हेमंत पाल
मध्यप्रदेश में करीब 18 साल से भाजपा सरकार में है। इस बीच करीब सवा साल कांग्रेस की सरकार जरूर रही, पर भाजपा की सत्ता का लम्बा दौर चला। इस कार्यकाल में उमा भारती, बाबूलाल गौर के बाद 15 साल से ज्यादा समय तक शिवराज सिंह चौहान कुर्सी संभाल रहे हैं। इस बात में दो राय नहीं कि इतने सालों तक जब कोई पार्टी सत्ता में होती है, तो उसकी खूबियों से ज्यादा लोग उसमें खामियां खोजने लगते हैं। वही संकट भाजपा के सामने भी उभरता दिखाई देने लगा। इस कारण भाजपा के सामने विधानसभा चुनाव से पहले चुनौतियां ज्यादा हैं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, पार्टी में अंतर्द्वंद के हालात बनते दिखाई देने लगे। इसके पीछे एक वजह ये भी है, कि एंटी इंकम्बेंसी भी अपना असर दिखाने लगी। भाजपा को नेताओं की आपसी खींचतान से भी परेशानी हो रही। अनुशासित, कैडर बेस और राजनीतिक शुचिता के लिए जानी जाने वाली पार्टी के लिए ये हालात अच्छे नहीं कहे जा सकते। जबकि, विधानसभा चुनाव को सिर्फ 6 महीने बचे हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद आलाकमान का पूरा ध्यान भी मध्यप्रदेश पर है।
प्रदेश भाजपा में जो स्थितियां निर्मित हो रही, वे तो अपनी जगह! पर, ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी में एक अलग फैक्टर बन गए! तीन साल पहले जब सिंधिया दल-बल समेत भाजपा में आए थे, तब और अब में बहुत कुछ बदल गया। आज ज्योतिरादित्य को अप्रासंगिक मानने वाले भाजपा नेताओं की संख्या में इजाफा हो गया। उपचुनाव में सिंधिया समर्थकों को जिताने वाले भाजपा के लोग ही अब उनके विरोध पर उतर आए। इसलिए कि जहां से सिंधिया के लोग उपचुनाव जीते थे, वहां के मूल भाजपा नेताओं को अपना भविष्य अंधकार में नजर आने लगा। उनको लगने लगा कि यदि सिंधिया अपने समर्थकों को ज्यादा टिकट दिलाने का दबाव बना सकते हैं। सिंधिया के साथ भाजपा में आने के बाद उपचुनाव हारे नेता भी टिकट की दावेदारी से पीछे नहीं हैं। यही हालात सबसे ज्यादा परेशानी वाली है। विधानसभा चुनाव के टिकट घोषित होने के बाद तय है, कि ये खींचतान किसी और रूप में बदल सकती है।
विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में जमीनी स्तर पर जो असंतोष उभरता दिखाई दे रहा, वो पार्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं है। पार्टी के पुराने नेताओं ने अपनी उपेक्षा से नाराज होकर जैसे मोर्चा खोल दिया। इंदौर से लगाकर देवास, सागर और कटनी तक में असंतोष का गुबार दिखाई दिया। देवास में तो भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री स्व कैलाश जोशी के तीन बार के विधायक बेटे दीपक जोशी ने तो पार्टी छोड़ दी। पूर्व विधायक और इंदौर के नेता भंवरसिंह शेखावत ने भी खुलकर अपने इरादे जाहिर कर दिए। सागर में मंत्री भूपेंद्र सिंह के खिलाफ स्थानीय विधायकों ने ही मोर्चा खोल दिया। सिंधिया के समर्थक मंत्री उन पर सीधा हमला कर चुके हैं। जबकि, कटनी में भी पूर्व विधायक ध्रुवप्रताप सिंह ने संगठन पर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ने का एलान कर दिया। कटनी के तीन और पूर्व विधायकों ने नाराजी जाहिर कर दी। इससे पहले जबलपुर के पूर्व विधायक हरेंद्रजीत सिंह बब्बू और इंदौर के सत्यनारायण सत्तन ने भी बगावती तेवर दिखाए थे। इन सारे हालात से स्पष्ट होता है, कि मध्यप्रदेश भाजपा में नाराज नेताओं की संख्या बढ़ रही है।
पार्टी के पुराने नेताओं की अवहेलना, अनदेखी और उन्हें हाशिए पर रख देने से बनी स्थिति ने मामले को और पेचीदा कर दिया। पार्टी के पुराने और अनुभवी नेताओं का कहना है, कि उन्हें पार्टी संगठन ने दरकिनार कर दिया। न तो उनसे कोई बात की जाती है, न कभी उन्हें किसी मीटिंग में बुलाया जाता है। यह सब पिछले दो ढाई साल से होने लगा। उनके मुताबिक अब पार्टी का कोई ऐसा प्लेटफार्म नहीं बचा, जहां नए और पुराने नेता मशविरा कर सकें। इससे पहले के पार्टी अध्यक्षों ने नए और पुराने नेताओं को एक जाजम पर बैठाकर इसे जारी रखा था। लेकिन, संगठन के नए ढांचे ने पुराने अनुभवी नेताओं को किनारे कर दिया। पिछले कुछ महीने से भाजपा में जो अंतर्कलह बढ़ी, उसका बड़ा कारण पुराने और नए चेहरों के बीच बढ़ती दूरी ही है। करीब दर्जनभर नेताओं ने इस मुद्दे पर अपनी जुबान खोली, जो अभी तक घुटन में थे। जिस भी पुराने नेता ने जुबान खोली, सबके निशाने पर पार्टी का संगठन और उससे जुड़े नेता रहे।
राज्यसभा के पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा ने भी इसी मुद्दे पर अपना रोष व्यक्त किया। उन्होंने तो उन पांच संगठन मंत्रियों पर भी उंगली उठाई, जिनकी छत्रछाया में प्रदेश में पार्टी का संगठन चल रहा है। जबकि, भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी ताकत उसकी संगठनात्मक क्षमता और अनुशासन ही रहा है। लेकिन, दो महीने में ऐसा क्या हो गया कि असंतोष का गुबार दूर तक दिखाई देने लगा। इसके बावजूद दर्शाया ये जा रहा है कि सब कुछ सामान्य है। आशय यह कि जो सतह पर दिखाई दे रहा है, वो सिर्फ दिखावा है। अंदर ही अंदर पार्टी का अनुशासन दरक रहा है। पार्टी के एक और पुराने नेता का कहना है, कि भाजपा विधान के अनुसार जब भी कार्यकारिणी गठित होती है, सिर्फ 20% लोगों को ही बदला जाता है। लेकिन, अब तो 100% लोगों को बदला जाने लगा। सीधा सा मतलब है कि अब पुराने और अनुभवी नेताओं के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं बची। पिछले दो-ढाई साल में पार्टी में जो बदलाव आए, उससे पार्टी की वो पहचान खत्म होने लगी, जिसके लिए पार्टी को जाना जाता था।
दरअसल, पार्टी में संवादहीनता के हालात ही इसकी वजह हैं! जब कोई किसी से बात नहीं करेगा, तो एक स्थिति में घुटन बढ़ेगी और फिर नेता को जहां जगह मिलेगी, वो अपनी बात बोलेगा। उसे मंच नहीं मिलेगा तो वो मीडिया के सामने बोलने लगेगा! उसका मकसद यही होगा कि उसकी बात पार्टी संगठन तक पहुंचे और आज वही हो रहा है। संगठन में बात नहीं सुनी जा रही, तो उसे मीडिया के कान में फूंका जा रहा है। जो बातें बंद कमरों में चंद लोगों के सामने होना चाहिए, वो खुलेआम होने लगी और उससे असंतोष पनप रहा है। कटनी के पूर्व विधायक ध्रुव प्रताप सिंह ने तो अपने तेवर दिखाते हुए एक वीडियो भी जारी किया। इसमें उन्होंने पार्टी संगठन के कामकाज के तरीके पर ही सवाल उठाए। उन्होंने यह भी कहा कि अभी हम आउट डेटेड नहीं हुए। जिस पार्टी में हैं, वहां कोई पूछ नहीं रहा, तो स्वाभाविक रूप से हमें जाना पड़ेगा। अभी हमारी राजनीति खत्म नहीं हुई है, न इतनी उम्र हो गई कि कोई हमें घर में बैठा दे।
अब तो यह भी कहा जाने लगा कि भाजपा अब एक नहीं रही। अब एक हिस्सा भाजपा है, दूसरा महाराज की पार्टी और तीसरा नाराज पार्टी! अब वे नेता विद्रोह पर उतर आए, जिन्हें सत्ता और संगठन दोनों जगह सम्मान नहीं मिल रहा। इनमें ज्यादातर वे नेता हैं, जिन्होंने पार्टी को खड़ा किया और आपातकाल में जेल भी गए। अभी के ज्यादातर नेताओं में इक्का-दुक्का को छोड़कर कोई इतना सीनियर और अनुभवी नहीं है। जबकि, पार्टी का मानना है कि अंतर्कलह बढ़ने की वजह बड़े नेताओं के बयान हैं। पुराने नेता खुलकर पार्टी और संगठन की आलोचना करने लगे। लेकिन, इसका दोष उन नेताओं पर नहीं लगाया जा सकता। पार्टी के पास बड़ा संगठनात्मक ढांचा है। प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष के अलावा अलग-अलग पदनाम वाले संघ से आए पांच बड़े नेता हैं, पर कोई भी पुराने नेताओं को साधने की कोशिश नहीं कर कर रहा। ऐसा कोई प्रयास दिखाई नहीं दे रहा कि अंतर्कलह की आंच को ठंडा किया सके। यदि जल्द ही हालात को संभाला नहीं गया, तो नई मुश्किलें खड़ी हो सकती है और निश्चित रूप से यह कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगा।