राजेश बादल
भारत के ख़िलाफ़ उसके पूरब और पश्चिम के दोनों पड़ोसी छद्म पैदा करने की नई नीति अपना रहे हैं। बांग्लादेश और पाकिस्तान अब भारत को भरमाने का जो प्रयास कर रहे हैं,वह कामयाब होगा अथवा नहीं - कहा नहीं जा सकता। लेकिन,यह पक्का है कि अब तक अदृश्य रही हिंदुस्तान की घेराबंदी अब साफ़ नज़र आने लगी है।भारतीय विदेश नीति नियंताओं के लिए यह बड़ी चुनौती है।चुनौती यह भी है कि इस मामले में भारत को अकेले ही इस्का समाधान खोजना होगा ,जबकि घेराबंदी करने वालों को चीन और अमेरिका - दोनों का समर्थन प्राप्त है। हिंदुस्तान अपने दम पर इसका उत्तर देने की कोशिश कर रहा है। मगर नहीं कहा जा सकता कि कूटनीतिक प्रयास कारगर होंगे ? पाकिस्तान ,बांग्लादेश और चीन का कूटनीति में कोई भरोसा नहीं दिखाई देता।
एक सप्ताह पहले बांग्लादेश के सेना प्रमुख वाकर-उज-जमान ने अपने संदेश से सबको चौंका दिया। उन्होंने कहा," कि भारत से हमारा रिश्ता बेहद खास है। हम कभी भी भारत के खिलाफ नहीं जा सकते। भारत हमारा महत्वपूर्ण पड़ोसी है और ढाका कई मायनों में नई दिल्ली पर निर्भर है। बांग्लादेश से कई लोग इलाज के लिए भारत जाते हैं। भारत से बहुत सारा सामान मिलता है।बांग्ला देश के बड़े राष्ट्रीय समाचार पत्र प्रोथोम आलो से बातचीत में जनरल वाकर-उज-जमान ने कहा कि बांग्लादेश ऐसा कुछ नहीं करेगा, जो भारत के रणनीतिक हितों के खिलाफ हो। भारत और बांग्लादेश अपने हितों का समान ख्याल रखते आए हैं और रखते रहेंगे।दोनों मुल्कों के बीच लेन-देन का रिश्ता है।यह संबंध बिना भेदभाव के जारी रहना चाहिए। बांग्लादेश को समानता के आधार पर अपने पड़ोसियों से अच्छे संबंध बना कर रखने होंगे।
अब देखिए इसके उलट बांग्लादेश की सेना का एक रवैया।एक तरफ सेना प्रमुख यह बयान देते हैं तो दूसरी तरफ़ बांग्लादेश पाकिस्तान से 53 बरस पुरानी नीति ख़त्म कर देता है और पाकिस्तान से समझौता करता है कि वह बांग्लादेश की फौज को प्रशिक्षण देने के लिए मेजर जनरल रैंक के अफसरों को बांग्ला देश भेजे। यह समझौता अगले महीने से अमल में आ जाएगा। कमाल की विदेश नीति है। जिस सेना ने बांग्लादेश में ख़ून की नदियाँ बहाई हों ,लाखों औरतों के साथ दुष्कर्म किया हो,अनगिनत बच्चों को मौत के घाट उतार दिया हो और क्रूरता की सारी हदें पार कर दी हों अब वही सेना अपनी क्रूरता का पाठ पढ़ाने बांग्लादेश जा रही है। इसका क्या अर्थ लगाया जाए। इसी कड़ी में एक और सूचना यह भी है कि बांग्लादेश की न्यायिक सेवा के क़रीब 50 अधिकारी और न्यायाधीश भोपाल की राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण लेने आ रहे थे।बांग्ला सरकार ने अब उन्हें आने से रोक दिया है।यह प्रशिक्षण दस से बीस फरवरी तक होना था और इसमें ज़िला स्तर तक के सभी न्यायाधीश आने वाले थे।अब शायद वे पाकिस्तान जा सकते हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इतने गंभीर और नीति विषयक निर्णय ले रही है। यह ताज्जुब का विषय है। ज़ाहिर है कि परदे के पीछे कोई शक्ति सक्रिय है,जो भारतीय उप महाद्वीप को अपने रिमोट से संचालित करना चाहती है ।
बांग्लादेश के बाद आते हैं पाकिस्तान पर। मुल्क़ के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ़ का एक टेलिविज़न इंटरव्यू इन दिनों सुर्खियाँ बटोर रहा है। इस साक्षात्कार में रक्षा मंत्री कहते हैं कि महमूद गजनवी एक लुटेरा था।वे यहीं नहीं रुकते और कहते हैं कि महमूद गजनवी ने सिर्फ धन-जायदाद लूटने के लिए भारत पर आक्रमण किए थे।वे अपने देश की शिक्षा प्रणाली पर हमला बोलते हैं। रक्षामंत्री यह कहते हुए पोल खोलते हैं कि सारे देश के नागरिकों को स्कूली किताबों में यही बताया और पढ़ाया जाता रहा है कि अफगानिस्तान से आया सुल्तान महमूद गजनवी हमारा नायक था। उसने हज़ार साल पहले सोमनाथ में एक हिंदू मंदिर पर आक्रमण किया था।अब पाकिस्तान के राजनेता और नौकरशाही इस बात पर बहस कर रहे हैं कि रक्षामंत्री जैसे पद पर बैठा व्यक्ति अचानक भारत को पसंद आने वाली बातें क्यों कर रहा है ?इस देश ने 2012 में अपनी कम दूरी तक मार करने वाली बैलेस्टिक मिसाइल का नाम गजनवी रखा था तो अब रक्षा मंत्री ने महमूद गजनवी की आलोचना क्यों की? क्या सत्ता में बैठे दल की नीति में कोई परिवर्तन हुआ है ? या वह भारत को प्रसन्न करना चाहता है ? अब पाकिस्तान के बुद्धिजीवी इस पर माथापच्ची कर रहे हैं कि फिर तो पाकिस्तान को अपनी गौरी और अब्दाली मिसाइलों के नाम भी बदल देना चाहिए। क्योंकि वे भी भारत पर आक्रमण करने आए थे।दरअसल भारत को चिढ़ाने के लिए ही पाकिस्तान ने ऐसे नामकरण किए थे। अगर यह एक सिलसिले की शुरुआत है तो अर्थ निकलता है कि पाकिस्तान के ऐसा करने के पीछे की मंशा क्या है ?
अब आइए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ का एक दिन पहले का भाषण देखें। उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोगों को अपने बारे में फैसला करने का हक़ मिलना चाहिए।मुल्क़ में पाँच जनवरी को कश्मीर के लिए आत्म निर्णय दिवस मनाया गया है। शरीफ ने कहा कि पाकिस्तान हमेशा कश्मीरियों को राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन देता रहेगा।शरीफ़ ने कहा कि आत्मनिर्णय का हक़ संयुक्त राष्ट्र चार्टर का मुख्य सिद्धांत है।पर ,कश्मीरी लोग सात दशक से यह अधिकार को नहीं पा सके हैं। संयुक्तराष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस मसले पर ठोस कदम उठाते हुए भारत को घेरना चाहिए।याद दिला दूँ पाकिस्तान इन दिनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य है।
इसी बीच वर्ल्ड बैंक ने पाकिस्तान को एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ रूपए का क़र्ज़ देने का मन बना लिया है। यह दावा पाकिस्तान के एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने किया है। अखबार कहता है कि 14 जनवरी को इस पर मुहर लग जाएगी। ज़ाहिर है कि बिना अमेरिकी इशारे के यह नहीं हो सकता। बांग्लादेश की पूर्व राष्ट्रपति शेख़ हसीना कहती हैं कि अमेरिका के इशारे पर कुछ लोगों ने उनके ख़िलाफ़ साज़िश की और पद से हटवाया। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान कहते हैं कि उन्हें भी इसीलिए हटाया गया था,क्योंकि अमेरिका चाहता था। अमेरिका इन दिनों रूस से संबंध नहीं तोड़ने के कारण भारत से नाराज़ है। आप इस त्रिकोण के पीछे अंतरसंबंध समझ सकते हैं।