राकेश दुबे
और सेहत के सौदागरों ने ‘आयुष्मान भारत’ योजना जैसी कल्याणकरी योजना में भी भ्रष्टाचार का अवसर खोज लिया है। निजी अस्पताल लाखों रुपए कमा रहे हैं। फर्जी इलाज किए जा रहे हैं और बीमे के क्लेम भी फर्जी हो रहे हैं। निजी अस्पतालों की सिंडिकेट लॉबी ने डॉक्टरों को भी भ्रष्ट और अनैतिक होने पर विवश कर दिया है। हालत यह है यदि आप अस्वस्थ हैं और अस्पताल जाने की नौबत आ, तो अस्पताल वाले सबसे पहला सवाल यही करते हैं “आयुष्मान कार्ड है?”
‘आयुष्मान कार्ड’ के जरिए भारत सरकार 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज सुनिश्चित करती है, लिहाजा अस्पताल उस कार्ड के जरिए सरकार से बीमे का क्लेम वसूल लेते हैं। सेहत के सौदागरों ने आयुष्मान के माध्यम से अपनी अतिरिक्त आमदनी का रास्ता खोज लिया है और उसका भरपूर दोहन किया जा रहा है। हाल ही में गुजरात के एक निजी मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल का एक मामला सामने आया है। सेहत की जांच का निशुल्क शिविर लगाया गया। वह छलावा था। गांवों से 19 ऐसे लोगों को, उनकी सेहत की सम्यक जांच के नाम पर, अस्पताल तक लाया गया, जो आयुष्मान कार्डधारक थे। उनमें से 7 लोगों को इलाज के तौर पर भरमाया गया और ‘एंजियोप्लास्टी’ का ऑपरेशन कर उनके दिल में स्टेंट डाल दिए गए। उन लोगों को दिल की कोई बीमारी पहले से नहीं थी। उन कथित मरीजों के परिजनों को जानकारी तक नहीं दी गई और न ही कोई लिखित, हस्ताक्षरी सहमति ली गई।
कमाल तो यह है कि भारत सरकार के संबद्ध विभाग की अनुमति भी कुछ ही घंटों में हासिल कर ली गई। यह अनुमति अमूमन दो दिनों में मिलती है। इन ऑपरेशनों का नतीजा यह हुआ कि दो कथित मरीजों की मौत हो गई और 5 अन्य आईसीयू में इलाजरत हैं। डॉक्टर के पेशे से, अनैतिक अपराध किया गया, बल्कि यह तो हत्या का मामला बनता है। लालच था कि जो ऑपरेशन किए गए, उनके एवज में भारत सरकार से अच्छा-खासा पैसा मिल जाएगा। मौजू सवाल यह है कि क्या ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर वाकई ‘कॉर्डियोलॉजिस्ट’ थे? क्या ऑपरेशन करना जरूरी था? क्या स्टेंट बेहतर क्वालिटी के थे अथवा सस्ते, घटिया स्टेंट डाल कर मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ किया गया? डॉक्टर फरार बताए जा रहे हैं, लेकिन उनकी पेशेवर मान्यता का क्या होगा? क्या मान्यता रद्द की जाएगी और डॉक्टर के खिलाफ हत्या का केस चलाया जाएगा? इस संदर्भ में सबसे बड़ा और काला खलनायक तथा अपराधी तो अस्पताल प्रबंधन है।
बेशक अस्पताल की मान्यता खारिज न की जाए, लेकिन मौजूदा प्रबंधन को तुरंत प्रभाव से बर्खास्त किया जाना चाहिए। अस्पताल में निकट अतीत में आयुष्मान कार्डधारकों के कितने मामले आ चुके हैं, उनकी बीमारी क्या थी अथवा वे बीमार ही नहीं थे, क्या जबरन ऑपरेशन किए गए, इन तमाम पहलुओं की विस्तृत जांच की जानी चाहिए।
भारत सरकार के संबद्ध विभाग के अधिकारियों की भी गहन जांच की जानी चाहिए कि कहीं सांठगांठ और मिलीभगत, पैसे के लेन-देन की सचाई तो नहीं थी! भारत सरकार ने आयुष्मान कार्ड का दायरा बढ़ाया है। अब 70 साल की उम्र वाला प्रत्येक नागरिक यह स्वास्थ्य बीमा पाने का पात्र है। करीब 5 लाख लोगों ने विस्तारित योजना के तहत अपना पंजीकरण भी करा लिया है। करीब 6 करोड़ बुजुर्ग भारतीय इस नई योजना से लाभान्वित होंगे। देखना होगा कि भ्रष्ट व्यवस्था और नैतिक पतन का शिकार यह योजना भी होगी अथवा नहीं। आयुष्मान की विस्तारित योजना के लिए अलग से किसी बजट का प्रावधान अभी नहीं किया गया है। यकीनन यह योजना बेहद मानवीय और अद्वितीय है, लेकिन राज्यों की ढिलाई, सरकारी अस्पतालों में साधनहीनता और भेड़-बकरी की तरह भीड़, लिहाजा आम आदमी की बढ़ती उदासीनता, निजी अस्पतालों के ऐसे भ्रष्ट और अनैतिक सौदागर, बूढ़े लोगों का अशिक्षित और शारीरिक तौर पर अक्षम होना ऐसे सवाल हैं, जो सोचने को बाध्य करते हैं। आयुष्मान योजना में ही भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। बहरहाल यह जो मामला बेनकाब हुआ है, उसमें ऐसी कठोर कार्रवाई की जाए कि सौदागरी करने वाले ही भूल जाएं। कमोबेश डॉक्टर के पेशे को तो दैवीय और पवित्र रहने दो। मोदी दावा करते रहे हैं, कि उनके राज में भ्रष्टाचार कम हुआ है, लेकिन यह मामला इस दावे की पोल खोलता है।