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हॉट टोपिक
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Added on : 2024-07-19 12:39:17

राजेश बादल 
केरल उच्च न्यायालय ने राज्य के टीवी पत्रकारों को बड़ी राहत दी है। उसने अपनी एक नई व्यवस्था में कहा है कि यदि कोई स्टिंग ऑपरेशन ( कैमरे का गुप्त इस्तेमाल ) सचाई जानने के लिए जनहित में किया जाता है तो उस पर अभियोजन से छूट दी जा सकती है ।माननीय उच्च न्यायालय की इस भावना का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि केरल के दो टीवी पत्रकारों ने एक चैनल के लिए सौर घोटाले में स्टिंग ऑपेरशन किया था। ये पत्रकार जेल में बंद एक शख़्स से मिलने गए थे। उस शख़्स को मामले की काफी जानकारी थी। जेल में वे छिपे कैमरे से उस व्यक्ति का साक्षात्कार भी ले आए। इसके बाद पोल खुलते ही राज्य सरकार ने दोनों पत्रकारों के ख़िलाफ़ आपराधिक कार्रवाई की। उन पर केरल कारागार 2010 की धारा 86 और 87 के तहत मामला दर्ज़ किया गया था। बचाव में पत्रकारों ने कोर्ट की शरण ली थी। कोर्ट ने इस कार्रवाई को रद्द कर दिया। न्यायाधीश ने कहा कि पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। यह ठीक है कि स्टिंग ऑपरेशन को क़ानूनी मान्यता नहीं है। पर,मामले की सचाई का पता लगाने और उसे जनता तक पहुंचाना भी लोकतंत्र को मज़बूत करना है। इससे भ्रष्टाचार पर रोक लगती है। ऐसे में आपराधिक कार्रवाई उचित नहीं होगी।
वैसे सुप्रीमकोर्ट भी दस साल पहले स्टिंग ऑपरेशन को नकार चुका है।इसके पहले सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने एक मामले में जनहित में स्टिंग ऑपरेशन को उचित माना था। मगर,कहा था कि कि इसे हर मामले में जायज़ नहीं मान सकते। कोर्ट ने कहा था ,भले ही एक अपराधी को पकड़ने के लिए स्टिंग ऑपरेशन चलाया जाता हो लेकिन,इससे कुछ नैतिक सवाल भी खड़े होते हैं। कोर्ट ने एक पूर्व केंद्रीय मंत्री और छत्तीसगढ़ के एक कद्दावर नेता के ख़िलाफ़ किए गए स्टिंग ऑपरेशन में दो पत्रकारों को संरक्षण देने से इनकार कर दिया था। जानकारी के लिए बता दूँ कि सीमित स्थितियों में पश्चिमी देशों ने क़ानूनी तौर पर स्टिंग ऑपरेशन को संरक्षण दिया है। 
मुझे अपना एक अनुभव याद आता है। यह 1978 या 1979 की बात है।वह खोजी पत्रकारिता का दौर था।  मैं और मेरे मित्र ज़िला स्तर पर पत्रकारिता करते थे। उन दिनों टीवी नहीं था। ख़बर मिली कि पुलिस ने कुछ आरोपियों को गुप्तांग में करंट लगाकर उन्हें नपुंसक बनाने का प्रयास किया है। तब तक आरोपी जेल में पहुँच गए थे। हम लोगों ने जेल में उन आरोपियों से मिलने की योजना बनाई। जेलर ने हम लोगों को नियमानुसार मिलने की अनुमति दे दी। हम लोग एक छोटा सा टेप रिकॉर्डर फलों और मिठाई की टोकरी में छिपाकर ले गए। बातचीत रिकॉर्ड करके हमने स्थानीय अख़बारों में  छाप दी। उसके बाद बड़ा हंगामा हुआ। चूँकि जेल अधिकारी और प्रहरी हम लोगों के सूत्र और मित्र भी थे इसलिए उनको बचाकर रिपोर्ट लिखी गई थी। हम तो पुलिस का  अत्याचार उजागर करना चाहते थे। इसके बाद मैंने उन दिनों की धाकड़ और धारदार साप्ताहिक रविवार के संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह को चिठ्ठी लिखी। उन्होंने मुझसे ही फिर वह रिपोर्ट कवर करने को कहा। लेकिन ,हम लोग एक बार वह कवर कर चुके थे तो तनिक बचना आवश्यक था। सुरेंद्र प्रताप सिंह ने तब एक उभरते स्वतंत्र पत्रकार को यह काम सौंपा। फिर हम लोगों ने मदद की। उस पत्रकार को ठीक वैसे ही फलों की टोकरी के नीचे छोटा सा कैमरा ( शायद क्लिक - 3 या आगफा ) छिपाकर भेज दिया। वह उन बंदियों से साक्षात्कार और फोटो भी लेकर आ गया। इसके बाद रविवार में वह रपट प्रकाशित हुई और उसे खोजी पत्रकारिता का स्टेट्समैन अवार्ड मिला था। तमाम अख़बारों में इसकी ख़बरें छपीं और यह मामला बहुत चर्चित रहा। टीवी आने के बाद स्टिंग पत्रकारिता भी खोजी रिपोर्टिंग का ही एक रूप है। इसे न्यायालय से संरक्षण मिला है।अब समाज और कार्यपालिका को भी इस पर अपनी मुहर लगा देनी चाहिए। अन्यथा सियासत ने तो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ हर क़िस्म की रिपोर्टिंग को कुचलकर रख ही दिया है। यदि समाज ने सहयोग नहीं दिया तो फिर अकेला क्या कर पाएगा मिस्टर मीडिया !

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