बड़वानी । नर्मदा घाटी की मौजूदा चुनौतियों पर नर्मदा बचाओ आंदोलन का बड़वानी में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ।
इसमें प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुभाष पांडे, सुप्रसिद्ध खेती विशेषज्ञ अरूण डिके,वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक रामस्वरूप मंत्री,नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर, बरगी बांध विस्थापित एवं पीड़ित संघ के राजकुमार सिन्हा और भोपाल के पार्षद मोहम्मद शाउफ एवं पत्रकार अशरफ शामिल थे। कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए मेधा पाटकर ने कहा कि नर्मदा घाटी दुनिया की सबसे पुरानी घाटी है,जहां आदिमानव और एशिया खंड के पहले किसान का भी जन्म हुआ था।यह पुरातत्व शास्त्री के शोध में निकलकर आया है।नर्मदा पर निर्मित सिंचाई और बिजली परियोजनाओ के लाभ - हानि का दावा संबंधी तथ्य प्रदेश के समक्ष लाना आवश्यक है।आज नर्मदा घाटी में पीढियों से निवास कर रहे किसान, मजदूर, पशुपालक, मछुआरे और आदिवासी समुदाय के लोग विकास परियोजनाओ से हैरान परेशान हैं।पर्यावरणविद सुभाष पाण्डेय ने कहा कि समाचार पत्रों में प्रकाशित होता है कि नर्मदा 75 प्रतिशत साफ हो गई है जबकि सरकारी दस्तावेज और अलग- अलग जगहों से लिए गए नर्मदा जल की जांच रिपोर्ट से अलग ही जानकारी प्राप्त हो रहा है।मैनें रेत खनन, नर्मदा कछार से खत्म होते जंगल, शहरों एवं फैक्ट्री का नर्मदा गंदा पानी नर्मदा में मिलने जैसी सैकड़ों प्रकरण हरित न्याय प्राधिकरण में दायर किया हूं और पर्यावरणीय अनुकूल आदेश भी मिला है।परन्तु व्यवस्था इन सभी आदेशों पर अमल करने की जगह कुतर्क गढने लगता है।उन्होने कहा कि अगर यही स्थिति रहा तो अगले पचास साल बाद नर्मदा खत्म हो जाएगा।खेती विशेषज्ञ अरूण डिके ने कहा कि खेतों में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक बंद कर जैविक खाद्य और कीटनाशक डालना ही जैविक खेती नहीं है।हवा,पानी, धूप के प्रकाश और वातावरण प्रदूषित कर जैविक नहीं हो सकता है।उन्होने कहा कि कृषि विषय पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई किया हुआ है।जब 1940 में अल्बर्ट हावर्ड की लिखी पुस्तक खेती का वसीयतनामा पढा तो समझ आया कि मैं गलत दिशा में जा रहा हूं।आज लगभग तीस साल से जैविक खेती करने के बाद आपको यह बात बताने की स्थिति में हूं।हमारा खेती, समाज और गांव को भी जैविक होना होगा तब ही वर्तमान जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक संकट से बच सकते हैं।बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिन्हा ने कहा कि नर्मदा में 165 एमएलडी गंदा पानी प्रतिदिन दिन मिल रहा है।जिसमें सबसे ज्यादा 136 एम एल डी प्रतिदिन का योगदान जबलपुर के 200 डेरियों का 20 लाख लीटर मलमूत्र, 10 लाख लीटर रेलवे का गंदा पानी ,25 हजार घरों की गंदगी,175 से ज्यादा अस्पतालों का संक्रमित पानी,600 छोटे -बङे गैराज व वाशिंग सेंटर का है।इनसे 30 लाख लीटर प्रति घंटा गंदा पानी नर्मदा में मिल रहा है।जबकि 4.5 लाख लीटर प्रति घंटा नगर निगम के वाटर ट्रिटमेंट की क्षमता है।इसी नर्मदा किनारे 22460 मेगावाट की थर्मल पावर प्लांट और 2800 मेगावाट की चुटका परमाणु बिजलीघर प्रस्तावित है।जिसमें 6900 मेगावाट की बिजली घर पहली ईकाई बनाकर निर्माण प्रारम्भ कर दिया गया है।ज्ञात हो कि एक मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए 3238 लीटर पानी और 0.70 टन कोयला प्रति घटा लगता है। बिजली उत्पादन से 40 प्रतिशत बने राख नर्मदा को राख से खाक में बदल देगा।वरिष्ठ पत्रकार रामस्वरूप मंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि नर्मदा की वर्तमान परिस्थिति को आमजन तक ले जान की आवश्यकता है।इसके लिए नर्मदा यात्रा के माध्यम से घाटी के लोगों से संवाद स्थापित करना होगा।मालवा की धरती गहन गंभीर पग- पग रोटी डग - डग नीर की कहावत उस समय की सम्पन्नता को दर्शाता है परन्तु अब परिस्थिति ऐसी हो गई है कि पानी उधार लेना पङ रहा है। अगर हम अभी सचेत नहीं हुए तो हालात और गंभीर होने वाला है।कार्यक्रम में घाटी की श्यामा बाई मछुआरा,दयाराम यादव,गोखरू,नूरजी वसावा, सियाराम,हरिओम ने भी बात रखा।कार्यक्रम का संचालन वाहिद मंसूरी ने किया।