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Added on : 2023-05-29 08:44:06

अरुण पटेल,प्रबंध संपादक,सुबह सवेरे
जिस प्रकार से इन दिनों मध्यप्रदेश भाजपा में नेताओं की आपसी अर्न्तकलह उभर कर सतह पर आ रही है वह भाजपा जैसी केडरबेस पार्टी जो अपने लौह आवरणीय अनुशासन के लिए अन्य राजनीतिक दलों की भीड़ में अलग से पहचानी जाती थी, की कार्यशैली के अनुरुप नहीं कहा जा सकता। कभी इशारों इशारों में, कभी खुल कर तो कभी छुपे तौर पर जो हो रहा है उसको देखकर यही कहा जा सकता है कि आपसी स्वार्थों के टकराव के चलते पार्टी की अनुशासनात्मक  पकड़ अब काफी ढीली पड़ रही है। शुक्रवार 26 मई को सोशल मीडिया, आपसी चर्चाओं और अन्य माध्यमों से अटकलों का इस कदर दौर चला कि केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल तो प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष लगभग बन ही गये हैं  और उन्हें बधाइयां देने वाले भी सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गये। हालांकि जब शाम तक स्थिति स्पष्ट हो गई तब बधाई देने वालों ने भी अपनी पोस्ट डिलीट कर दी। लेकिन जिस प्रकार का घटनाक्रम चल रहा है उसको देखते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि यदि धुंआ उठ रहा है तो अंगारे कहीं न कहीं सुलग ही रहे होंगे भले ही उस पर राख डालने के प्रयास किए जा रहे हों। भाजपा में विधानसभा चुनाव के पूर्व बदलाव तो होना है वह किस स्तर पर होता है और कब तक होता है इसके लिए भी अधिक इंतजार नहीं करना होगा, क्योंकि  जो भी होना होगा चाहे बदलाव हो या यथास्थिति बनी रहे वह जून माह के प्रथम सप्ताह तक बहुत कुछ साफ हो जायेगा क्योंकि जैसे-जैसे दिन गुजरते हैैं चुनाव का समय भी उतना नजदीक आता जा रहा है।
एक ओर जहां भाजपा में अर्न्तकलह बढ़ रही है तो दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह इस स्थिति का पूरा-पूरा राजनीतिक लाभ अपनी पार्टी को दिलाने के लिए सक्रिय हो गये हैं तथा अनेक नेता उनके संपर्क में हैं, वह पार्टी छोड़ेंगे या नहीं, यह निश्चित तौर पर तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इससे भाजपा को राजनीतिक तौर पर खामियाजा उठाना पड़ सकता है। भले ही असंतोष को छुपाने के लाख प्रयास किए जायें, लेकिन पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और पूर्व लोकसभा सदस्य तथा प्रदेश की राजनीति में संत राजनेता माने जाने वाले कैलाश जोशी के बेटे पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने जिस ढंग से भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा है और सीधा निशाना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर साध रहे हैं उसका मतदाताओं पर कितना असर पड़ा यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इससे राजनीतिक फिजां में कुछ न कुछ माहौल बनने की संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता। एक तरफ असंतुष्टों को संभालने की जिम्मेदारी है तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री शिवप्रकाश ने पार्टी पदाधिकारियों से कहा है कि कार्यकर्ताओं को कांग्रेस के रियूमर यानी अफवाह सेल से बचाकर रखना होगा क्योंकि कर्नाटक में भी कांग्रेस ने इसी तरह रियूमर फैलाया जिससे हमारे कार्यकर्ता दिग्भ्रमित हुए थे। उपदेश व सीख देने के लहजे में उन्होंने कहा कि ऐसा यहां नहीं होना चाहिए। लेकिन उन्होंने बदलाव की जो बयार चल रही है उसे नहीं नकारा बल्कि यह कहा कि पार्टी में किसी तरह का बदलाव होना होगा तो उस पर शीर्ष नेतृत्व फैसला लेगा, फिलहाल में हमें मिशन 2023 फतह करने पर अपना पूरा फोकस लगाना होगा। लेकिन जहां तक मध्यप्रदेश का सवाल है यहां पर अफवाहों को पर लगे हुए हैं और वह भी इस अंदाज में कि जिससे ऐसा लगे कि कुछ न कुछ तो पार्टी में होने वाला है। पहले तो  शिवप्रकाश को नेताओं को कड़ाई से न केवल उपदेश की घुट्टी पिलाना होगी बल्कि आगे से ऐसा न हो उसकी भी पूरी चाक-चौबंद व्यवस्था करनी होगी अन्यथा इस प्रकार की सीख या नसीहत का कोई विशेष प्रभाव शायद ही पड़े। यदि सूत्रों की सही माने तो, क्योंकि आजकल ज्यादातर राजनीति सूत्रों के हवाले से ही हो रही है, शिवप्रकाश ने पदाधिकारियों से कहा है कि कर्नाटक में कांग्रेस के रणनीतिकार रहे नरेश अरोरा भोपाल में हैं जिन्होंने कर्नाटक में हमारी पार्टी को लेकर कई तरह के रियूमर फैलाये थे और अब यही काम मध्यप्रदेश में करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे पदाधिकारियों को सावधान रहने की जरुरत है।
भाजपा में इन दिनों जो कुछ देखने को मिल रहा है वह अनायास नहीं हुआ बल्कि प्रदेश व देश में लगातार सरकार रहने के कारण कार्यकर्ताओं व नेताओं के बीच यह दूरी नजर आई है। नेताओं के बीच सत्ता में अपनी मलाईदार भागीदारी को लेकर प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी है लेकिन जब तक वह प्रतिस्पर्धा रहती है उससे कोई विशेष ​फर्क नहीं पड़ता लेकिन अब प्रतिस्पर्धा प्रतिद्वंद्वता में तब्दील हो गयी है शायद यही एक कारण है कि भाजपा नेताओं के बयान मीडिया की सुर्खियां बने हुए हैं। यही सुर्खियां ही भाजपा नेतृत्व को शूल की भांति चुभ रही हैं। यही कारण है कि समझाइश के दौर पर दौर चल रहे हैं लेकिन यह समझाइश भी अटकलों को विराम नहीं दे पा रही है। इसलिए अब आला नेतृत्व भी यह समझ चुका है कि आगामी विधानसभा और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के पूर्व स्थायी समाधान के लिए उसे सर्जरी करना पड़ेगी। क्योंकि अब होम्योपैथी की मीठी गोलियों से असर होने वाला नहीं। सर्जरी करते समय नेतृत्व को एक ऐसे कुशल सर्जन की भूमिका भी निभानी होगी जिसके हाथ अपने को देख कर कांप न जायें, बल्कि जो जरुरी हो वह सर्जरी पूरी निर्ममता के साथ अपने-पराये का भेदभाव किए बिना की जाए। केवल नोटिस देने, अनुशासन का भय दिखाने, का विशेष असर होने वाला नहीं है और न ही खबरों के खंडन से या चेहरे की कास्मेटिक सर्जरी कर कुछ ब्यूटी स्पॉट लगाने से उसमें निखार आने वाला है।

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