राजेश बादल
महात्मा गांधी को मानने वाली पार्टी के मुख्यमंत्री से यह उम्मीद नहीं थी।तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने भरे सदन में कहा कि वे सोशल मीडिया और पत्रकारिता की आड़ में अपमानजनक सामग्री परोसने वालों को नंगा करके पिटाई करवाएँगे। मामला दो महिलाओं की गिरफ़्तारी का था। इन महिलाओं को पत्रकार बताया जा रहा है। आरोप है कि इन महिलाओं ने अपने यू ट्यूब चैनल पर मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के परिवार वालों तथा महिलाओं के बारे में ज़हरीली टिप्पणियाँ की थीं। इसके बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था।बताया गया है कि प्रमुख प्रतिपक्षी दल भारत राष्ट्र समिति ( बीआरएस ) के कार्यालय में इन महिला पत्रकारों ने यूट्यूब के लिए यह वीडियो शूट किया था। याने सियासी होड़ में पत्रकारिता चरित्र हनन का औज़ार बन गई है और यह इतने निचले स्तर पर पहुँच गई है कि विधानसभा में पत्रकारों को नंगा करके पीटे जाने की बात कही जाने लगी है।
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का यह सबसे घृणित और घिनौना रूप है।और इस व्यवसाय में काम कर रहे पत्रकारों को अभिव्यक्ति के नाम पर ऐसी कोई छूट नहीं दी जा सकती और न ही कोई सभ्य समाज सार्वजनिक ज़िंदगी बिताने वालों के परिवार वालों को लेकर ऐसी कोई टिप्पणी स्वीकार करेगा।मगर, दूसरी ओर एक निर्वाचित जन प्रतिनिधि से मतदाता ऐसी अपेक्षा नहीं करता कि वह अन्य मतदाताओं के बारे में इतनी अमर्यादित-गुंडागर्दी वाली टिप्पणी करे।ख़ास तौर पर जबकि वह जनप्रतिनिधि भारतीय संविधान को मानने की शपथ लेकर मुख्यमंत्री जैसे शिखर पद पर बैठा हो।अगर रेड्डी संविधान और क़ानून को मानते हैं तो उन्हें ऐसी अपमानजनक और अश्लील भाषा के ख़िलाफ़ पुलिस में मानहानि का मामला दर्ज़ कराना चाहिए।वे तो स्वयं मुख्यमंत्री हैं।क्या पुलिस उनकी ही एफआईआर दर्ज़ नहीं करेगी ? एक बात और इस मुख्यमंत्री को समझ लेना चाहिए कि वे स्वेच्छा से सार्वजनिक जीवन में आए हैं। उन्हें कोई घर पर मनाने नहीं गया था। यदि अपनी मर्जी से उन्होंने जनसेवा का क्षेत्र चुना है तो इस क्षेत्र की कुरूपताओं को स्वीकार करने के लिए भी उन्हें तैयार रहना चाहिए।अदालतें इसी काम के लिए होती हैं।पर यदि वे विधानभवन में नंगा करके पीटने वाली भाषा अपनी साक्षर ज़बान से निकालेंगे तो निश्चित रूप से आम अवाम के बीच यह धारणा बनेगी कि वे तो उन दो महिलाओं से भी गए बीते हैं,जिन्होंने यू ट्यूब पर यह गंदगी फैलाई है।और तो और,यदि वे अपनी ही पार्टी के दो पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्षों-सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी से ही कुछ सीख लेते तो अपनी भाषा पर संयम और पद की गरिमा का ध्यान रखते।अफ़सोस है कि उन्होंने ऐसा नहीं किया।उन्हें अभी राजनीतिक भाषा सीखने और व्यवहार में परिपक्वता लाने की आवश्यकता है।
अब मैं एक तथ्य स्पष्ट करना चाहता हूँ।सोशल और डिज़िटल मीडिया के तमाम अवतारों का उपयोग करने वाले सभी पत्रकार नहीं होते।फेसबुक, यूट्यूब,इंस्टाग्राम,व्हाट्स अप समूह संचालक,एक्स आदि का उपयोग आज के ज़माने में सभी करते हैं और उन्हें इन माध्यमों के पेशेवर सिद्धांत और समझ नहीं होती।पर अनेक पत्रकार इन प्लेटफॉर्म्स पर डाली गई सूचनाओं का धड़ल्ले से अपनी पत्रकारिता में इस्तेमाल करते हैं।यह अनुचित है।किसी भी सूचना का पेशेवर उपयोग करने से पहले प्रति परीक्षण (क्रॉस चेक ) करना बहुत आवश्यक है।अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो रेवंत रेड्डी जैसे अपरिपक्व समझ वाले किसी भी दिन आपको अपने लाखों समर्थकों से नंगा करके पिटवा सकते हैं मिस्टर मीडिया !