शुभम बघेल
शहडोल. बैगा बाहुल्य पचड़ी गांव के सोनीलाल और आरती बैगा के दोनों बच्चे कुपोषण के कुचक्र में फंसकर जिंदगी मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। छह वर्ष की बेटी जन्म से ही एनीमिक है। तीन साल का बेटा भी कुपोषण से जूझ रहा है ।उसके सिर का आकार लगातार बढ़ रहा था। आंखें भीतर धंस गई थी और मांस हड्डियों से चिपक गया था।यह बालक अपने आप बैठ भी नहीं पाता । बैठते ही लुढक़ जाता है और घिसटते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचता है। मां आरती बैगा कहती है, अब तक न आयुष्मान कार्ड बना और न राशन कार्ड में नाम जुड़ा । इलाज कराने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। अफसरों के पास कई बार लेकर गए, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। दोनों बच्चों की दिन रात देखभाल के कारण मजदूरी भी नहीं कर पाते थे। पूरा परिवार आर्थिक समस्या से जूझ रहा था।यह जानकारी मिलने के बाद मैंने जनवरी में खबर लिखी ।
खबर के प्रकाशन के बाद हड़कंप मच गया। अधिकारी गांव पहुंचे। उन्होंने समझाइश तो दी लेकिन अस्पताल में भर्ती नहीं कराया। मैं दोबारा इसी महीने गाँव में गया। हालात जस के तस थे। बालक की हालत और बिगड़ती जा रही थी। दूसरी खबर छपने के बाद अफसरों के पास दिल्ली से भारत सरकार ने स्पष्टीकरण माँगा । अधिकारियों की टीम फिर भागी भागी गांव गई और बालक के इलाज की व्यवस्था कराई ।यह स्थिति सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि ऐसे सैकड़ों आदिवासी परिवार हैं, जिनके बच्चे कुपोषण का दंश झेल रहे हैं। संभाग में कुपोषण की भयावह स्थिति है। बढ़ते कुपोषण के मामलों के बाद भी अफसर गैरजिम्मेदार हैं। कुपोषण से जंग सिर्फ कागजों तक सीमित है। पोषण पुनर्वास केन्द्रों में गिनती के बच्चे भर्ती हो रहे हैं। मैदानी अमला सिर्फ कोरम पूरा कर रहा है। अफसरों की कमजोर निगरानी से पोषण आहार भी नहीं मिल पा रहा है।
मां आरती बैगा बताती हैं कि बेटे का सिर बढ़ता जा रहा था। कई बार डॉक्टर व अधिकारियों के पास ले गए। अधिकारी गांव आए तब भी दिखाया लेकिन कहते थे कमजोर हैं। एनीमिक है। बाद में ठीक हो जाएगा, बाहर ले जाओ। कर्ज लेकर इलाज कराया लेकिन राहत नहीं मिली। आज भी पोषण आहार समय पर नहीं मिल रहा है । मीडिया के ज़रिए दबाव बढ़ता गया तो अधिकारियों ने बालक को इलाज के लिए जबलपुर भेजा। परिजनों का कहना था कि आंखों के सामने ही बेटा जिंदगी मौत से लड़ रहा था। बालक का आयुष्मान कार्ड लाख कोशिशों के बाद भी नहीं बना । राशन कार्ड में भी नाम नहीं जुड़ा था।आख़िरकार क़र्ज़ लेकर माता पिता ने इलाज कराया। अब उसकी हालत सुधर रही है ।हालाँकि पिता सोनीलाल की चिंता है कि ऋण का भुगतान कैसे होगा।