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हॉट टोपिक
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Added on : 2024-09-14 11:17:17

राजेश बादल 
पत्रकारिता के संसदीय अज्ञान का इससे बड़ा नमूना और कोई नहीं हो सकता। हरियाणा में विधानसभा इसलिए भंग कर दी गई क्योंकि दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक अंतराल नहीं हो सकता। संवैधानिक प्रावधान तो यही कहता है। अनुच्छेद 174 -1 के मुताबिक़ हरियाणा में 12 सितंबर से पहले दूसरा सत्र बुलाया जाना आवश्यक था। यह नहीं किया गया। राज्य सरकार भूल गई ,विधानसभा अध्यक्ष तथा विधानसभा का सचिवालय सरकार को ध्यान दिलाना भूल गया ,नौकरशाही भूल गई ,प्रदेश का मुख्य सचिव भूल गया ,संसदीय मंत्री भूल गया ,मुख्यमंत्री भूल गया और राष्ट्रपति के प्रतिनिधि संविधान की शपथ  लेकर बैठे राज्यपाल संवैधानिक प्रावधान का पालन कराना भूल गए। लोकतंत्र के सारे संवैधानिक अंग अपना दायित्व भूल गए अथवा जानबूझकर भूलने का अपराध किया। भारत के संसदीय इतिहास में यह स्थिति पहली बार बनी।घनघोर शर्मनाक स्थिति। इसके बाद विधानसभा भंग कर दी गई , जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।चुनाव के शोर में सब लापरवाह हो गए। 
आमतौर पर राज्य सरकार मंत्रिमंडल की सहमति से राज्यपाल से सदन की बैठक बुलाने का निवेदन करती है। कम से कम अनुच्छेद 163 तो यही कहता है कि राज्यपाल अपने इस विशेष अधिकार का इस्तेमाल मंत्रिमंडल की सलाह से करेगा।हरियाणा सरकार अपने इस संवैधानिक कर्तव्य को निभाने में नाकाम रही। ऐसे में राज्यपाल अपने विशेष अधिकार का उपयोग करते हुए सरकार को सत्र आहूत करने का निर्देश दे सकते थे ,जो उन्होंने नहीं किया। यही बात अनुच्छेद 174 कहता है। राज्यपाल के विधिक सलाहकार होते हैं और विधि विभाग भी होता है। यह साफ़ तौर पर संवैधानिक कर्तव्य का पालन नहीं किया जाना है। राष्ट्रपति को राज्यपाल के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का पूरा हक़ है। लेकिन वह भी नहीं किया गया। यह संविधान और लोकतांत्रिक भावना का उल्लंघन है। अब इन सारे अंगों के विरुद्ध कैसे कार्रवाई हो ?
यहाँ से पत्रकारिता के अपने कर्तव्य और ज़िम्मेदारी का सवाल खड़ा होता है । सबसे बड़ी चूक विधानसभा की रिपोर्टिंग करने वाले समाचार पत्रों और टेलिविज़न संवाददाताओं से हुई। उनकी डायरी में ( आजकल मोबाइल में अपने कामों का लेखा जोखा सुरक्षित रखते हैं ) पिछले सत्र का विवरण , आने वाले सत्रों की तारीख़ें और उनमें उठनेवाले संभावित मसलों का विवरण होता है। जब अगले सत्र की तिथि आने लगती है तो विधानसभा कवर करने वाले पत्रकार एक सप्ताह पहले से विधानसभा परिसर में मंडराने लगते हैं। ताज्जुब है कि हरियाणा के पत्रकार अनुच्छेद 174 से अनजान थे। उनके मन में यह जिज्ञासा भी नहीं हुई कि यदि सत्र नहीं बुलाया जा रहा है तो क्या होगा ? मान लिया जाए कि मैदानी पत्रकारों से चूक हुई तो फिर उस राज्य के महान संपादक और पुराने वरिष्ठ पत्रकार क्या कर रहे थे ,जिन्होंने सारी उमर विधानसभा रिपोर्टिंग करते काट दी। 
मेरी अपनी पत्रकारिता के 48 साल में से 25 साल विधानसभा और संसद की रिपोर्टिंग करते हुए या उसका समन्वय करते हुए बीते हैं। हम लोग यही करते थे।सदन में प्रश्नकाल ,स्थगन प्रस्ताव , शून्यकाल ,ध्यानाकर्षण ,अशासकीय संकल्प , बजट पर चर्चा और अभिभाषण की सारी जानकारी रखते थे। जब पिछले सत्र को छह महीने होने को आते थे तो विधानसभा के चक्कर लगाने लगते थे।ख़बरें सूंघने लगते थे कि किस विधायक ने अपने निर्वाचन क्षेत्र से जुड़ा कौन सा प्रश्न दाख़िल हुआ है। मुझे याद है कि लगभग पैंतालीस साल पहले एक प्रदेश में ऐसी नौबत पत्रकारिता के कारण ही नहीं आई थी। एक अख़बार ने अनुच्छेद 174 का हवाला देते हुए ख़बर छाप दी थी। शीर्षक को सनसनीख़ेज़ बनाते हुए उसने छापा कि राज्य विधानसभा दो दिन बाद भंग होने ही वाली है। छह महीने में दो दिन बाक़ी थे। लोग हैरान थे कि सरकार पूर्ण बहुमत से चल रही है ,चुनाव भी दूर हैं। फिर ,क्या कारण है ? प्रदेश सरकार हरक़त में आई। ताबड़तोड़ राजभवन अनुरोध भेजा गया और सत्र बुलाया गया। आजकल संसदीय पत्रकारिता का गहरा ज्ञान रखने वाले कितने पत्रकार इतने सतर्क और जागरूक रहते हैं। पत्रकारिता पढ़ाने वाले शैक्षणिक संस्थान तो गहराई से इस विषय को पढ़ाते ही नहीं। तो अब आप सावधान हो जाइए कि आपके बीच ऐसे पत्रकार हैं मिस्टर मीडिया !

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