Know your world in 60 words - Read News in just 1 minute
हॉट टोपिक
Select the content to hear the Audio

Added on : 2023-05-07 21:55:44

राकेश दुबे

देश के प्रमुख दलों और उनसे बने गठबंधनों को चुनाव लड़ते-लड़ाते सालों बीत गये। ये दल अब तक  एक-दूसरे के खिलाफ व्यक्तिगत लांछन लगा कर चुनाव की लोकतांत्रिक गरिमा को दूषित ही कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने कांग्रेस और भाजपा के स्टार प्रचारकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। आयोग के मुताबिक बीजापुर शहर से भाजपा उम्मीदवार व पार्टी के स्टार प्रचारक बासन गौड़ा आर पाटिल और चित्तपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार व पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडक़े के बेटे प्रियांक खडग़े को कारण बताओ नोटिस गए हैं।

भाजपा उम्मीदवार बासन गौड़ा पाटिल ने कोप्पल जिले के यालबुर्ग इलाके में जनसभा में श्रीमती सोनिया गांधी को लेकर विवादित बयान दिया था, तो  कांग्रेस नेता प्रियांक खडग़े ने कलबुर्गी की जनसभा में प्रधानमंत्री को लेकर विवादित बयान दिया था। भाजपा और कांग्रेस ने चुनावी घोषणा पत्र जारी किए हैं। घोषणा पत्र में किए गए वादे पीछे छूट गए हैं। इन घोषणा पत्रों पर चर्चा करने के बजाय एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप लगाने से मतदाताओं को दिग्भ्रमित करने की कवायद से कर्नाटक के साथ देश को क्षति पहुंचाई जा रही है। 

प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस कर्नाटक में अपने बलबूते चुनाव लड़ रही है। जनता दल (एस) और आम आदमी पार्टी ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इससे जाहिर है कि विपक्षी एकता के प्रयास अभी दूर की कौड़ी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ज़रूर प्रयासरत हैं किन्तु कनार्टक में विपक्षी एकता के बिखराव की हालत देख कर ऐसे प्रयासों की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों का दबदबा है, उनमें बड़े दल विपक्षी एकता के लिए किसी दूसरे दल से सीटों पर समझौता करके बलि वेदी पर चढऩे को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि कर्नाटक में जनता दल (एस), कांग्रेस और आप चुनाव मैदान में हैं। विपक्षी एकता के इस बिखराव से भाजपा को पूर्व में भी चुनावी फायदा मिलता रहा है और कर्नाटक में भी मिल सकता है। कर्नाटक के चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा, कांग्रेस तथा जनता दल (एस) ने चुनावी घोषणा पत्रों में वादों की बौछार की है। इसके विपरीत चुनाव में विकास और समस्याओं के समाधान को दरकिनार कर फिजूल के मुद्दे हावी हैं। भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप लगाने में कसर नहीं छोड़ रही हैं, ऐसे में घोषणा पत्र महज दिखावा साबित हो रहे हैं।

घोषणा पत्रों पर सवाल-जवाब करने के बजाय इतर मुद्दों पर जोर देने से कर्नाटक में बुनियादी सुविधाओं के मसले दरकिनार कर दिए गए हैं। दरअसल विपक्षी दलों की जिम्मेदारी बनती है कि सत्तारूढ़ दल के कार्यकाल के दौरान छूट गए विकास के कार्यों को मुद्दा बनाएं। इसके विपरीत कांग्रेस ने चुनाव का रंग ही बदल दिया। विकास के बजाय दूसरे आरोप और विकास विरोधी मुद्दों को हवा दे डाली। कांग्रेस ने चुनाव प्रचार को बदरंग करने की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी पर निजी रूप से टिप्पणी करके की। इसके बाद दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोपों की बाढ़ आ गई। दोनों दलों के नेता निजी हमले करके एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। विकास के मुद्दे दरकिनार कर दिए गए। 

कांग्रेस ने बजरंग दल के साथ पीएफआई पर प्रतिबंध जैसे मुद्दे को लाकर भाजपा को बचाव का बड़ा चुनावी प्रचार का हथियार थमा दिया। बजरंग दल की तुलना पीएफआई से करना भाजपा को खटक गया। भाजपा ने अब इसे प्रमुख मुद्दा बना कर बजरंग बली से जोड़ दिया। ऐसे धार्मिक मुद्दों पर भाजपा पूर्व में कांग्रेस पर हावी रही है। कांग्रेस की इस तरह की चुनावी शुरुआत के साथ भाजपा खुल कर धार्मिक मसले पर सामने आ गई। विकास और घोषणा पत्रों में किए गए वायदों के बजाय अब यह प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है। इस मुद्दे पर वोटों का ध्रुवीकरण किया जा रहा है। भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया। घोषणा पत्र के वायदे सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह गए।

कोंग्रेस के पास कर्नाटक के विकास से जुड़े इस तरह के दूसरे मुद्दों पर भाजपा को कटघरे में खड़ा करने का अच्छा मौका था। इसके बजाय वोटों की तुष्टिकरण की नीति अपनाते हुए दूसरे मुद्दे हावी हो गए। चुनावी में विकास से इतर मुद्दे प्रमुख होने के कारण सत्तारूढ़ भाजपा को जवाबदेही से बचने का मौका मिल गया। कर्नाटक चुनाव के मद्देनजर इस बात की संभावना कम है कि आगामी लोकसभा चुनाव में ऐसे मुद्दे विकास और देश के भविष्य की रूपरेखा का स्थान नहीं लेंगे।

आज की बात

हेडलाइंस

अच्छी खबर

शर्मनाक

भारत

दुनिया