Know your world in 60 words - Read News in just 1 minute
हॉट टोपिक
Select the content to hear the Audio

Added on : 2023-04-30 15:47:08

 

राजेश बादल 

बार बार निर्देशों की अवहेलना से सुप्रीम कोर्ट बेहद नाराज़ है। इस साल उसने शुक्रवार को तीसरी बार अपना ग़ुस्सा दिखाया है। पिछले बरस भी उसने कई बार निर्देश दिए थे। लेकिन इस बार आला अदालत ने धार्मिक विद्वेष फैलाने वाले मामलों को गंभीर अपराध माना है। उसने सारे प्रदेशों को आदेश दिया है कि ऐसे भाषणों के खिलाफ अपनी ओर से कड़ी कार्रवाई करें और आपराधिक मामला दर्ज़ करें। अदालत ने यह चेतावनी भी दी है कि मामला दर्ज करने में देरी को अदालत की अवमानना माना जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उसके सामने केवल भारत का संविधान है। इसकी प्रस्तावना में भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को संरक्षण देने की बात कही गई है। 

यक़ीनन भारतीय लोकतंत्र के इस संवैधानिक स्वरूप को संरक्षण देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय साधुवाद का पात्र है। लेकिन सवाल यह है कि क्या नफ़रत भरे भाषणों को आम अवाम तक पहुंचाने में भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की क्या कोई भूमिका नहीं है ? क्या पत्रकारिता के तमाम अवतार इन ज़हरीले भाषणों को हवा नहीं देते ? पिछले कुछ महीनों में सर्वोच्च अदालत ने कम से कम पाँच या छह बार सियासी नेताओं को घृणा और विद्वेष फैलाने के लिए आग़ाह किया है। पर , उसके निर्देश मीडिया के मंचों से कपूर की तरह उड़ गए और नफ़रत की सड़ांध मारते नेताओं के भाषण सुर्खियाँ बनते रहे।चाहे समाचार पत्रों को देखें , टेलिविज़न चैनलों के पर्दों पर देखें या फिर डिज़िटल प्लेटफॉर्म के कंटेंट पर नज़र दौड़ाएँ तो पाते हैं कि उन्मादी बयानों को प्रमुखता देकर पत्रकारिता ने भी अपने को कठघरे में खड़ा कर लिया है। आला अदालत सरकारों को निर्देश देने के बाद अगला आदेश मीडिया को भी क्यों नहीं दे ,जबकि सब कुछ मुद्रित या प्रसारित दस्तावेज़ है ।

बात सिर्फ़ उन्मादी बयानों को प्रकाशित या प्रसारित करने की नहीं है। हमारे विद्वान पत्रकार ,संवाददाता ,संपादक या एंकर उन बयानों पर कुतर्क करते हुए उन्हें जायज़ ठहराने का प्रयास करते हैं।उसके लिए वे हद से बाहर जाकर अभद्र और अमर्यादित हो जाते हैं।अपनी बात के समर्थन में वे ऐसे ऐसे तर्क गढ़ते हैं कि अनपढ़ दर्शक तक उन पर हँसता है।उनकी अज्ञानता का सार्वजनिक उपहास उड़ाया जाए,इसके लिए वे आम आदमी को मजबूर कर देते हैं । उनका मज़ाक़ तो बनता ही है,समूची पत्रकारिता बदनाम होती है। विडंबना यह कि हमारे इन साथियों ने न संविधान पढ़ा और समझा है और न उनका समसामयिक ज्ञान परिपक्व नज़रिए से विकसित होता है।अधकचरी सूचनाओं पर आधारित पत्रकारिता विस्फोटक हो सकती है ।

आज की बात

हेडलाइंस

अच्छी खबर

शर्मनाक

भारत

दुनिया