी में छत्तीसगढ़ मित्र का प्रकाशन प्रारंभ किया था।यह एक वैचारिक पत्रिका थी। कहा जा सकता है कि हिंदी में समालोचना का प्रारंभ छत्तीसगढ़ मित्र ने ही किया। हिंदी के अनेक जानेमाने लेखक इस पत्रिका में लिखते थे।
सप्रे जी ने 1904 में अर्थशास्त्र जैसे कठिन विषय की आसान शब्दावली तैयार कर दी थी । इस शब्दावली में अँगरेज़ी के 1320 शब्दों के लिए हिंदी के 2115 नए शब्द गढ़े गए थे। दो साल बाद यह वैज्ञानिक शब्दकोश छप कर सामने आया।हिंदी भाषा इसके बाद बेहद अमीर हो गई।माधवराव सप्रे ने अपने छत्तीसगढ़ मित्र में छह कहानियाँ लिखीं। बाद में इन कहानियों को देवी प्रसाद वर्मा ने एक संकलन के रूप में प्रकाशित किया। इनमें एक टोकरी भर मिट्टी को हिंदी की पहली मौलिक कहानी माना गया।बताने की ज़रूरत नहीं कि एक भारतीय आत्मा के नाम से विख्यात दादा माखनलाल चतुर्वेदी ,मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र और संविधान सभा के सदस्य रहे महान हिंदी सेवी सेठ गोविन्द दास के लेखन और पत्रकारिता को सप्रे जी ने ही तराशा था।पिछले साल इन्ही विलक्षण माधवराव सप्रे के जन्म का डेढ़ सौवां साल था। संलग्न आमंत्रण ।
राजेश बादल