डॉ. सुधीर सक्सेना
केरल में अंतत: कमल खिल ही गया। त्रिशूर लोकसभा क्षेत्र में सुरेश गोपी क्या जीते,भारतीय जनता पार्टी की मुराद पूरी हो गई। बीजेपी को यह कामयाबी बेचैन इंतजार के बाद नसीब हुई इस जीत ने इसकी महत्ता और मिठास बढ़ा दी। केरल वह राज्य है, जहां विश्व के इतिहास में प्रथम निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार ईएमएस नंबूद्रीपाद के नेतृत्व में सन 50 के दशक में सत्तारूढ हुई थी। दूसरे केरल ऐसा राज्य है, जहाँ की राजनीति दो विरोधी गठबंधनों की धूूरी पर टिकी हुई है। केरल की राजनीति में सेेंध लगाने और पांव टिकाने के लिये बीजेपी ने तरह-तरह के दांव आजमाये, लेकिन बात बनी नहीं। अंतत: आजादी के अमृत काल में उसे सफलता मिली और केरल के चुनावी इतिहास में पहली बार उसके उम्मीदवार ने किसी किले पर जीत का परचम लहराया।
केरल की राजनीति में वामपंथ और प्रगतिशीलता शुरू से केन्द्र में रही है। साक्षरता में अव्वल इस प्रदेश का मिजाज सेक्यूलर है । वह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को धता बताते हुए उनके ध्वजवाहक संगठनों को ठेंगा बताता रहा है। चुनाव-दर- चुनाव बीजेपी के लिए केरल में अंगूर खट्टे रहे। न तो बिस्कुट किंग राजन पिल्लै की पत्नी नीना पिल्लै को चुनाव लड़ाने से बात बनी और न ही मेट्रो मैन श्रीधरन पर दांव काम आया। मगर इस पूरे दौर में बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व केरल मे संभावनाओं को लेकर जबदस्त होमवर्क करता रहा। उसी दरम्यान उसकी नजर सुरेश गोपी पर पड़ी। मलयाली फिल्मों का यह चमकीला सितारा बीजेपी नेतृत्व को मिशन-केरला के लिए सर्वथा उपयुक्त लगा। वह केरल में ऐसे ही पापुलर चेहरे की तलाश थी। उसने रणनीति तैयार की। उसे लागू करने में सतर्कता बरती। फलत: सुरेश गोपी बीजेपी के पाले में आ गये और 'प्रथम ग्रासे मक्षिका पात:' के पहले चुनावी हादसे से उबरकर उन्होंने सन् 2024 के ग्रीष्म में कांग्रेस का परंपरागत किला त्रिशुर सर कर लिया।
25 जून, सन 1958 को अलपुझा में जन्में सुरेश के. गोपीनाथन पिल्ले और ज्ञानलक्ष्मी अम्मा की संतान है। उनका बचपन कोल्लम में बीता। प्राथमिक शिक्षा स्थानीय कॉन्वेंट के उपरांत फातिमा माता नेशनल कालेज में हुई। जीव विज्ञान में स्नातक के बाद उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम ए किया। फिल्मों से उनका नाता जुड़ा क्योंकि पिता फिल्मों के वितरक थे। उससे बालक सुरेश में फिल्मों के प्रति लगाव उपजा। अभिनय की पहली सीढ़ी उन्होंने सात साल की उम्र में चढ़ी। सन 1965 में उन्होंने ओडायिल निन्नू में बाल कलाकार की भूमिका निभायी। सन 1986 में वयस्क होने पर उनके लिए फिल्मों के द्वार खुल गये और बाद के वर्षों में उन्होंने मुख्यत: मलयाली और कुछेक तमिल, तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में तरह-तरह की भूमिकाएं निभायी और सफलता के झ्ंडे गाड़े।
उनकी कई फिल्में बॉक्स आफिस पर हिट रहीं और उन्होंने कीर्तिमान स्थापित किये। अपने असमाप्त फिल्मी करियर में सुरेश गोपी अब तक ढाई सौ से अधिक फिल्मों में काम कर चुके हैं और मनोरंजन को रुपहली दुनिया में अभिनेता और पार्श्व गायक के अलावा टीवी होस्ट के तौर पर उभरे हैं। सन 1998 में उन्हें फिल्म 'कालियट्टम' के लिये क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर का सिने अवार्ड मिल चुका है।
सुरेश गोपी की सफल और लोकप्रिय फिल्मों की फेहरिश्त लंबी है। सन 1987 में 'उरुपथमनुट्टांडु' में खलनायक की भूमिका में वह चर्चित रहे। लेकिन उनकी कामयाबी में चार चाँद सन 90 के परवर्ती दशक में लगे। यह दशक उनकी बेशुमार शोहरत का दशक था। उन्हें दर्शकों का बेतहाशा प्यार और सम्मान मिला। लेखक रेंजी और निदेशक शाजी की जोड़ी की जुगल बंदी से आई फिल्में अभिनेता सुरेश गोपी को खूब फली। थलस्तानम, एकलव्यन और माफिया जैसी फिल्मों ने उन्हें मलयाली सिने दर्शकों की चहेता कलाकार बना दिया। बड़ी बात यह कि सुरेश किसी एक रोल में टाइप्ड नहीं हुये, बल्कि उन्होंने तरह-तरह की भूमिकाएं निभायी। वह चरित्र अभिनेता रहे और नायक और खलनायक भी। यहां तक कि उन्होंने हास्य भूमिकाएँ भी निभायी। मणिचित्रयाजू में उनके अभिनय को खूब सराहा गया। सन 90 के परवर्ती दशक में आई उनकी नकुलन, काश्मीरम, कमिश्नर, हाईवे, राजपुत्रन, लेलम आदि ने धूम मचा दी। जनपतिपथयम, गुरू, प्रणयवरनंगल, तलोलम, पथरम, वझुन्नोर, मार्क एंटोनी, कवर स्टोरी, मकलक्कू, मेघ संदेशम, भारत चंद्रन आईपीएस आदि से यह सिलसिला और आगे बढ़ा। इसके बाद कुछ वर्ष के लिए सुरेश ने फिल्मों से फासला बना ली। सन 2006-15 के दरम्यान उनकी फिल्मों को आशातीत सफलता नहीं मिली। उन्होंने एकबारगी संन्यास भी लिया, लेकिन सन 2019 में तमिलारासन (तमिल) और मार्क एंटोनी के जरिये जबर्दस्त कमबैक किया। सन 2020 में 'वराने अवश्यमुंड' में सुरेश और शोभना की जोड़ी करीब 15 साल बाद एक साथ दिखी। तरता पाप्पन, काबूल कर गुरूदन जैसी फिल्मों ने उन्हें पुन: मलयाली सिनेमा के केंद्र में ला दिया।
8 फरवरी, सन 1990 को राधिका नायर से विवाहित गोपी सद्गृहस्थ कलाकार है। कौन यकीन करेगा कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का प्रारंभ सीपीआई (एम) की युवा इकाई एफएफआई से किया था। इसके बाद उनका लगाव कांग्रेस से रहा। वे श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रशंसक कल भी थे और आज भी हैं। त्रिशुर से चुने जाने के बाद श्रीमती गांधी को 'मदर इंडिया' कहना अकारण या आकस्मिक कतई नहीं है। वह उदारमना सदाशयी नेता हैं। सन 2006 के असेंबली चुनाव में उन्होंने नमी मिसाल कामम की। उन्होंने पोन्नानी में यूडीएफ के गंगाधरन का प्रचार किया तो मलमपुझा में एलडीएफ के अच्युतानंदन का।
केरल में पहले पहला और इकलौता कमल खिलाने वाले सुरेश गोपी का कमल से रिश्ता एक दशक पुराना भी नहीं है। उन्होंने अक्टूबर, सन 2016 में बीजेपी ज्वाइन की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कहने पर उन्होंने सन 2021 में विधानसभा का चुनाव भी लड़ा। लेकिन सीपीआई के पी. बालाचंद्रन से चुनाव हार गये। दिलचस्प यह कि मत गणना में वह तीसरी पायदान पर रहे। बालाचंद्रन की मुख्य प्रतिद्वंद्वी रहीं कांग्रेस की पद्मजा वेणुपाल। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में वे त्रिशुर से लड़े,लेकिन कांग्रेस के टीएन प्रतापन ने मात दे दी।दौड़ में वह तीसरे स्थान पर रहे। प्रतापन के मुख्य प्रतिद्वंदी रहे भाकपा के राजाजी मॅथ्यू थामस ।
अपनी शख्सियत के बूते सुरेश गोपी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नज़रों में चढ़ गये और उन्होंने गोपी को केरल का नाविक बना दिया। सुरेश गोपी 29 अप्रैल,सन 2016 को राज्यसभा के लिए मनोनीत हुये और 24 अप्रैल, 22 तक उच्च सदन के सदस्य रहे। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें अनेक महत्वपूर्ण कमेटियों का सदस्य मनोनीत किया। 4 जून को चुनाव 24 के नतीजे आने के कुछ ही दिनों बाद पीएम ने उन्हें मंत्री पद से नवाजा। उन्हें पेट्रो रसायन और पर्यटन मंत्रालयों में राज्य मंत्री बनाया गया। मंत्री बनने के तुरंत बाद उन्होंने पहला काम यह किया कि इसरो के चेयर मैन एस. सोमनाथ से मिले और मुल्लापेरियार तथा इडुक्की बांधों से संबंधित बाढ़ की विभीषिका के संदर्भ में अंतरिक्ष- प्रोद्योगिकी के उपयोग पर चर्चा की।
सुरेश गोपी केन्द्रीय मंत्री हैं, किंतु उनकी रुचि मंत्री पद में नहीं है। वह सांसद रहकर अपने दायित्वों का निर्वाह करना चाहते हैं। उनकी भाषा शालीन है और आचार-विचार में वह उदारता बरतते हैं। यही वजह है कि उन्हें पूर्व सीएम और माकपा नेता (स्व.) ई के नयनार के परिजनों से मिलने और पूर्व सीएम तथा कांग्रेस नेता (स्व.) के करुणाकरण की समाधि पर मत्था टेकने में संकोच नहीं होता । इससे भाजपा नेताओं में भले ही बेचैनी फैले, लेकिन केरल में बीजेपी को पांव पसारने के लिए गोपी सरीखे नेताओं की जरूरत है। उन्हें चर्च जाकर 'नन्नी चोल्लुन्नू दैवम' (प्रभु तेरा शुक्रिया) कहने अथवा मुसलमानों की रोजा इफ्तार में शिरकत से परहेज नहीं है। 21 प्रतिशत ईसाईयों और 14 प्रतिशत मुसलमानों की आबादी के केरल में गोपी बीजेपी की जरूरत बनकर उभरे हैं। क्योंकि उनके प्रशंसकों में कम्युनिस्ट भी हैं और काँग्रेसी भी। ऐसे राज्य में जहाँ बीजेपी के वोट गत 25 वर्षों में 6.56 फीसद से बढ़कर 16.68 फीसद हो गये हों, गोपी का होना बीजेपी के लिए सोने पर सुहागा है।