जैसे ही बांग्लादेश में रविवार (7 जनवरी) को राष्ट्रीय चुनाव में मतदान होगा, भारत की पैनी नजर रहेगी। दोनों देश 4,100 किलोमीटर लंबी सीमा और गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध साझा करते हैं। एक स्थिर, समृद्ध और मैत्रीपूर्ण बांग्लादेश भारत के सर्वोत्तम हित में है।
राजेश बादल
अवामी लीग एक बार फिर बांग्लादेश में सरकार बना रही है।भारत ने वहां जम्हूरियत पसंद सरकार बनने पर ख़ुशी जताई है। भारतीय निर्वाचन आयोग ने भी अपनी प्रेक्षकीय भूमिका में बांग्लादेश के चुनाव आयोग की शैली और उसके काम काज पर संतोष प्रकट किया है।अलबत्ता अमेरिका ने आरोप लगाया है कि वहाँ निष्पक्ष निर्वाचन नहीं हुए और सत्तारूढ़ पार्टी ने विपक्ष की आवाज़ कुचलने का काम किया है।यह सच है कि विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार किया था और बड़ी संख्या में प्रतिपक्षी नेता जेलों में हैं । लेकिन किसी भी लोकतंत्र में निर्वाचन का कोई विकल्प नहीं हो सकता।इसलिए विपक्ष के चुनाव बहिष्कार की कोई बहुत सार्थकता नहीं है। यह भी सवाल खड़ा होता है कि क्या किसी भी मामले में सौ फ़ीसदी निष्पक्षता संभव है ? मैं कह सकता हूँ कि धुरी बदलते मौजूदा विश्व में ऐसी निष्पक्षता अब संभव नहीं है। चाहे वह कोई भी राष्ट्र हो ,सत्ता , सरकार और अंतरराष्ट्रीय हालात का अतिरिक्त दबाव तो होता ही है। ऐसे में अमेरिका का यह आरोप बेमानी है। विदेश नीति में बदलाव के चलते उसे बांग्लादेश के चुनाव में दोष निकालने ही थे। इन दिनों उसने पाकिस्तान की पीठ पर हाथ रखा है ,जहाँ फ़ौज लोकतंत्र को दशकों से कुचल रही है। लेकिन,अमेरिका को यह नज़र नहीं आ रहा है। वह प्रसन्न है कि पाकिस्तान ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान नियाज़ी को जेल में डाल रखा है क्योंकि इमरान ख़ान खुल्लमखुल्ला कहा करते थे कि उनकी सरकार गिराने के पीछे अमेरिका का हाथ है। इसलिए पाकिस्तान से प्रसन्नता और बांग्लादेश से नाराज़ी उसे दिखानी ही है। बांग्लादेश यह कैसे भूल सकता है कि उसकी आज़ादी के आंदोलन में हिन्दुस्तान बेखौफ साथ खड़ा हुआ था और अमेरिका ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया था। विदेश नीति की ऐसी त्रुटियाँ या विसंगतियाँ किसी भी देश को आगे जाकर भारी पड़ती हैं। अफ़सोस ! अमेरिका इससे सबक़ सीखने के लिए तैयार नहीं है। उसने भारत और पाकिस्तान के मामले में अधिकतर पाकिस्तान पर दाँव लगाया है ,जो प्रायः ग़लत साबित हुआ है। असल में भारत के साथ समान लोकतांत्रिक देश की तरह वह व्यवहार नहीं करना चाहता ।अपने को दुनिया का चौधरी मानते हुए वह सारे राष्ट्रों को अमेरिका का सहायक समझता है ।यही उसकी भूल है। वह अपने को चक्रवर्ती सम्राट की भूमिका में देखता है और तमाम देशों को वह युद्ध में पराजित राजा समझता है ,जिनके लिए अमेरिका के सामने सिर झुकाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है । यह जमींदाराना लोकतंत्र का नमूना है ।मान सकते हैं कि कुछ समय पहले उसका रुतबा था। लेकिन हालिया घटनाक्रमों में उसकी भूमिका ने अनेक सवाल भी खड़े किए हैं।
दरअसल भारत और बांग्लादेश के बीच सिर्फ़ यही रिश्ता नहीं है कि कभी दोनों मुल्क एक थे ।देखा जाए तो पाकिस्तान भी भारत की कोख़ से ही निकला हुआ है ।मगर,उसने तो कोख़ का सम्मान नहीं किया। हज़ार साल की साझा संस्कृति का भी उसने ख्याल नही रखा । इस नज़रिए से भारत और बांग्लादेश की गर्भनाल एक है । जिस राष्ट्र का नाम ही बंगला भाषा पर हो और जहाँ की राष्ट्रभाषा बांग्ला हो ,जिसका राष्ट्रगान गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा हो और जिसके राष्ट्रपिता को भारत में भी उतना ही मान मिलता हो,जितना उनके अपने देश में तो उसकी गर्भनाल भारत से अलग कैसे हो सकती है । इसके उलट पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को तो भारत में ही खलनायक माना जाता है और भारत की तो छोड़िए ,अब तो पाकिस्तान भी जिन्ना को याद नहीं करना चाहता । जिन्ना अपने जीते जी ही पाकिस्तान में पराएपन का शिकार बन गए थे।
शेख़ हसीना मुल्क़ के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति रहे शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं। वे पाँचवीं बार मुल्क़ की बागडोर संभालेंगीं।जब बाग़ी सैनिकों ने उनके पिता समेत पूरे परिवार को मार डाला तो शेख हसीना बांग्ला देश में नहीं थीं। वे लन्दन में थीं। वहाँ से वे भारत आईं क्योंकि उनको अपने ही देश में जान का ख़तरा था। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उनको लंबे समय तक सुरक्षा और संरक्षण दिया। उसी की बदौलत उन्होंने बांग्लादेश में अवामी लीग को जीवित किया।आज भी बांग्लादेश के लोग शेख मुजीबुर्रहमान और भारत की भूमिका को याद रखते हैं। स्वयं शेख़ हसीना हिन्दुस्तान को अपना दूसरा घर मानती हैं। इसलिए बांग्लादेश में उनका चुनाव जीतना यक़ीनन भारत के साथ स्थिर और भरोसेमंद संबंधों की गारंटी मानी जा सकती है।इसके अलावा भारत का स्थायी समर्थन बांग्लादेश को सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी राहत देता है।
चुनाव के बाद बांग्लादेश की तस्वीर कैसी होगी। हिंदुस्तान के पड़ोसियों पर चीन और अमेरिका जिस तरह अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं , वह भारतीय उप महाद्वीप की सुरक्षा और शांति के लिए गंभीर चेतावनी है। चीन ने बांग्लादेश को घेरने और ललचाने की अनेक कोशिशें की हैं ,पर वे क़ामयाब नहीं रही हैं।हालांकि उसका व्यापार संतुलन भारत की तुलना में बेहतर है। शेख हसीना को अपने पाँचवें कार्यकाल में देश के सामने विकराल आर्थिक चुनौतियों से निपटना होगा। भारत से उसका सड़क,रेल और कारोबारी संपर्क दिनों दिन बेहतर हो रहा है। दाल,चावल ,सब्ज़ियों से लेकर बिजली उत्पादन में भारतीय सहयोग से उसकी अनेक समस्याएँ हल भी हुई हैं। उम्मीद कर सकते हैं कि दोनों राष्ट्रों के बीच व्यापार संतुलन में सुधार होगा और शेख हसीना टिकाऊ सरकार दे सकेंगीं। हाँ विपक्ष के बारे में उन्हें निश्चित रूप से अपने रवैये को बदलने की ज़रुरत है।