भारत में माहवारी को लेकर जागरुकता का अभाव है, जो स्वास्थ्य से संबंधित कई समस्याओं कारण बन सकता है. खासतौर से ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं में इसे लेकर कई तरह की भ्रांतियां देखने को मिलती हैं. संभवत: यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों में अब तक सैनिटरी नैपकिंस के इस्तेमाल को लेकर अब भी बहुत कम जागरुकता है. हालांकि इसके पीछे एक कारण सैनिटरी नैपकिन की लागत भी है. ग्रामीण इलाकों में रहने वाली हर महिला इसका खर्च नहीं उठा सकती. ऐसे में असम के सिलचार से सांसद सुष्मिता देव ने सभी महिलाओं तक किफायती दाम में सैनिटरी नैपकिंस उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया और सैनिटरी नैपकिंग को 100 फीसदी टैक्स फ्री करने के लिए एक पिटीशन डाला है. the change.org के मुताबिक देश की 255 मिलियन महिलाओं में सिर्फ 12 फीसदी महिलाएं ही सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं. इसके पीछे के महत्वपूर्ण कारणों में एक कारण है सैनिटरी नैपकिंस की कीमत. देश की 70 फीसदी महिलाएं इसे नहीं खरीद सकतीं.
भारत में माहवारी को लेकर जागरुकता का अभाव है, जो स्वास्थ्य से संबंधित कई समस्याओं कारण बन सकता है. खासतौर से ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं में इसे लेकर कई तरह की भ्रांतियां देखने को मिलती हैं. संभवत: यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों में अब तक सैनिटरी नैपकिंस के इस्तेमाल को लेकर अब भी बहुत कम जागरुकता है. हालांकि इसके पीछे एक कारण सैनिटरी नैपकिन की लागत भी है. ग्रामीण इलाकों में रहने वाली हर महिला इसका खर्च नहीं उठा सकती. ऐसे में असम के सिलचार से सांसद सुष्मिता देव ने सभी महिलाओं तक किफायती दाम में सैनिटरी नैपकिंस उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया और सैनिटरी नैपकिंग को 100 फीसदी टैक्स फ्री करने के लिए एक पिटीशन डाला है. the change.org के मुताबिक देश की 255 मिलियन महिलाओं में सिर्फ 12 फीसदी महिलाएं ही सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं. इसके पीछे के महत्वपूर्ण कारणों में एक कारण है सैनिटरी नैपकिंस की कीमत. देश की 70 फीसदी महिलाएं इसे नहीं खरीद सकतीं.