राजेश बादल
आज तीन दिसंबर है।विश्व इतिहास में एक कलंकित और ज़हरीला दिन।संसार ने इस दिन मानव निर्मित भयानक और अमानवीय त्रासदी देखी थी। भोपाल स्थित अमेरिकी यूनियन कार्बाइड कारख़ाने से मिथाइल आइसो साइनेट नाम की विषैली गैस इस रात रिसी और हज़ारों निर्दोष लोगों ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया।इनमें बच्चे,महिलाएँ और पुरुष सभी थे।अनगिनत मवेशियों की मौतें हुईं।गुज़िश्ता चालीस बरस में गैस के शिकार एक लाख से अधिक नागरिक अपनी जान गँवा चुके हैं।सन 1984 के बाद तीन पीढ़ियाँ आ चुकी हैं.तब से लाखों लोग उस गैस के असर से विकलांग या मंद बुद्धि वाले पैदा हुए हैं।आज भी उनके बच्चे ऐसे ही पैदा हो रहे हैं।हिरोशिमा - नागासाकी में अमेरिका के परमाणु हमले के बाद तो जापान ने अपने नागरिकों को अच्छी चिकित्सा सुविधा और आहार देकर सामान्य बना लिया,मगर हिन्दुस्तान के इस अभागे भोपाल शहर में गैस पीड़ित अभी भी तमाम समस्याओं का सामना कर रहे हैं।सरकार,न्यायपालिका,कार्यपालिका चुप्पी साधे बैठी है।पर,आवाज़ उठाने वाली पत्रकारिता भी राष्ट्रीय स्तर पर कलम और ज़बान पर ताला लगाए बैठी है।यह प्रवृति अत्यंत शर्मनाक है और हमारे भीतर पनपती असंवेदनशीलता तथा क्रूरता उजागर करती है।
मुख्य सवाल यह है कि पत्रकारिता के तमाम रूप ऐसा क्यों करते हैं ? चाहे टीवी हो,अख़बार हों,रेडियो हो या फिर डिज़िटल सोशल माध्यम।इक्का दुक्का अपवाद छोड़ दें तो आज कितने समाचारपत्रों या चैनलों में आपको आज़ाद भारत के इस शोक भरे अध्याय पर मौलिक लेखन या कवरेज दिखाई दिया ? कितने संपादकों ने संपादकीय टिप्पणियाँ लिखीं ? एक भोपाल इस दिन रोता है।सारा हिन्दुस्तान ठहाके लगाता है।हिरोशिमा के बाद मानव निर्मित सर्वाधिक भीषण त्रासदी पर न शोध हुए और न विश्वविद्यालयों में पीएचडी हुईं।यहाँ तक कि पत्रकारिता पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों में ऐसी आपदा के कवरेज का तरीक़ा तक नहीं पढ़ाया जाता।बुनियादी सरोकारों को भूलकर हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पत्रकारिता करने चले हैं।
मुझे याद है कि ज़हरीली गैस से काफी हद तक बचाव चेहरे को गीले तौलिए से ढांक कर हो सकता था।लेकिन किसी को इसकी जानकारी ही नहीं थी।यहाँ तक कि उस भीषणतम हादसे की रिपोर्टिंग कर रहे हम पत्रकारों को भी इसकी जानकारी नहीं थी।बस्तियों में बिखरी लाशों से बचते हुए हम पत्रकार बिना किसी बचाव के रिपोर्टिंग करते रहे थे।हमें कोई बताने वाला भी नहीं था।इन चालीस साल में किसी भी पत्रकारिता संस्थान ने अपने पाठ्यक्रम में संशोधन नहीं किया।फिर गैस रिसे,परमाणु हमला हो,सुनामी आए,लातूर,कश्मीर या गुजरात में भूकंप आए - हमारी पत्रकारिता पर कोई असर नहीं पड़ता।हम पत्रकार नहीं ,बल्कि पत्रकारिता करने वाली मशीनी रोबोट पैदा कर रहे हैं मिस्टर मीडिया !
तस्वीरें : आर सी साहू