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Added on : 2023-07-30 14:18:38

डॉ. चन्दर सोनाने

मणिपुर हिंसा और अमानवीय कृत्य को हुए करीब 3 माह हो गए। स्थिति सुधरने की बजाय और बिगड़ती जा रही है। हाल ही की घटनाओं से ऐसा लगता है कि मणिपुर हिंसा में उपद्रवियों के साथ-साथ उग्रवादियों ने भी प्रवेश कर लिया है। मणिपुर में दो जातीय समुदाय के बीच जारी हिंसा अब सुरक्षा बलों की ओर मुड़ गई है। ऐसा पहली बार देखने में आ रहा है कि हथियारबंद हमलावर सेना, बीएसएफ और अर्द्धसैनिक बलों को सीधा अपना निशाना बना रहे हैं। हमलावरों ने हाल ही में ड्रोन का उपयोग कर करीब 200 देशी बम गिराए। अनेक स्थानों पर सुरक्षाबलों और हमलावरों के बीच मुठभेड़ भी हुई। 
                करीब तीन माह से मणिपुर जल रहा है। और हालत बद् से बद्तर होती जा रही है। मणिपुर की आग मिजोरम तक भी पहुँच गई है। नागालैंड और असम सहित पूर्वोत्तर के अन्य राज्य भी इसकी चपेट में आ सकते हैं ? इस स्थिति को बद्तर बनाने में मुख्य रूप से वहाँ की राज्य सरकार की अक्षमता ही जिम्मेदार बताई जा रही है। केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं। 3 मई को हिंसा की घटनाओं की शुरूआत के अगले दिन 4 मई को दो महिलाओं का निर्वस्त्र कर घुमाने का ढाई महीने बाद शर्मनाक वीडियों वायरल होने से पूरे देश में मानवता शर्मसार हो गई है।
                मणिपुर के मुख्यमंत्री श्री बीरेन सिंह अपने राज्य को अपनी कमान में लेने में पूर्ण रूप से असफल सिद्ध हो चुके हैं। 4 मई का वीडियो वायरल होने के बाद उनका यह कहना कि फील्ड में ऐसे सैकड़ों केसेस पड़े हुए हैं, उनका यह कथन और अपनी स्वीकृति यह बता रही है कि वाकई मणिपुर राज्य में स्थिति अब सीमा के बाहर हो रही है। मणिपुर राज्य की पुलिस स्पष्ट रूप से मैतेई और कुकी में बँट गई है। वे अपने-अपने आधुनिक हथियार लेकर हमलावर समूहों के साथ जुड़ गए हैं। देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि हजारों की संख्या में सशस्त्र सैन्य सामान और लाखों की संख्या में गोलियाँ लूट ली गई ! 
                  जलते हुए मणिपुर को अब और जलता हुआ नहीं देखा जा सकता। उस पर प्रभावी नियंत्रण अत्यन्त आवश्यक है। राज्य और केन्द्र सरकार पूरी तरह से मणिपुर हिंसा को नियंत्रित करने में असफल सिद्ध हो चुके हैं। केन्द्र सरकार अपने मुख्यमंत्री को हटाने के मुढ़ में दिखाई नहीं दे रहा है। चारों और अंधकार है। शांति का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। देश के गृहमंत्री मणिपुर की हिंसा को नियंत्रित करने की बजाय आगामी 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। मध्यप्रदेश का उदाहरण सामने रखें तो इस राज्य में वे जुलाई माह में ही पिछले 20 दिन में तीसरी बार मध्यप्रदेश के दौरे पर आ रहे है। और ये दौरा कोई कानून व्यवस्था की स्थिति का जायजा लेने के लिए नहीं हो रहा है। उनका भ्रमण शुद्ध रूप से आगामी विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में फिर से भाजपा की ही सरकार बनें, इसके गुणा-भाग के लिए ही है। वे राजनीति की शतरंज बिझाने में लगे हुए हैं, जिसमें फँसकर प्रतिपक्ष पस्त हो जाए। देश के प्रधानमंत्री ने शर्मनाक वीडियो वायरल होने के बाद कुछ सेंकड के वीडियों में अपनी भावना व्यक्त कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री मान ली है। इससे कुछ होने वाला नहीं ।
               ऐसी स्थिति में उम्मीद की किरण देश के राष्ट्रपति से की जा रही है। राष्ट्रपति चूँकि एक महिला हैं और स्वयं एक आदिवासी वर्ग से जुड़ी होने के कारण आदिवासियों की दिक्कतों और समस्याओं को भलीं भांति जानती और पहचानती है। इसलिए उनसे उम्मीद की जा सकती है कि वे मणिपुर की हिंसा में अब चुप नहीं रहकर अपनी अन्तरात्मा की आवाज पर कुछ ऐसा ठोस कदम उठाएंगी, जिससे की मणिपुर में शांति का मार्ग प्रशस्त हो सके। 
               इसी प्रकार मणिपुर की राज्यपाल से भी अपेक्षा की जा रही है। वे खुद एक महिला होकर आदिवासी वर्ग से ही आती है। वे भी आदिवासी की पीड़ा और दर्द समझती है और कल्पना कर सकती है कि मणिपुर के पीड़ितों पर क्या गुजर रही होगी ? आमजन का राज्यपाल से अपेक्षा करना सही भी है कि वे राज्य की विकट कानून व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करें, ताकि पिछले तीन माह में नाकारा सिद्ध हो चुके मुख्यमंत्री को हटाया जा सके। मुख्यमंत्री भी खुद भी मैतेई समुदाय से है। यह लगभग सिद्ध हो चुका है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री का झुकाव मैतेई समुदाय की ओर है। इसलिए कुकियों का विश्वास हासिल करने में वे असफल सिद्ध हो चुके हैं। 
               छोटी- छोटी घटनाओं पर चिल्ला-चिल्लाकर अपना पक्ष मजबूती से रखने वाली महिला एवं बाल विकास मंत्री मणिपुर में महिलाओं के साथ हो रही शर्मनाक घटनाओं पर मौन धारण किए हुए हैं। वे खुद एक महिला हैं और इस नाते उनका मणिपुर हिंसा पर मुखर होना लाजमी था, किन्तु ऐसा नहीं हो पाया ! यह दुःखद है। इसी प्रकार राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष भी एक महिला है। कुछ घटनाओं में स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करने वाली राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष भी मणिपुर हिंसा में महिलाओं को लेकर हो रही शर्मनाक घटनाओं पर चुप है। उनका राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष पद पर बने रहना नैतिक दृष्टिकोण से कतई सही नहीं कहा जा सकता। 
                 मणिपुर की हिंसा को करीब 3 माह हो रहे हैं। इसका इस प्रकार जलते रहना और हिंसा में बढ़ोत्तरी देश के लिए कतई उचित नहीं कहा जा सकता है। इसलिए अब आखरी उम्मीद राष्ट्रपति से ही है। वे अन्तरात्मा की आवाज पर स्वतः संज्ञान लें और मणिपुर में शांति स्थापित करने की दिशा में ठोस कारगार प्रयास अतिशीघ्र करें। 

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