छिंदवाड़ा। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने छिंदवाड़ा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस की स्थापना के बाद बड़े-बड़े सपने दिखाए थे कि अब जिले के लोगों को इलाज के लिए बाहर जाने पर मजबूर नहीं होना पड़ेगा. कांग्रेस का तो यह भी कहना था कि इलाज के लिए अब लोग नागपुर और जबलपुर जैसी जगह से भी छिंदवाड़ा में इलाज कराने आएंगे, लेकिन इलाज की बदतर स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 6 महीने में 161 नवजातों ने जन्म लेते ही दम तोड़ दिया. वहीं, पांच प्रसूता महिलाओं की भी मौत हुई है.
दरअसल मेडिकल कॉलेज की ओपीडी जिला अस्पताल में संचालित होती है. इस मामले में जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. एमके सोनिया ने बताया कि ''छिंदवाड़ा जिले में डिलीवरी प्वाइंट के साथ-साथ दूसरे जिलों से भी गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए छिंदवाड़ा रेफर किया जा रहा है. पुरानी बिल्डिंग और सीमित संसाधनों में काम करने डॉक्टर और स्टाफ को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है." सिविल सर्जन ने बताया कि ''इसके बाद भी हम लोग स्वस्थ डिलीवरी के पूरे प्रयास करते हैं, कुछ कारणों में नवजात की मौत प्रसव के बाद हो जाती है.''
संस्थागत प्रसव के दावे, जिला अस्पताल में रेफर होते हैं मामले: सरकार संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने का दावा करती है. स्वास्थ्य विभाग के पास पर्याप्त संसाधन ना होने से अक्सर ग्रामीण इलाकों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से गर्भवती महिलाओं को जिला अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है. जिसके चलते कई बार तो रास्ते में ही प्रसव हो जाता है और बच्चों की मौत का कारण बनता है.
ग्रामीण अंचलों के डिलेवरी प्वाइंट:ग्रामीण अंचलों के स्वास्थ्य केंद्रों में सुरक्षित प्रसव की व्यवस्था बनाई गई है. स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि इन सभी स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव कराए जाते हैं लेकिन अधिकांश प्रसव केंद्रों में स्टाफ और संसाधनों की कमी है. इस वजह से प्रसूता को जिला अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है. प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मौत की मुख्य वजह से समय पर इलाज का अभाव है. कई महिलाएं खून की कमी ब्लड प्रेशर लो या हाई होने की समस्या से पीड़ित होती हैं. एएनसी सेंटर में जांच और इलाज की सुविधाओं में कमी के चलते गर्भवती महिलाओं की हालत प्रसव के दौरान बिगड़ जाती है.