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Added on : 2025-01-04 16:37:50

मिस्टर मीडिया 
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 कहाँ दुबके हुए हैं पत्रकारिता के लिए लड़ने वाले ?
जांबाज़ मुकेश चंद्राकर के साथ आइए 
राजेश बादल 
छत्तीसगढ़ में बीजापुर में एक पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या हो गई। आरोप है कि उसे एक बिल्डर माफिया सुरेश चंद्राकर ने मार डाला।मुकेश एन डी टी वी चैनल के स्ट्रिंगर थे और अपना भी यू ट्यूब चैनल - बस्तर जंक्शन संचालित करते थे। कुसूर यह था कि मुकेश ने एक सड़क निर्माण कार्य में पचास करोड़ से भी ज़्यादा की गड़बड़ी की ख़बर एन डी टी वी पर प्रसारित की थी। इससे वह बिल्डर माफ़िया ख़फ़ा था। उसने मुकेश को बात करने के बहाने घर बुलाया। आरोप है कि घर पर उसने पैसे का प्रलोभन दिया।मुकेश नहीं माना तो गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी गई।उसके बाद कुल्हाड़ी से भी उस पर वार किए गए। उसका शव अपने घर के सेप्टिक टैंक में डाल कर टैंक को प्लास्टर करा कर बंद कर दिया गया। मुकेश के भाई ने पुलिस में शिकायत की। पुलिस ने मुकेश के मोबाइल फ़ोन की लोकेशन देखी तो वह उस निर्माण कार्य कराने वाले ठेकेदार के घर की थी।पुलिस जाँच करने पहुँची तो लाश बरामद हो गई। मुकेश चंद्राकर अपने इलाक़े के लोगों के लिए नक्सलियों से लड़ता था। उसने अनेक गाँव वालों को नक्सलियों के चंगुल से छुड़ाने में मदद की थी।    
अब मुकेश के साथी धरना दे रहे हैं ।कुछ चैनलों और डिजिटल माध्यमों ने इसे प्रकाशित किया है,मगर सिर्फ़ एक ख़बर की तरह ।उन ख़बरों में अपने एक बहादुर पत्रकार साथी की हत्या का आक्रोश भी नहीं दिखाई देता। ताज्जुब है कि जिस चैनल के लिए मुकेश दिन रात एक करके एक्सक्लूसिव ख़बरें दिया करते थे ,उसके कवरेज में भी हत्या का वह विरोध स्वर नहीं दिखाई दिया। सरकार चूँकि सत्तारूढ़ दल की है इसलिए गोदी मीडिया चैनल भी इसे मुद्दा नहीं बना रहे हैं। पत्रकारिता के लिए यह अत्यंत निंदनीय है।इतना ही नहीं,पत्रकारों के संगठन,प्रादेशिक संगठन,तमाम प्रेस क्लब,एसोसिएशन , गिल्ड क्या कर रहे हैं ? कहाँ हैं राष्ट्रीय और प्रादेशिक अख़बारों के संपादक ? कहाँ हैं यू ट्यूब के ख़बरिया चैनल ,जिनकी नज़र पल पल सब्सक्राइबर,लाइक्स और हिट्स बढ़ने पर लगी रहती है,उनकी नज़र मुकेश चंद्राकर की ख़बर पर क्यों नहीं गई ? मुझे शर्म आती है ऐसे वरिष्ठ संपादकों और पत्रकारों पर ,जिनकी ज़बान पर ताला पड़ गया है। 
हमने इस मुल्क़ की भाषायी और हिंदी पत्रकारिता में अस्सी से नब्बे का दशक ऐसा भी देखा है ,जब खोजी पत्रकारिता ने केंद्र तथा राज्य सरकारों की चूलें हिला दी थीं।देश में कहीं भी एक पत्रकार का उत्पीड़न या हत्या हो तो प्रदेश सरकार की शामत आ जाती थी। दिल्ली दरबार में भय छा जाता था। सुरेंद्र प्रताप सिंह के संपादन में निकलने वाली पत्रिका रविवार ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अनेक मुख्यमंत्रियों की बलि ले ली थी। अब हम सोने की चूड़ियाँ और सोने के कुण्डल पहनकर चुप्पी साधे बैठे हैं। यही सोने का कुंडल हमारे कान काट रहा है और हमें अहसास तक नहीं है। कुछ तो जागो मिस्टर मीडिया !

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