डॉ. सुधीर सक्सेना
पवन कल्याण सिनेस्टार हैं। तेलुगु फिल्मों के लोकप्रिय और चहेते सितारे। उनके लिए दीवानगी की एक बानगी मैंने अपने विशाखापटनम प्रवास में देखी। जब उनकी एक झलक पाने के लिए हजारों युवक-युवतियां आरके बीच पर नोवोटेल होटल के नीचे जमा थे। पवन कल्याण जब कुछ देर के लिए होटल की खिड़की या टैरेस पर नमूदार थे, जन सैलाब में बिजलियाँ दौड़ जातीं और हर्षध्वनियों का कोलाज उभर उठता। यह अनूठा और यादगार नजारा था।
यह तबकी बात है, जब तीन घोड़ों से जुती चुनावी त्रोइका ने आकार नहीं लिया था। बात चल रही थी। चंद्रबाबू अपने जीवन के कठिन दौर से गुजर रहे थे। सत्ता से निर्वासित और लांछित बाबू तब सरकारी एजेंसियों के निशाने पर थे। वह जानते थे कि बिना जद्दोजहद के वह मुश्किलों से निजात न पा सकेंगे। याईएसआर कांग्रेस पार्टी से अकेले के बूते पार पाना कठिन था। कांग्रेस न तीन में थी, न तेरह में। सहयोगी जुटाने थे। बहस- मुबाहसे का लंबा दौर चला, जिसकी परिणति बीजेपी और जेएसपी के साथ 'त्रोइका' में हुई। इस त्रिदलीय गठबंधन में चंद्रबाबू बड़े भाई की भूमिका में थे। साथ थी बीजेपी और सबसे छोटे भाई के किरदार में थे पवन कल्याण, जनसेना पार्टी के संस्थापक नेता। पवन का ट्रैक-रिकार्ड बाबू के सामने था। पहली इनिंग में पवन बुरी तरह फ्लॉप रहे थे। उन्होंने अपनी पहली पारी अपने सिने अभिनेता बड़े भैया चिरंजीवी की प्रजाराज्यम पार्टी से प्रारंभ की थी। टूर, चैरिटी और पब्लिसिटी में उन्होंने कोई कोर कसर नहीं उठा रखी थी। किन्तु कुछ काम न आया। प्रजाराज्यम से विदाई के बाद उन्होंने जनसेना पार्टी (जेएसपी) की स्थापना की थी। सन 2019 में वह गाजे-बाजे के साथ चुनाव मैदान में उतरे। सारी सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये। स्वयं दोे सीटों - गजुवाका और भीमावरम से चुनाव लड़ा। लेकिन प्रथम ग्रासे मक्षिका पात: का दृष्टांत घटित हुआ। पवन दोनों सीटों से हारे। जेएसपी का सिर्फ एक विधायक निर्वाचित होकर सदन में पहुंचा।
कोई और होता तो उसने सियासत से तौबा कर ली होती, मगर पवन ने धैर्य बरता। उन्होंने आपा नहीं खोया। वह कह सकते थे कि अंगूर खट्टे हैं, लेकिन उन्होंने तिनका- तिनका जोड़कर आशियाना बनाया। चंद्रबाबू ‘अण्णा’ बनकर सामने आये। जेएसपी ने विधानसभा की 21 सीटों और लोकसभा की दो सीटों पर चुनाव लड़ा। मजा देखिये कि उनके सभी प्रत्याशी चुनाव जीत गये। जेएसपी की टिकट पर दो सांसद चुने गये और 21 एमएलए। इसे भारत के इतिहास की अनूठी घटना कहेंगे। शत-प्रतिशत स्ट्राइकिंग-रेट। सफलता में दशमलव की भी न्यूनता नहीं। चुनाव मैदान में पनन कल्याण कुछ यूं चले पवन की चाल कि अनूठा और अपूर्व कर्तिमान रच गया। कुल जमा 175 में से त्रयी की 164 सीटें। स्ट्राइकिंग-रेट 93 फीसद। विजयवाड़ा में जेएसपी विधायक दल ने पवन को अपना नेता चुन लिया। अभूतपूर्व समर्थन से अभिभूत चंद्रबाबू ने पवन को उपमुख्यमंत्री जैसे सम्मानित पद से नवाजा। 10 जून को विजयवाड़ा में हुई तीनों दलों की बैठक में चंद्रबाबू ने पवन को लक्षित कर भावविह्वल स्वरों में कहा- ‘आप लोगों ने देखा कि पवन झोका नहीं, वरन तूफान है’। उस बीच एक दूरगामी महत्व की घटना यह घटी कि जेएसपी ने मोदी सरकार में शामिल होने के बजाय उसे बाहर से समर्थन देने का फैसला किया। आंध्र प्रदेश का पुनर्गठन और जनसेना पार्टी के गठन कुछ ही माह आगे-पीछे की घटनाएं हैं। दोनों ही घटनाएं सन 2014 के ग्रीष्म में हुई। थोड़ा आगे-पीछे । 14 मार्च सन 2014 को पवन कल्याण ने जनसेना पार्टी की स्थापना की। प्रजाराज्यम के असफल प्रयोग के उपरांत यह एक साहसिक फैसला था। नवजात पार्टी का मुख्यालय बना हैदराबाद में जुबिली हिल्स में प्रशांत नगर स्थित बंगला। लातिनी अमेरिका के प्रखर आर जुझारू वामपंथी नेता चे ग्वेरा से प्रभावित पवन ने छात्र, युवक और महिला विंग भी खोले। उनके नाम रखे गये भगतसिंह स्टूडेंट यूनियन, आजाद युवा सेना विभागम और झाँसी वीर महिला विभागम। उनकी रीति- नीति सोशल मीडिया पर सद्य प्रचारित उनकी हिन्दुत्ववादी छवि से कतई मेल नहीं खाती। उनके सफेद झंडे में लाल गोला और तारा तथा लाल पट्टी है। यही नहीं, 2019 के चुनाव में मनुवाद विरोधी बसपा और लेफ्ट पार्टियां उनकी सहयोगी थीं।
पवन कल्याण सिने स्टार रहे हैं। सितारा होने का मतलब है जीवन में ऐश्वर्य। सितारों के पांव प्राय: जमीं पर नहीं पड़ते, लेकिन पवन को नाजोनखरोें के अभ्यस्त ऐसे नकचढ़े सितारों की पांत में खड़ा नहीं किया जा सकता। उनकी जिंदगी सरोकार से गुंथी रही है और ये सरोकार ही उन्हें अलग पायदान पर खड़ा करते हैं। पवन का अभिनेता से नेता तक का सफर बहुत ुदलचस्प है। उन्होंने अभिनय की शुरूआत तेलुगु फिल्म 'अक्कड़ा अन्नाई, इक्कड़ा अब्बाई' फिल्म से की। दो सितंबर, सन 1967 में आंध्र में बापतला में जनमे पवन बेहद सफल फिल्मी शख्सियत हैं और अपने बेहतरीन अभिनय और मैनरिज्म के लिए जाने जाते हैं। अनेक सम्मानों से नवाजे गये पवन को फोर्ब्स ने अव्वल सौ सेलिब्रिटीज की सूची में स्थान दिया। उन्हें दक्षिण का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। उनके फिल्मी जीवन की शुरूआत सन 1996 में हुई। तीन साल में ही वह छलांग लगाकर सितारों में नीहारिका में शामिल हो गये। थोली प्रेमा, थम्मुडु, गुडुम्बा, शंकर, बद्री, गब्बरसिंह, जानी, कुशी, बालू, गोपाला-गोपाला, वकील साब, भीमला नायक, अत्तारिंतिकी दरेदी आदि फिल्मों ने उन्हें टालीवुड में अग्रणी कलाकार तौर पर स्थाई प्रतिष्ठित कर दिया। प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि पवन चिरंजीवी और नागेन्द्र बाबू के छोटे भाई हैं तथा अल्लू अर्जुन, रामचरण, वरुण तेजे, साई धरम तेज, अल्लू शिरीष, वैष्णव तेज और नीहारिका के काका हैं। नेल्लोर के सेंट जोसेफ हाईस्कूल में पढ़े पवन और कराटे में ब्लैक बेल्ट पवन ने सन 2008 में राजनीति में पदार्पण किया। उन्होंने अग्रज चिरंजीवी की प्रजाराज्यम पार्टी की युवक शाखा युवाराज्यम की कमान संभाली। सन 2011 में प्रजाराज्यम के कांग्रेस में विलय के बाद उन्होंने गूढ़ मंत्रणा के बाद जनसेना पार्टी की नींव डाली। उन्होंने अपनी विचारधारा की अभिव्यक्ति के लिए एक किताब लिखी। शीर्षक था ‘इज्म’। तदंतर भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिले और ‘कांग्रेस हटाओ, आंध्र बचाओ’ आंदोलन में उन्होंने खुद को झोंक दिया। उनकी सभाओं में खूब भीड़ उमड़ी। अक्टूबर सन 2017 में उन्होंने पूर्णकालिक राजनीति की मंशा जाहिर की। प्रदर्शनों और भूख हड़ताल से उन्होंने उड्डानम में गुर्दों की बीमारी की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया। उनकी सक्रियता से राज्य सरकार की नींद टूटी। उन्होंने ड्रेजिंग कापोर्रेशन आॅफ इंडिया के निजीकरण की केंद्र सरकार की योजना का विरोध किया। रायल सीमा में किसानों की खुदकुशी और पलायन को लेकर उन्होंने कूच का नेतृत्व किया । भूमि कानून को लेकर वह टीडीपी सरकार के विरोध में खड़े हुए और राजमुंद्री में दौलेश्वरम बराज को लेकर उन्होंने विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। ईस्ट गोदावरी जिले में आरक्षित वन में अवैध खनन के खिलाफ भी उन्होंने मोर्चा बाँधा।
सन 2019 में उन्होंने राजमुंद्री में ही लोकलुभावन मैनीफेस्टो जारी किया और 140 प्रत्याशी खड़े किये। चुनाव प्रचार के दौरान गन्नावरम एअरपोर्ट पर वह निर्जलीकरण का शिकार हुए और उन्हें विजयवाड़ा के अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। स्वस्थ होते ही वह फिर प्रचार पर निकल पड़े। चुनाव में बुरी तरह विफलता से भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और तीन साल दूरी करने के बाद जनवरी सन 2020 में बीजेपी से राजनीतिक गलबांह का एलान कर दिया। उनका धैर्य रंग लाया। सन 24 के चुनाव में उन्होंने इतिहास रच दिया। पीथापुरम से वह 70,000 से अधिक मतों से जीते। उनकी शिक्षा हाईस्कूल तक सीमित है, लेकिन सन 2017 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने उन्हें व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया। चुनाव में शत- प्रतिशत सफलता की नजीर स्थापित कर पवन कल्याण निश्चित ही सियासत की बेनजीर शख्सियत के तौर पर उभरे हैं।