राजेश बादल
इन दिनों भारत मुश्किल दौर से गुजर रहा है। पहलगाम में पर्यटकों को जिस तरह पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने मारा,उसकी सारे संसार में निंदा हो रही है। होना भी चाहिए। हुक़ूमत-ए-हिंद को इस वक़्त सारे मुल्क़ के समर्थन की ज़रूरत है। लेकिन,लगता है कि पत्रकारिता इस हक़ीक़त को नहीं समझ रही है। इसलिए सोशल तथा डिज़िटल मीडिया के तमाम मंचों पर उन्मादी और ज़हरीली भाषा का इस्तेमाल हो रहा है।यह किसी भी क़ीमत पर बर्दाश्त के क़ाबिल नहीं है।हम मुंबई में आतंकवादी हमले के दरम्यान देख चुके हैं कि किस तरह ज़्यादातर टेलिविज़न चैनलों ने ग़ैर ज़िम्मेदाराना रिपोर्टिंग की थी।अति उत्साह तथा आपसी होड़ के चलते पत्रकार कवरेज के समय देश हित भूल गए थे।वे लाइव में बता रहे थे कि अमुक स्थान पर सुरक्षा बलों का किस तरह ऑपरेशन चल रहा है और इसके बाद अगले क़दम के रूप में कहाँ और किस स्थान पर हमलावरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी।नतीज़ा यह निकला कि इन उपग्रह चैनलों पर यह प्रसारण पाकिस्तान में बैठे दहशतग़र्दों के आकाओं ने देखा और वहाँ से उपग्रह फ़ोन के ज़रिए उन्हें निर्देश देते रहे।
इसी तरह की बेहूदी पत्रकारिता 2019 में पुलवामा कांड के बाद भी हुई थी ।उस समय भी मैंने 28 .02 .2019 को इसी स्तंभ में मैंने ऐसी पत्रकारिता के लिए चैनलों ,अखबारों और डिज़िटल अवतारों को आड़े हाथों लिया था।मैंने लिखा था कि जंग जैसी स्थिति में सरकार और सेना की आधिकारिक सूचना को ही सच मानें। किसी भी अन्य सूत्र से मिली ख़बर का दस बार परीक्षण करना आवश्यक है । किसी भी सूरत में लाशें ,वीभत्स ख़ूनी दृश्य-फोटो नहीं दिखाएँ । राष्ट्रीय स्वाभिमान और अपने देश की कमज़ोरी साबित करने वाली जानकारी से बचें।सेना के अधिकारियों और राजनेताओं की बैठकें,उनका स्थान,समय और उनमें क्या विचार हुआ - कतई प्रसारित न करें। इसी तरह सेना के मूवमेंट ,रेलों की ख़ास आवाजाही और कोई भी असामान्य गतिविधि प्रसारित नहीं करें।फ़ाइल फुटेज से एकदम परहेज़ करिए।इससे ग़लतफ़हमी होती है।पत्रकारवार्ताओं में कठिन सवाल से बचें। सेना या अधिकृत प्रवक्ता जो भी जानकारी दें,उसका ही इस्तेमाल करना चाहिए ।
हम इनदिनों भी यही देख रहे हैं।ख़ासकर टीवी पत्रकार ऐसी सूचनाएँ स्क्रीन पर परोस रहे हैं,जिनका कोई ओर छोर नहीं होता।एक चैनल ने दिखाया कि भारत अब अग्नि मिसाइल का उपयोग करने ही जा रहा है।एक अन्य चैनल ने दावा किया कि भारत की सेना ने मोर्चा संभाल लिया है।यूट्यूब चैनल तो और भी बेशर्म हैं।उनका थंबनेल और शीर्षक देख लीजिए तो लगता है कि युद्ध छिड़ चुका है और पाकिस्तान का सफाया होने ही वाला है।पाकिस्तान के हवाले से जो सूचनाएँ दी जा रही हैं,यदि उन पर भरोसा कर लिया जाए तो लगता है कि भारत चुटकियों में जंग जीत लेगा।यदि फ़ौज इन चैनलों और पत्रकारों पर यक़ीन कर ले,तो देश का बंटाढार हो जाए।यह पत्रकारिता निश्चित रूप से राष्ट्रभक्ति वाली नहीं है।मजबूरी में भारत सरकार को समूचे पत्रकार जगत के लिए निर्देश जारी करने पड़े हैं। शनिवार को जारी इन निर्देशों में कहा गया है कि राष्ट्रहित में सभी मीडिया चैनलों को रक्षा अभियानों और सुरक्षा बलों की आवाजाही का सीधा प्रसारण नही दिखाए जाए।सरकार के अलावा सेना ने भी पत्रकारों से जिम्मेदारी के साथ काम करने का अनुरोध किया है।फ़ौज ने ऐसे प्रकाशन और प्रसारण से बचने की सलाह दी है,जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता होता हो। निर्देशों में कारगिल युद्ध, मुंबई आतंकी हमला (26/11) और कंधार विमान अपहरण का ज़िक्र है। सरकार ने बताया है कि कैसे ग़ैर ज़िम्मेदार कवरेज से भारतीय हितों पर उल्टा असर पड़ा था।एडवाइजरी में यह भी कहा गया है कि डिफेंस ऑपरेशन की ख़बरें सूत्रों के हवाले से नहीं दिखाए जाएँ ।
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि सरकार को ऐसे दिशा निर्देश क्यों देने पड़े ?क्या हमारे पत्रकार युद्ध कवरेज के बारे में प्रशिक्षित होते हैं ?जिन मीडिया शिक्षण संस्थाओं से वे पत्रकारिता पढ़कर निकलते हैं ,क्या उनमें युद्ध पत्रकारिता पढ़ाई जाती है ? इन सारे प्रश्नों का जवाब नहीं में है। तो हमारे पत्रकारिता विश्वविद्यालय और महाविद्यालय जंग पत्रकारिता को अपने पाठ्यक्रमों में शामिल क्यों नहीं करते ? जब यह पत्रकार इंस्टीट्यूट से डिग्री लेकर निकलते हैं तो उन्हें जंग पत्रकारिता के बारे में क ख ग भी मालुम नहीं होता।पर , वे नौकरी हासिल कर लेते हैं।क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जो विषय हिन्दुस्तान की सुरक्षा के साथ इतनी गहराई और संवेदनशीलता से जुड़ा है ,हमारी शैक्षणिक संस्थाएँ उसे पढ़ाने के लायक तक नहीं समझतीं मिस्टर मीडिया !