राजेश बादल
विदेश मंत्री भारत का। प्रेस कॉन्फरेंस ऑस्ट्रेलिया में। चैनल ने दिखाया कनाडा में। बंदिश लगा दी कनाडा सरकार ने।यह उस कनाडा सरकार ने किया ,जो अपने देश में सभी को अभिव्यक्ति का असीमित अधिकार देने की बात करती है। यहाँ तक कि वह खालिस्तान के समर्थकों को हिंदुओं पर हमले से नहीं रोकती ,वह इंदिरा गांधी को गोली मारने के दृश्य की झांकी सड़कों पर प्रदर्शित कराती है। खालिस्तानी उग्रवादियों को महिमामंडित करती है। उनकी राजनीतिक पार्टी के समर्थन से सरकार चल रही है। जस्टिन ट्रुडो की यह कैसी लोकतांत्रिक सरकार है ,जो प्रतिबंधित आतंकवादियों का खुल्लम खुल्ला समर्थन करती है और संयुक्त राष्ट्र के मानक सिद्धांतों का मख़ौल उड़ाती है। क्या शेष विश्व और पत्रकारिता की कोई धारा या जमात इस कुकृत्य का समर्थन कर सकती है ? स्वतंत्र पत्रकारिता को कुचलने की शर्मनाक करतूत।
भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ऑस्ट्रेलिया में पत्रकारों से बात कर रहे थे। इसके बाद एक टीवी चैनल ऑस्ट्रेलिया टुडे नाम के चैनल को विदेश मंत्री ने साक्षात्कार दिया। जब इसका प्रसारण हुआ तो कनाडा में भी वह दिखाई दिया। इससे कनाडा सरकार भड़क उठी। उसने अपने मुल्क़ में ऑस्ट्रेलिया टुडे पर ही बंदिश लगा। चैनल से बातचीत में जयशंकर ने कहा था कि कनाडा में हिन्दुओं पर हमले चिंता का विषय हैं और उनके धार्मिक स्थानों पर आक्रमण तथा हिंसा निंदनीय है। कनाडा सरकार को उस पर रोक लगानी चाहिए।
कनाडा का यह रवैया वाकई अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुकूल नहीं है। वह लोकतांत्रिक होने का ढोंग करता है और अपने देश में रह रहे नागरिकों की सुरक्षा ही नहीं कर पा रहा है। वह दूतावास के अधिकारियों और राजनयिकों की हिफाज़त नहीं करता। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को इस राष्ट्र के आचरण पर गंभीरता से विचार क्यों नहीं करना चाहिए। एक देश ,जो अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर पत्रकरिता के सारे मंचों पर भारत विरोधी कवरेज को नहीं रोकता और दूर बैठे एक विदेश मंत्री का साक्षात्कार दिखाने पर चैनल पर ही रोक लगा देता है। यह दोगली नीति है।
हम लंबे समय से देख रहे हैं कि भारत के बारे में अनेक गोरे देश ज़बरदस्त पूर्वाग्रह पाले हुए हैं। वे हिन्दुस्तान की पत्रकारिता पर भी हमला करने से बाज नहीं आते। वे अपने मुल्क़ों की सरकारों को लेकर भीगी बिल्ली बने रहते हैं ,मगर भारत में वे शेर जैसी आज़ादी चाहते हैं।यह कैसा व्यवहार है ? कनाडा सरकार की इस कार्रवाई के विरोध में अमेरिका,ब्रिटेन,फ्रांस,जर्मनी,चीन,रूस यहाँ तक कि ख़ुद ऑस्ट्रेलिया तक की सरकारों ने कोई टिप्पणी नहीं की। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले पत्रकारिता के संगठनों और अखबारों ने भी इस मामले में अभी तक चुप्पी साध रखी है। क्या यह भारत के प्रति उनकी उपेक्षा नहीं दिखाता ?
इन दिनों सारे संसार में पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर प्रहार हो रहे हैं।हम पाते हैं कि कमोबेश सभी बड़े देशों में तानाशाही वाली प्रवृतियाँ पनप रही हैं। वे अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं करतीं। इसका मुक़ाबला करने के लिए दुनिया भर के पत्रकार संगठनों ,पत्रकारों , लेखकों , संपादकों और अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वालों को एकजुट होने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है मिस्टर मीडिया !