राजेश बादल
भारतीय इतिहास में कभी ऐसा प्रमाण नहीं मिलता कि उसने कनाडा को कभी दुश्मन देश बताया हो .लेकिन, कनाडा ने मान लिया है कि हिंदुस्तान को वह शत्रु देश मानता है।यह अजीब लगता है ,मगर सच है। सोमवार को कनाडा की ख़ुफ़िया संस्था सीएसआईएस ने बाक़ायदा संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया कि भारत कनाडा में 28 अप्रैल को होने जा रहे आम चुनाव में हस्तक्षेप करने जा रहा है।कनाडा सुरक्षा ख़ुफ़िया सेवा की एक निदेशक वैनेसा लॉयड ने औपचारिक तौर पर आरोप लगाया कि भारत जैसा शत्रु देश इन चुनावों में दख़ल देने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करेगा।उन्होंने कहा कि भारत इसमें सक्षम है।वह ऐसा कर सकता है और उसका इरादा भी है।हालाँकि लॉयड ने ऐसा ही आरोप रूस,चीन और पाकिस्तान पर भी लगाया है।पर,हम जानते हैं कि हालिया दौर में भारत के साथ कनाडा के संबंधों में तीख़ी कड़वाहट आई है।रूस,चीन और पाकिस्तान के साथ फिलहाल उतनी गंभीर समस्या नहीं है।वैनेसा लॉयड कहती हैं कि भारत सरकार अपना ज़मीनी राजनीतिक प्रभाव क़ायम करने के लिए कनाडा के स्थानीय समुदायों और लोकतांत्रिक ढाँचे को प्रभावित करना चाहती है।यह उचित नहीं है।आपको याद होगा कि जनवरी में कनाडा के एक आयोग ने अपनी रिपोर्ट जारी की थी। इसमें भी यही बात कही गई थी।भारत ने इसका करारा उत्तर दिया था।इसके बाद कनाडा के समाचार पत्र द ग्लोब एंड ने लिखा था कि नई दिल्ली ने संघीय चुनाव में तीन राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को गुप्त वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए प्रॉक्सी एजेंटों का इस्तेमाल किया था ।
भारत को शत्रु देश कहने का कारण समझने के लिए कनाडा का पुराना घटनाक्रम जानना ज़रूरी है। वहां की राजनीति में पिछले कुछ समय से बौद्धिक समझ और कूटनीतिक कौशल का अभाव देखने को मिल रहा है।पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो के ज़माने में भारत विरोध की इस अपरिपक्व सियासत का आग़ाज़ हुआ था।जब उन्होंने दूसरी बार लिबरल पार्टी की सरकार बनाई तो बहुमत नहीं होने के कारण न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन लेना पड़ा था ।इसके मुखिया जगमीत सिंह हैं।यह पार्टी खालिस्तान समर्थक है।ट्रुडो शुरुआत में तो इस पार्टी के दबाव में खालिस्तान समर्थक रैलियों में भी जाया करते थे।बाद में उन्हें इसका खामियाज़ा उठाना पड़ा।खालिस्तान समर्थक पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया क्योंकि उसके नेताओं को लगने लगा कि अपने दम पर वे लिबरल और कंजर्वेटिव पार्टियों के समकक्ष खड़े हो सकते हैं।इसलिए ट्रुडो को समय पूर्व इस्तीफ़ा देना पड़ा। उनके बाद लिबरल पार्टी के मार्क कार्नी ने कामचलाऊ प्रधानमंत्री के रूप में काम संभाला। चुनाव तो सात महीने बाद कराए जाने थे।लेकिन ग़ैर राजनीतिक मिजाज़ के कारण उनके लिए मुल्क़ के सामने खड़ी चुनौतियों से निपटना कठिन था।इसलिए उन्होंने जल्द चुनाव कराने का फ़ैसला लिया।कार्नी पेशे से बैंकर रहे हैं और आगामी चुनाव में पहली बार संसद सदस्य बनने के लिए चुनाव लड़ेंगे।वहाँ की सियासत में वे कभी मुख्यधारा में नहीं रहे,फिर भी भारत उनसे आशा कर रहा था कि वे दोनों देशों के रिश्तों को पटरी पर लाने का प्रयास करेंगे।पर,ऐसा नहीं हुआ और वे भी वोट बैंक की राजनीति में उलझ गए।
लौटते हैं शत्रु देश वाले पेंच पर। चूँकि आने वाला चुनाव तीनों पार्टियाँ अपने दम पर लड़ेंगीं और लिबरल पार्टी खुलकर भारत विरोधी छबि के साथ मतदाताओं के सामने प्रस्तुत होगी। अब वह भारत का समर्थन तो कर नहीं सकती। यदि वह ऐसा करती है तो भारत विरोधी मतदाता उससे छिटक जाएँगे और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ चले जाएंगे। दो बार से सरकार चला रही लिबरल पार्टी पहले ही अलोकप्रिय थी और नकारात्मक वोटों की संख्या भी अच्छी खासी है। ऐसी स्थिति में कंज़र्वेटिव पार्टी की बढ़त अभी से दिखाई दे रही है। कामचलाऊ प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की यही दुविधा है। उन्हें प्रचार में न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी की तुलना में अधिक भारत विरोधी दिखना पड़ेगा।अब वे भारत समर्थक भी नहीं हो सकते।इस तरह लिबरल पार्टी की स्थिति साँप -छछूंदर जैसी हो गई है।कंज़र्वेटिव पार्टी ने भारतीय मूल के खालिस्तान विरोधी मतदाताओं की सहानुभूति हासिल कर ली है।यह लिबरल पार्टी के लिए गंभीर चिंता की बात है।
भारत विरोध पर तो दोनों पार्टियों का नज़रिया स्पष्ट है। लेकिन एक महत्वपूर्ण बिंदु पर आकर उनका संकट समान है।आपको याद होगा कि डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी पारी शुरू करते ही कनाडा को अमेरिका का 51वाँ राज्य बताया था और जस्टिन ट्रुडो को कनाडा का गवर्नर। इससे कनाडा कुपित हो गया। अब यह प्रश्न कनाडा के राष्ट्रीय स्वाभिमान और अखंडता से जुड़ गया है।लिबरल और कंज़र्वेटिव दोनों पार्टियों को इस मामले में एक मंच पर आना पड़ा।मार्क कार्नी ने डोनाल्ड ट्रंप को ललकारा।उन्होंने कहा कि कनाडा अब तक के सबसे गंभीर संकट का सामना कर रहा है।ट्रंप कहते हैं कि कनाडा नाम का कोई देश ही नहीं है।ट्रंप हमें तोड़ना चाहते हैं। हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे।इसके बाद कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पोलीवरे ने कहा कि कनाडा के लोग बेहद ग़ुस्से में हैं।डोनाल्ड ट्रंप को चाहिए कि कनाडा की संप्रभुता का सम्मान करें।अब दोनों पार्टियों को समझना होगा कि उनके देश के चुनाव में अमेरिका से ज़्यादा दख़ल कौन दे सकता है ? रूस ,चीन ,पाकिस्तान और भारत तो एक बार कनाडा में चुनाव से आँख मूँद भी लें ,मगर अमेरिका नहीं मूँद सकता।
लब्बोलुआब यह कि लिबरल पार्टी अब तक की सबसे कमज़ोर स्थिति में है।आने वाले चुनाव तक हम उसकी सरकार को भारत के ख़िलाफ़ और ज़हर उगलते देखेंगे। क्या भारत को इसके बाद भी तटस्थ रहना चाहिए ? ज़हर को बेअसर करने के लिए ज़हर की ज़रूरत ही होती है।चुनाव पार्टी लड़ती है और नीति देश की होती है। जब देश ने घोषित रूप से हिन्दुस्तान को दुश्मन बता दिया तो अब उससे दोस्त की तरह बरताव डेढ़ सौ करोड़ वाला देश कैसे कर सकता है ?