ऐतिहासिक छतर मंजिल में खोदाई के दौरान निकली नवाबों की नाव को केमिकल ट्रीटमेंट के सहारे संरक्षित कर कांच के बड़े से फ्रेम में रखा जाएगा. इसके बाद पर्यटक नवाबी दौर की इस नाव के दीदार कर सकेंगे. जल्द ही पुरातत्व विशेषज्ञों की टीम शाही नाव की जांच कर उसको सरंक्षित करने का काम करेगी. जानकारों की मानें तो यह नाव 200 वर्ष पुरानी हो सकती है. इसलिए नाव की लकड़ी को देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट भेजकर यह पता लगाया जाएगा कि नाव कितनी पुरानी है.
नाव की लम्बाई 50 फीट और चौड़ाई 12 फीट के करीब है. खोदाई कार्य में नाव को नुकसान न हो इसके लिए उसको पन्नी से पूरी तरह ढक दिया गया है. वर्षो तक मिट्टी में धंसी रहने की वजह से नाव की हालत पूरी तरह जर्जर हो चुकी है.
ऐतिहासिक छतर मंजिल में खोदाई के दौरान निकली नवाबों की नाव को केमिकल ट्रीटमेंट के सहारे संरक्षित कर कांच के बड़े से फ्रेम में रखा जाएगा. इसके बाद पर्यटक नवाबी दौर की इस नाव के दीदार कर सकेंगे. जल्द ही पुरातत्व विशेषज्ञों की टीम शाही नाव की जांच कर उसको सरंक्षित करने का काम करेगी. जानकारों की मानें तो यह नाव 200 वर्ष पुरानी हो सकती है. इसलिए नाव की लकड़ी को देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट भेजकर यह पता लगाया जाएगा कि नाव कितनी पुरानी है.
नाव की लम्बाई 50 फीट और चौड़ाई 12 फीट के करीब है. खोदाई कार्य में नाव को नुकसान न हो इसके लिए उसको पन्नी से पूरी तरह ढक दिया गया है. वर्षो तक मिट्टी में धंसी रहने की वजह से नाव की हालत पूरी तरह जर्जर हो चुकी है.