डॉक्टर सुरेंद्र कुमार
यह आजादी का अमृत महोत्सव काल चल रहा है और इस अमृत महोत्सव काल में उन संत-महापुरुषों और नायकों को महत्व दे रही जिन्होंने आजादी और समाज सुधार में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्हीं में से एक हैं संत दुर्बलनाथ जी महाराज। संत दुर्बलनाथ जी का जन्म यूं तो खटीक समाज में हुआ लेकिन उनेक विकास कार्य एक समाज और जाति तक सीमित न होकर पूरी देश को समर्पित थे। इन्होंने छूआछूत को खत्म करने महिलाओं को अधिकार दिलाने और समाज में समरसता की भावना स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। उनके दिए गए संदेश पूरे भारतीय समाज के लिए आदर्श है। उन्होंने अपना पूरा जीवन अंत्योदय की भावना से कार्य किया और समाज में जो सबसे नीचे व्यक्ति है उसके विकास की सोची और उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने का काम किया। उनके द्वार समाज में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए सरकार ने पिछले वर्ष राष्ट्रीय संतों की सूची में शामिल किया है ये उनके प्रति सरकार की कृत्ज्ञता को दर्शाता है।
उन्होंने समाज में समरसता लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दुर्बलनाथ जी महाराज ने समाज में फैली छूआछूत, असमानता, जाति के आधार पर भेदभाव जैसी अनेक कुरीतियों के खिलाफ जमकर आवाज उठाई। संत दुर्बलानाथ जी महाराज का मानना था कि जब तक समाज में ये भेदभाव खत्म नहीं होंगे तब तक देश और समाज उन्नति नहीं कर सकता। उन्होंने अंधविश्वास और पाखंडवाद के खिलाफ समाज में जागृति पैदा करने का काम किया। उन्होंने हमेशा विज्ञानिक सोच को विकसित करने की बात कही और कहा कि सभी को इसपर चलना होगा तभी देश और समाज को आगे बढ़ सकता है।
25 सितंबर को दुर्बलनाथ जी महाराज की जयंती और पूरी दुनिया उनके मानव जाति के लिए गए कार्यों के प्रति कृत्ज्ञता प्रकट करती है। उनके जो संदेश है वे केवल राजस्थान तक ही सीमित नहीं है अपितु पूरी दुनिया में उनके विचार का प्रसार हुआ औप उन्हें ग्रहण किया। यही कारण है कि उनकी जयंती न केवल देश में अपितु पूरे दुनिया में मनाई जाती है
उन्होंने अपने तप और ज्ञान के बल पर लोगों को सच्चाई के रास्ते पर चलकर जीवन जीने की सही दिशा दिखाई। संत, सिद्धपुरुष और संतकवि दुर्बलनाथ जी महाराज का जन्म 25 सितंबर 1918 में राजस्थान के अलवर जिले के एक छोटे से कस्बे बिचगांव में खटीक जाति में हुआ। उनके पिता का नाम फत्तुराम जी खटीक और माता का नाम रुपादेवी था। इस बस्ती को वहां के लोग खटीकबाड़ी के नाम से पुकारते थे। संत दुर्बलनाथ जी का बचपन का नाम कल्याण था। उनका विवाह बहुत ही सुशील कन्या मानावती से हुआ जो कि अलवर राजस्थान की ही रहने वाली थी। विवाह बंधन में बंधे कल्याण ने अल्पसमय तक ही संतान सुख व गृहस्थ जीवन का सुख भोगकर माता-पिता की आज्ञा का पालन किया। गृहस्थ जीवन का त्यागकर कल्याण संतों की संगत में चले गए। ग्राम श्यामदा जिला अलवर राजस्थान में सतगुरु महाराज गरीबनाथ जी के आश्रम में पहुंच गए जहां पर उन्होंने गुरु से शिक्षा दीक्षा ग्रहण की और यहीं पर गुरु ने उन्हें दुर्बलनाथ नाम दिया। 1986 में बांदीकुई जिला दौसा राजस्थान में अपनी सांसारिक यात्रा पुरी की और अमृत को प्राप्त हो गए।
उन्होंने अपने वचनों और संदेशों में दलित, गरीब लोगों को नशीली वस्तुओं का सेवन न करने, जीवों पर दया करने, शिक्षित बनने और धर्म का प्रचार करने जैसे अनेक काम करने के लिए समाज में जागृति पैदा की। संत दुर्बलनाथ जी महाराज केवल दलित-पिछड़े और खटीक समाज के ही धर्मगुरु नहीं थे अपितु उन्होंने तमाम मानव जाति के उत्थान के लिए काम किया। वे हमेशा लोगों के बीच प्रेम- भाईचारे का संदेश देते थे। जातिय भेदभाव के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का करते थे। वे ऐसे समाज के पक्षधर ते जिसमें सब मिलजुकर रहे और किसी तरह की असमानता या भेदभाव न हो। दुर्बलनाथ जी को समाजिक व्यवस्था के कारण औपचारिक शिक्षा नहीं मिल पाई। इसके बाबजूद वे अपने संदेशों में हमेशा शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। उन्हें ये भली-भांति पता था कि शिक्षा के बिना वंचित समाज आगे नहीं बढ़ सकता। क्योंकि वे समाज में फैली कुरीतियों के चलते शिक्षा ग्रहण नही कर पाए। इसलिए वे हमेशा वंचित समाज के बच्चों को शिक्षा दिलाने के पक्षधर रहे। वे कहते थे की शिक्षा ही दीया है जो आपके जीवन में उजाला भर सकता है। इसलिए शिक्षा सभी को शिक्षित होने का अधिकार मिलना चाहिए।
संत दुर्बलनाथ जी ने हमेशा अपने वचनों में लोगों को बाल-विवाह जैसी कुप्रथा को बंध करने का आह्वान करते थे। वे नारी शिक्षा के प्रबल समर्थक थे वे कहते थे की नारी का शिक्षित होना समाज के लिए बहुत जरूरी है अगर समाज को उन्नत और समृद्ध बना है तो महिलाओं को शिक्षित करना होगा तभी समाज आगे बढ़ सकता है। संत दुर्बल नाथ जी ने ताउम्र समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज को बुलंद किया और अपनी वाणी के माध्यम से लोगों में जागरूकता लाने का काम किया। संत दुर्बलनाथ जी ने दलित, शोषित और वंचित वर्ग लोगों को जीने का एक नया मार्ग दिखाया। तथाकथित समाज के कुछ ठेकेदारों ने इन्हें समाज से अलग-थलग कर दिया था। संत दुर्बलनाथ जी महाराज ने उन्होंने समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया। उन्होंने समता और सद्भावना की नींव को मजबूत किया। समाज में फैली ऊंच-नीच की भावना, छुआ-छूत और भेद-भाव के अंधकार को अपनी ज्ञानमयी वाणी से दूर करने की प्रयास किया।
सामाजिक में फैली कुरीतियों को दूर करने के साथ-साथ वे जीवनभर प्रकृति प्रेमी भी रहे। उन्होंने कहा कि प्रकृति में इतनी क्षमता है कि वो मानव का भरण-पोषण कर सकती है इसलिए पर्यावरण का संतुलित रहना बेहत जरूरी है। उन्होंने जीव-जंतुओं की हत्या को घोर अपराध की श्रेणी में रखा। उन्होंने कहा कि जीव-जंतुओं के प्रति दया का भाव रखना और उनकी रक्षा करनी चाहिए तभी प्रकृति में पर्यावरण संतुलन बना रहेगा। उनके इन्हीं कार्यों के चलते सामाजिक न्याय मंत्रालय ने संत दुर्बल नाथ जी का नाम संत कबीर, रैदास, डा. संतजी लाड और संत गाडगे जी महाराज जैसे संतों की सूची में शामिल किया है। आज केवल भारत ही नहीं पूरी दुनियाभर में उनके असंख्य अनुयायी है। उनकी जयंती वर्ष पर हम सभी को उनके मानवतावादी समाज की स्थापना के सपने को पूरा करने और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का प्रण लेना चाहिए।