राजेश बादल
भारतीय जनता पार्टी की मध्यप्रदेश सरकार ने एक साल पूरा कर लिया। मोहन यादव के नेतृत्व में जब यह हुक़ूमत अस्तित्व में आई तो सियासी गलियारों में इसके कामकाज को लेकर अनेक शंकाएँ थीं। पूर्ववर्ती शिवराज चौहान के चार बार मुख्यमंत्री चुने जाने से भ्रम होने लगा था कि पार्टी के पास उनका कोई विकल्प ही नहीं है।लेकिन एक नेता अनंत काल तक तो मुख्यमंत्री नहीं रह सकता। लगातार लंबे समय तक एक व्यक्ति के सरकार चलाते रहने से दो नुकसान होते हैं। पहला तो यह कि उस मुख्यमंत्री के भीतर तानाशाही के बीज अंकुरित हो जाते हैं।उसे लगता है कि सारे विधायकों में वही सर्वश्रेष्ठ है। इस कारण प्रशासन में भ्रष्टाचार भी बढ़ता है।हमने देखा है कि एक मुख्यमंत्री पहले कार्यकाल में तो अपनी छबि की चिंता करता है ,लेकिन बाद में गाड़ी पटरी से उतर जाती है। वह भ्रष्टाचार के दलदल में डूब जाता है।दूसरा नुकसान यह होता है कि द्वितीय या तीसरी पंक्ति के क़ाबिल विधायकों - मंत्रियों के भीतर कुंठा पनपती है। उन्हें लगता है कि नेतृत्व की उनकी क्षमता कब परखी जाएगी। कांग्रेस की सेहत इस प्रदेश में इसीलिए बिगड़ी है क्योंकि दिग्विजय और कमलनाथ की जोड़ी ने अपने कनिष्ठ नेताओं को अवसर ही नहीं दिए। इस नज़रिए से मोहन यादव ने अपने कार्यकाल का एक साल लोकतान्त्रिक ढंग से पूरा किया है।
यह सभी जानते हैं कि मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना योजना तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की चुनाव जीतने की चाल ही थी। सरकार की आर्थिक स्थिति जर्जर थी।हर महीने लगभग 5000 करोड़ रूपए का क़र्ज़ लेकर शिवराज घी पी रहे थे। अब यह लोक लुभावन योजना मोहन यादव सरकार के गले पड़ गई है।अपने पहले सालाना संवाददाता सम्मेलन में मोहन यादव अनमने ढंग से बोल ही गए कि लाड़ली योजना से सरकार पर डेढ़ हज़ार करोड़ रूपए का बोझ पड़ रहा है। जो सरकार इस राष्ट्र के सबसे बड़े प्रदेश में हर महीने पाँच हज़ार करोड़ का ऋण लेती हो और उसमें से डेढ़ हज़ार करोड़ लाड़लियों के खाते में जाता हो।बाक़ी सरकारी कर्मचारियों - अधिकारियों के वेतन और भत्तों के लिए सुरक्षित होते हों तो कोई राज्य सरकार कैसे विकास कार्य कर सकती है। ऐसे में मोहन यादव की चिंता वाज़िब है कि आमदनी बढ़ाने के लिए नए स्रोत खोजने ही पड़ेंगे।गाजर घास की जो फसल शिवराज फैला गए हैं ,उसे निर्मूल करना कोई आसान काम नहीं है। मोहन यादव के लिए डेढ़ हज़ार करोड़ रूपए गले की हड्डी बन गए हैं। शिवराज के प्रेत से उन्हें उबरना ही होगा।
अब सवाल यह है कि मोहन यादव प्रदेश की आमदनी बढ़ाने के लिए कौन से उपाय अपना सकते हैं।एक काम तो वे युद्ध स्तर पर कर ही रहे हैं। पूँजी निवेश के लिए वे देश विदेश के धन कुबेरों को न्यौता दे रहे हैं। यदि वादे का पचास प्रतिशत धन भी आ गया तो राज्य के लिए बड़ी राहत होगी। दूसरी बात उन्हें एक सरकारी प्रशिक्षण संस्थान खोलना चाहिए। इसमें दसवीं से लेकर बारहवीं पास नौजवान छह माह से लेकर साल भर का प्रशिक्षण लें। यह प्रशिक्षण प्रदेश के हर ज़िले के एक एक होटल,ढाबे ,विश्राम गृहों और पर्यटन होटलों के कर्मचारियों ,सुरक्षा गार्डों व कार्यालयों के भृत्य से लेकर ड्राइवर तक को दिया जाए। यह अनिवार्य हो। कोई भी ढाबा तक बिना प्रमाणपत्र के कोई कर्मचारी नहीं रखे। यदि ऐसा पाया गया तो वह दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा जाए।इससे प्रदेश के नौजवानों में एक कार्य संस्कृति पैदा होगी और संस्थान अच्छी खासी आमदनी कर सकेगा।क्योंकि ऐसे नौजवान लाखों की संख्या में होंगे। एक काम वे यह भी कर सकते हैं कि प्रत्येक शहर और गाँव के विकास के लिए अलग अलग जातियों ,समुदायों ,धर्मों के अमीरों के लिए राज्य विकास फण्ड बनाएं। उसके लिए उनसे आर्थिक सहयोग लिया जाए। अनेक समाज अपने संप्रदाय के लिए मूर्तियाँ बनवाने ,पार्क बनवाने जैसे कार्यों के लिए बड़ी मात्रा में दान देते हैं। इन पर रोक लगे और सारा पैसा विकास फण्ड में आए। इससे अस्पतालों , स्कूलों ,कॉलेजों की सेवाएं सुधारी जाएँ। दक्षिण भारत के अनेक प्रदेश ऐसी योजनाओं से अपने गाँवों और शहरों का कायापलट कर रहे हैं।वे मध्यप्रदेश के चुनिंदा लोगों की एक सलाहकार परिषद् बना सकते हैं ,जिससे महीने में दो बार मिलें और परिषद् के सदस्य उन्हें सुझाव दें। न केवल सुझाव दें ,बल्कि उसे अमली जामा पहनाने तक सरकार के साथ काम करें।अच्छी बात है कि मोहन यादव सरकार अपने पड़ोसी प्रदेशों राजस्थान और छत्तीसगढ़ से बेहतर काम कर रही है। मोहन यादव अपनी यश पूँजी की जो फसल बो रहे हैं ,आने वाले दिनों में उन्हें काटने का अवसर मिलेगा।यह काम शिवराज नहीं कर पाए थे।