Know your world in 60 words - Read News in just 1 minute
हॉट टोपिक
Select the content to hear the Audio

Added on : 2022-11-05 22:37:07

यों तो भोपाल के सप्रे संग्रहालय का नाम आते ही, पद्मश्री से सम्मानित एक ऐसे व्यक्तित्व का चेहरा हमारे सामने  चलचित्र की भाँति तैर उठता है। जिन्हें हम विजयदत्त श्री धर के नाम से जानते हैं। एक ऊंचा पूरा तना  हुआ शरीर। ज्ञानकोष से परिपूर्ण - विनम्रता एवं आत्मीयता में बारहमासी फल देने वाले वृक्ष के समान,  विद्वता की मूर्ति , सह्रदयता के पर्याय , सबको स्नेहबन्ध में बाँधने वाली शख्सियत विजयदत्त श्रीधर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व में अद्भुत साम्य का दर्शन स्वमेव
हो जाता है।  मेरा मानना है कि - सदाबहार मुस्कान एवं गङ्ग जलधार की तरह सबको ज्ञान-विवेक बुद्धि से आप्लावित कर उज्ज्वल भविष्य की राह दिखाने वाले वे अपने आप में चलती फिरती हुई एक सांस्कृतिक धरोहर हैं। 

पत्रकारिता के प्रपितामह माधवराव सप्रे की स्मृति में स्थापित —  'माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान भोपाल' अपने आप में मध्यप्रदेश ही नहीं वरन् सम्पूर्ण राष्ट्र की उस धरोहर के रूप में स्थापित हो चुका है। जो वर्तमान एवं भावी भारत को गढ़ने में योगदान देगा। और इस धरोहर के कर्ताधर्ता एवं नियन्ता होने का श्रेय श्री विजयदत्त श्रीधर को दिया जाता है।  १० अक्टूबर १९४८ को म.प्र. के नरसिंहपुर जिले के बोहानी गाँव में जन्मे विजयदत्त श्रीधर के पिता पं. सुन्दरलाल श्रीधर स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं गांधीवादी विचारधारा के कार्यकर्ता थे। माता कृष्णा देवी एवं  पिता पं. सुन्दरलाल श्रीधर  की स्वाध्याय के प्रति गहरी रुचि एवं रचनात्मक गोद में पले - बढ़े विजयदत्त श्रीधर जी की बाल्यकाल से ही अध्ययन में खासी रुचि होने लगी थी। घर के पुस्तकालय में वे श्रेष्ठ पुस्तकें पढ़ने लगे,  और उनकी यही ज्ञान पिपासा एवं जिज्ञासु प्रवृत्ति ने उनके जीवन को ऐतिहासिक बना दिया। और वे अथक- अविराम चलते हुए - नई पीढ़ी को सर्जनात्मकता की धरोहर सौंपने के लिए अग्रसर है।

माता-पिता के पुस्तकालय में स्वाध्याय से शुरू हुई उनकी यात्रा अपने आप में भारत के पहले एवं अनूठे शोध केन्द्र के रुप में दर्ज हो चुके - ' माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान' के संस्थापक निदेशक के रुप में गतिमान है। इस संग्रहालय में सन् २०१९ तक - १ लाख ६६ हजार पुस्तकें, २६ हजार शीर्षक समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं उपलब्ध हैं।‌‌ ५ करोड़ पन्नों  से अधिक की यह सामग्री अपने आप में अद्वितीय स्थान रखती है। साथ ही लगभग १०००  की संख्या में शोधार्थियों ने यहांं से शोध पूर्ण किया है। सप्रे संग्रहालय एवं शोध संस्थान को एक वाक्य में परिभाषित करते हुए कहते हैं कि — " यह संग्रहालय भारत के  रोजमर्रा के घटनाक्रमों का जीवन्त साक्ष्य है - यह जिन्दा इतिहास है।
आंचलिक पत्रकार संघ के इस स्वरूप के पीछे संघ  द्वारा  प्रदेशभर में पत्रकारों की लेखन शैली एवं पत्रकारिता को धार देने के लिए आयोजित किए जाने वाले प्रशिक्षण शिविरों की महती भूमिका थी। उन्होंने उस समय  सम्पूर्ण म.प्र. के विभिन्न स्थानों पर लगभग १०० के करीब प्रशिक्षण शिविर लगवाए जहां ' जनहितकारी ' पत्रकारिता का शिक्षण प्रशिक्षण दिया जाता था। मध्यप्रदेश में जब सागर एवं जबलपुर में पत्रकारिता के पाठ्यक्रमों की शुरुआत हुई, उस समय उन्हें  'हिन्दी ग्रन्थ अकादमी' मध्यप्रदेश ने म.प्र. की पत्रकारिता का इतिहास लिखने की जिम्मेदारी दी।  और उन्होंने इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए अपने  पांच -छ: मित्रों ( वरिष्ठ- कनिष्ठ) के सहयोग के साथ मध्यप्रदेश के भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से कार्य में तत्परता के साथ जुट गए। उन्होंने दो हिस्से स्वयं लिखे। महाकौशल क्षेत्र की पत्रकारिता का इतिहास -  गंगा प्रसाद ठाकुर ने,  विन्ध्य क्षेत्र का इतिहास अम्बा प्रसाद श्रीवास्तव ने। मालवा  (इन्दौर)  क्षेत्र की पत्रकारिता का इतिहास - राजेश बादल एवं शिवलाल  ने लिखा। इस कार्य में अथक परिश्रम, स्त्रोतों की विश्वसनीयता एवं तथ्यात्मक प्रमाणिकता के लिए उन्होंने सम्पूर्ण म.प्र. जिसमें छ.ग. भी था ; का अध्ययन किया।  ग्वालियर , इन्दौर, उज्जैन,रीवा, सागर , बिलासपुर , रायपुर जैसे विभिन्न केन्द्रों में गए। लोगों से मिले  - जानकरियां जुटाईं ,तब जाकर यह दुस्साध्य कार्य सम्पन्न हुआ। और ' मध्यप्रदेश में पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास' सन् १९८९ में पुस्तकाकार रुप में आई। १९ जून सन् १९८४ को रानी कमलापति बुर्ज से शुरू हुए सप्रे संग्रहालय के प्रारम्भ के पीछे - हिन्दी साहित्य के इतिहास पुरुष कामता प्रसाद गुरू के बड़े बेटे - पं. रामेश्वर गुरु ( जबलपुर) जो स्वयं भी गणित के मर्मज्ञ, अंग्रेजी एवं हिन्दी के श्रेष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी रहे हैं उनकी विचार दृष्टि अपना अहम स्थान रखती हैं। विजयदत्त श्रीधर अपने एक साक्षात्कार में उस प्रसंग के बारे बतलाते हुए कहते हैं कि — रामेश्वर गुरू ने मुझसे कहा था - “ विजय  यह सामग्री मेरे घर में रखी है, तो यह मेरी नहीं हो जाएगी। अब हम यह तुम्हें देना चाह रहे हैं तो यह तुम्हारी नहीं हो जाएगी। ये उन पीढ़ियों की अमानत है, जो अभी पैदा होंगी। उनके हाथ तक ये अमानत पहुंचनी चाहिए।  ”

माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल की स्थापना, पत्रकारिता विषयक शोध एवं इतिहास प्रलेखन के प्रामाणिक प्रयत्नों तथा सामाजिक सरोकारों की
पत्रकारिता के लिए  उन्हें सन् २०१२ में भारत सरकार ने 'पद्मश्री' पुरस्कार से सम्मानित किया।
दो खण्डों में प्रकाशित उनकी कृति  'भारतीय पत्रकारिता कोश'  एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज है जिसमें सन् १७८० से लेकर सन् १९४७ तक की भारत की सभी भाषाओं और तत्कालीन भारत के पूरे भूगोल का शोधपरक इतिहास विवेचित  है। सन् २०११ में उनकी कृति   'पहला संपादकीय' को भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 'भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार ' २०११) से सम्मानित किया । साथ ही म. प्र. सरकार ने  'महर्षि वेद व्यास राष्ट्रीय
सम्मान' (वर्ष २०१२-२०१३ से सम्मानित किया  । वहीं छ. ग. सरकार ने उनके कृतित्व के लिए 'माधवराव सप्रे राष्ट्रीय रचनात्मकता सम्मान' (२०१५) से सम्मानित किया। 
'माधवराव सप्रे रचना संचयन' , 'समकालीन हिन्दी पत्रकारिता', 'एक भारतीय आत्मा',
'कर्मवीर के सौ साल' आपकी संपादित पुस्तकें हैं। 'खबरपालिका पड़ाव दर पड़ाव' में आलेख संग्रह , 'चौथा पड़ाव' में भोपाल की एक हजार बरस की कथाएँ दर्ज हैं। इसके अलावा  उन्होंने  माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सन् २००५-२०१० तक 'शोध निदेशक' के रुप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साथ ही सितम्बर १९८१ से पत्रकारिता, जनसंचार और विज्ञान संचार की शोध पत्रिका 'आंचलिक पत्रकार' के सम्पादन का दायित्व भी वे अनवरत पूर्ण कर रहे हैं।  मध्यप्रदेश की राजनीतिक यात्रा कथा पर ' केन्द्रित कर्मवीर ' द्वारा सन् २००३ में प्रकाशित कृति ' शह और मात' अपने अद्यतित संंस्करण में नए नाम  ' मिण्टो हाल' ( बसंत पंचमी संस्करण -२०२१ ) के रुप में म. प्र. के इतिहास के पन्नों की ओर रुख मोड़ती है।

पत्रकारिता के विषय में उनके विचार सुस्पष्ट हैं ,वे पत्रकारिता को ' जनसरोकार' का सशक्त माध्यम मानते हैं। उनका मानना है कि - पत्रकारिता शुरुआत से ही एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। पत्रकारिता कभी भी किसी के पक्ष या किसी के विरोध में नहीं की जाती है। पत्रकारिता का केवल एक ही पक्ष होता है — वह है 'जनपक्ष'। पत्रकारिता को केवल जनपक्ष बनना है। वे कहते हैं कि - हमारी ईमानदारी, निष्ठा एवं समर्पण केवल और केवल पाठक , श्रोता या दर्शक के लिए होनी चाहिए। क्योंकि पत्रकारिता को मिशन बनाने वाले ही सदैव सिरमौर बने रहे हैं। 

वहीं वे वर्तमान में संचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा ' फेक न्यूज ' के बढ़ते ग्राफ तथा मीडिया घरानों के दूसरे व्यवसाय में संलिप्त होने को पत्रकारिता की गिरती साख का एक अहम कारण भी मानते हैं। अनेकानेक विशिष्टताओं, अलंकरणों, पुरस्कारों से सम्मानित होने, प्रसिद्धियों के शीर्ष को छूने के बाद भी उनमें वही सहजता एवं सरलता बनी हुई है ; जो प्रत्येक व्यक्ति को अपने साथ आत्मीयता के  बन्धन में बाँध लेता है। वे विजय भी हैं - श्री! को धारण करने वाले भी हैं। और उनका सर्जनात्मक अवदान उन्हें ऐतिहासिक बनाता है। उनके इस विराट व्यक्तित्व एवं  कृतित्व से समूचा राष्ट्र सदैव लाभान्वित होता रहेगा। और नई पीढ़ी अपने भावी भविष्य को गढ़ती हुई उस  दिव्य - भव्य राष्ट्र के सपने को साकार करेगी  ; जिस सपने को उन्होंने मूर्तरूप देकर हमारे सामने इतिहास एवं वर्तमान के करोड़ों पन्नों को - ज्ञान राशि को  ' माधवराव सप्रे संग्रहालय एवं शोध संस्थान' की एक छत के नीचे एकत्रित कर  यह अमूल्य निधि  सौंप दी है..!

आज की बात

हेडलाइंस

अच्छी खबर

शर्मनाक

भारत

दुनिया