डॉ. सुधीर सक्सेना
धुर दक्षिण के दोनों राज्यों- तमिलनाडु और केरल के मतदाताओं ने कमाल कर दिया। दोनों की सोच यकसां रही और दोनों ने एनडीए को धता बता दी। जीत के मान से नतीजे भारतीय जनता पार्टी के लिये पूर्णत: निराशाजनक रहे, अलबत्ता उसके वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ। तमिलनाडु में द्रमुकनीत गठबंधन के सामने अन्नाद्रमुक और बीजेपी समेत सभी का सूपड़ा साफ हो गया। बहुत शोरशराबे और मीडिया में विरुद के बावजूद कोयंबटूर में अन्नामलै विफल रहे और चेन्नै दक्षिण में राज्यपाल पद त्याग कर चुनाव मैदान में उतरी सुश्री सौन्दरराजन को पराजय का सामना करना पड़ा। द्रमुक नेता स्तालिन के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने सभी 39 में सीटों पर जीत का परचम लहराया। यही नहीं, राज्य से सटे केन्द्र शासित प्रदेश पुदुच्चेरि की इकलौती सीट पर कांग्रेस के निवर्तमान सांसद वी. वैथिलिंगम ने अपना कब्जा बरकरार रखा। औपनिवेशिक काल की खुमार में डुबे इस सुरम्य सूबे में इकलौती लोकसभा सीट जीतने का बीजेपी का बलूना मंसूबा बंगाल की खाड़ी की लहरों में बह गया।
पुदुच्चेरि से लगातार दूसरी बार निर्वाचित वी. वैथिलिंगम कांग्रेस के वरिष्ठ और सम्मानित नेता है। उनके जीवन-चरित के हरूफ चमकीले और चटख हैं। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि काबिले फख्र है और पाग में कई कलगिया। उनके पूर्वजों ने फ्रेंच शासकों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनके दादा रेडियर नेट्टापक्कम कम्यून के मेयर रहे और पिता ने सूबे की कमान संभाली। चेन्नै के लोयोला कालेज में पढ़कर वह गृहनगर मदुक्करै लोट आये और खेती करने लगे, लेकिन राजनीति उनको नियति थी। फलत: वह सन 1985 में पहले पहल एमएलए और सन 1990 में सीएम बने। उनके कार्यकाल में उद्योग और शिक्षा की खूब प्रगति हुई और इसी ने राजनीति में उनकी लंबी पारी की आधारशिला रखी। तो आठ बार एमएत्लए, एक बार सीएम, स्पीकर और नेता प्रतिपक्ष रह चुके 73 वर्षीय वैथिलिंगम पुदुच्चेरि से दोबारा एमपी चुने गये हैं। वह पुदुच्चेरि कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। इस बार उन्होंने बीजेपी केए नमस्सिवायम को कश्मकश भरे मुकाबले में हराया। एक छोटे से सूबे में कांग्रेस की यह जीत लोगों को साधारण भले ही लगे, लेकिन राजनीतिक निहितार्थों के मान से यह एक बड़ी जीत है और यह जीत द्रमुक और कांग्रेस के गठजोड़ को मजबूती प्रदान करती है। वी. वैथिलिंगम की इस जीत में द्रमुक का उल्लेखनीय योगदान रहा और तमिलनाडु के चतुर-सुजान मुख्यमंत्री स्तालिन के बेटे उदयनिधि ने पुदुच्चेरि में सघन प्रचार के साथ-साथ प्रभावशाली रोड-शो भी किया।
तमिलनाडु में अंकतालिका में सिफर पर रहने का दु:ख बीजेपी को अगले पांच साल सालता रहेगा। मोदी और शाह की जोड़ी को तमिलनाडु से बड़ी उम्मीद थी और उन्होंने यहां कमल खिलाने में कोई कोर कसर नहीं उठा रखी थी। उन्हें अन्नामलै जैसा तुर्श नेता भी मिल गया, लेकिन द्रविड़ राजनीति के इस भूखंड में उसका सुर-ताल नहीं बदला, लिहाजा अन्नाद्रमुक से उसका गठबंधन टूट गया। बीजेपी ने इस अलगाव का खामियाजा भुगता। तमिलनाडु में सन 2026 में विधान सभा के चुनाव होंगे। देखना दिलचस्प होगा कि दो द्रविड़ पार्टियों की सैंडविच्ड - सियासत में बीजेपी कैसे सेंध लगाती है। अनुमान यही है कि बीजेपी के लिये तमिलनाडु में अंगूर खट्टे रहेंगे, क्योंकि अन्नाद्रमुक के महासचिव ई. के. पलनीस्वामी ने दो टूक कह दिया है कि उनकी पार्टी बीजेपी से कोई समझौता नहीं करेगी और चुनाव मैदान में अकेली उतरेगी।
इसमें शक नहीं कि पुदुच्चेरि और तमिलनाडु में इकतरफा और प्रभावशाली जीत से स्तालिन के नेतृत्व में द्रमुक का राजनीतिक बल और मनोबल बढ़ा है। इससे स्तालिन का प्रभामंडल और चमकीला हुआ है। गठबंधन गठन के शिल्पी होने से सारा श्रेय उनके खाते में गया है। स्तालिन की नजर अब 2026 के विधानसभा चुनाव पर है। और वह इसी चिड़िया की आंख का निशाना साध रहे हैं। यह अकारण नहीं कि अन्नाद्रमुक की पूर्व अंतरिम महासचिव वीके शशिकला और जेसीडी प्रभाकर ने अन्नाद्रमुक के विभिन्न धड़ों और गुटों के बीच एकता की अपील की है। यह अपील कितना भी रंग क्यों न लाये, अभी तो द्रमुक की पौ बारह है। कांग्रेस और वामदल उसके बगलगीर हैं। प्रसंगवश उल्लेखनीय कि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री स्तालिन के रिश्तों में बीते बरसों में खटास लगातार बढ़ी है। दोनों के दारम्यां ऐसी फसीलें उग आई है, जिनका लंबे समय तक ढहना आसान नहीं है। सन 2019 में उत्तरी राज्यों में संतृप्त बिंदू तक पहुंच चुकी बीजेपी को वहाँ क्षरण का अंदाजा था। इसी के चलते उसने दक्षिणी राज्यों से भरपाई की योजना तैयार की थी। पीएम मोदी ने डेक्कन - स्टेट्स के लगातार दौरे किये और दक्खिनी राज्यों में भारी राजनीतिक पूंजी झोंकी। लेकिन इस निवेश के नतीजे मोदी की मन माफिक नहीं निकले। डेक्कन की कुल जमा 131 सीटो में से सर्वाधिक 42 सीटों पर बाजी मारी कांग्रेस ने और तेज रफ्तार की अभ्यस्त बीजेपी उससे तेरह कदम पीछे 29 पर अटक गयी। आश्चर्यजनक तौर पर उसे तेलंगाना फला। पिछली बार चार के मुकाबले इस बार वह आठ पर जीती। आन्ध्र में चंद्रबाबू नायडू की बदौलत उसे तीन में विजय मिली। कर्नाटक का उसका दुर्ग तो नहीं ढहा, लेकिन गत बार की 25 के मुकाबले वह 17 सीटें ही जीत सकी।
केरल की राजनीति को भी गठबंधनों की राजनीति के लिये जाना जाता है। वहां की सियासत यूडीएफ और एलडीएफ में उलझी हुई है। बीजेपी वहाँ बरसों से किसी विधि पांव टिकाने की कोशिश कर रही है। अंतत: इस बार केरल के सियासी बाग से पहला कमल खिला । त्रिचूर से उसके उम्मीदवार और लिने- कलाकार नेता गोपी सुरेश विजयी हुए। सिनेमा से संसद में पहुंचे गोपी फिलवक्त अपने बयानों के कारण सुर्खियों में हैं। एक ओर तो उन्होंने पद के प्रति अनिच्छा व्यक्त की है, दूसरे पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस-नेत्री (स्व.) श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रति प्रशंसात्मक उद्गार व्यक्त किए हैं। उनका इंदिरा-अम्मा को 'मदर इंडिया' की संज्ञा देना बीजेपी-नेतृत्व को नागवार गुजर सकता है।
नतीजों पर सरसरी नजर डालें तो दिलचस्प तस्वीर उभरती है। कुल 20 में से 18 कांग्रेसनीत यूडीएफ के खाते में और एक-एक सीट क्रमश: माकपानीत एलडीएफ और बीजेपीनीत एनडीए के हक में। वाम मोर्च के इकलौते विजयी उम्मीदवार रहे के. राधाकृष्णन। उन्होंने अलाथुर की सीट कांग्रेस से छीनी। इसे एकबारगी छोड़ दे तो वाम-शिविर की एमी राजा के अलावा केके शैलजा, टीएम थामस, इसाक, ई० करीम, ए० विजयराघवन, एमबी जयराजन और पी. रवीन्द्रन चुनाव हार गये। कांग्रेस की इकतरफा लहर में भगवा-शिविर के मल्लों के भी पाँव उखड़े। राजधानी तिरुवनंतपुरम में बीजेपी के केंद्रीय मंत्री प्रत्याशी राजीव चंद्रशेखर ने कांग्रेस के बहुचर्चित प्रत्याशी और निवर्तमान सांसद शशि थरूर पर बढ़त बना ली थी, लेकिन अंतत: थरूर 16077 वोटों से विजयी रहे। शिविर की बात करें तो वी. मुरलीधरन, के० सुरेन्द्रन, एमटी रमेश, शोभा सुरेन्द्रन और अनिल एंटोनी को पराजय का सामना करना पड़ा। बीजेपी की सहयोगी भारत धर्म जन सेना के तुषार वेलापल्ली चुनावी दौड़ में कोट्टायम में तीसरे स्थान पर रहे।
केरल में कांग्रेस का प्रदर्शन वाकई शानदार रहा। वायनाड से राहुल गांधी का जीतना तय था, लेकिन केरल में सर्वाधिक तीन लाख 64 हजार से अधिक वोटों की जीत से उनका सियासी कद ऊंचा हुआ। कांग्रेस का विजय- रथ पूरे प्रदेश में घूमा। कांग्रेस ने अपने प्रतिद्वद्धियों को बखूबी छकाते हुये कासरगोद, कन्नूर, वडकरा, कोझीकोड, वायनाड, तिरुवनंतपुरम, पलक्कड़, चलकुड़ी, एर्नाकुलम, एटिंगल, इडुक्की, मावेलिवकरा, पथनमथिट्टा और अलप्पुझा में जीत का परचम लहराया। उसके सहयोगी दलो में आईयूएमएल के ईटी मोहम्मद बशीर और अब्दुस्समद समदानी ने क्रमश: मलप्पुरम और पोन्नानी की सीटें जीती। ऐसे ही आरएसपी के प्रेमचंद्रन कोल्लम से जीते। इस दास्ताने-सियासत का क्षेपक यह है कि राहुल के इस्तीफे के बाद अब प्रियंका गांधी वायनाड से चुनाव लड़ेंगी। दूसरी बात यह कि शशि थरूर का यह अंतिम चुनाव था। अगली बार त्रिवेंद्रम में कोई नया प्रत्याशी नमूदार होगा। इस रंग बदलती राजनीति में दक्षिण की दिशा यकीनन काबिलेगौर है।