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Added on : 2024-07-07 19:13:46

डॉ. चन्दर सोनाने*
उत्तरप्रदेश के हाथरस जिले के पुलराई गाँव में नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में 2 जुलाई को मची भगदड़ के दौरान 123 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। अभी भी अनेक गंभीर घायल जीवन और मौत के बीच झूल रहे हैं। मृतकों में 113 महिलाएँ, 7 बच्चें और 3 पुरूष थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार 123 मौतों में से 74 की मौत दम घुटने, 15 की मौत सिर और गर्दन की हड्डी टूटने से हुई, 31 महिलाओं की पसलियाँ टूटकर दिल और फेफड़े में घुस जाने से मौतें हुई। भगदड़ में हुई मौतें मात्र लापरवाही नहीं है बल्कि, गंभीर अपराध है। इसलिए दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलना जरूरी है, ताकि भविष्य में फिर ऐसी घटनाएँ नहीं होने पाए।
              हाथरस के गाँव में हुए सत्संग में करीब ढाई लाख लोगों के आने की सूचना है, जबकि इनके बंदोबस्त के लिए केवल एक एसडीएम और मात्र 40 पुलिसकर्मी ही थे। सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसे मौके पर मची भगदड़ में व्यवस्थाएँ संभालने के लिए पुलिस बल नगण्य था। इसके लिए सीधे-सीधे राजस्व अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस अनुविभागीय अधिकारी के साथ ही डीएम और एसएसपी भी पूरी तरह से जिम्मेदार है। उन्होंने स्थिति को भापने में पूरी तरह से गलती की और सुरक्षा के कुछ भी बंदोबस्त नहीं किए। इसके लिए इन सबको तुरन्त निलंबित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही गंभीर लापरवाही और अपराध पर इनके विरूद्ध एफआईआर भी दर्ज की जाना चाहिए। गाँव में 27 जून से ही मध्यप्रदेश, राजस्थान सहित आसपास के राज्यों से करीब 500 बस पहुँच चुकी थी। श्रद्धालु टेंट लगाकर या बसों के नीचे सो रहे थे। प्रशासन इसे लगातार अनदेखा करता रहा और लगभग सोता रहा।
        देश में इस समय धर्म का बाजार बहुत अच्छा चल रहा है! आए दिन नई-नई दुकानें खुल रही है। इन बाबाओं पर राजनैतिक दलों और रसुखदारों का संरक्षण रहता है। यही नहीं वे बाबा के पैरों में दंडवत करने के लिए भी जाते रहते हैं। इस कारण उनके हौंसले बहुत बढ़ जाते हैं। इससे वे बेखौफ अपनी धर्म की दुकान चलाते रहते है। किसी सरकार का उन पर कोई नियंत्रण नहीं है। 
              हाथरस में हुई भगदड़ के प्रमुख कारण जो सामने आए हैं, उनमें बाबा की चरण रज और अमृत जल में छिपी है। श्रद्धालु अंधविश्वास के कारण वहाँ दिए जा रहे पानी को अमृत कहते हैं। भोले बाबा का नेटवर्क आसपास के राज्यों में जबरजस्त फैला हुआ था। हर गाँव में करीब 10 सेवादार होते थे। वे गाँव के लोगों को सत्संग के बारे में बाबा की चरण रज और अमृत जल की महिमा के बारे में बताते थे और उन्हें कारों और बसों में बैठाकर कार्यक्रम स्थल ले जाते थे। 
               भगदड़ के तीसरे दिन पुलिस ने 6 लोगों को पकड़ा। इनमें 4 पुरूष और 2 महिलाएँ थी। ये सभी आयोजन समिति के सदस्य और सेवादार है। बाद में मुख्य आयोजक देवप्रकाश मधुकर को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। किन्तु सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बाबा पर पुलिस ने अभी तक हाथ नहीं डाला है। यह कई तरह की शंका उत्पन्न कर रहा है। पुलिस को मुख्य अभियुक्त के तौर पर बाबा को मुल्जिम बनाया जाना चाहिए और उसके फरार होने पर इनाम घोषित कर उसके विरूद्ध एफआईआर दर्ज होना चाहिए। सर्वोच्च प्राथमिकता पर बाबा को गिरफ्तार कर उस पर 123 मौतों के लिए जिम्मेदार मानते हुए मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
               हाथरस के सत्संग के दौरान मची भगदड़ और 123 मौतों के जिम्मेदार मूल कारणों की एसआईटी ने जाँच कर 15 पेज की शुरूआती रिपोर्ट तैयार की है। इसमें सारा दोष प्रशासन और आयोजकों पर मढ़ा गया है। एसआईटी द्वारा एकत्र साक्ष्य आयोजकों के दोषी होने का साफ संकेत दे रहे हैं। जाँच रिपोर्ट में जिला स्तर तक के कई अधिकारी की भी लापरवाही मानी गई है। इसलिए भी राजस्व, पुलिस विभाग के सभी कनिष्ठ और वरिष्ठ अधिकारियों को एक साथ निलंबित किया जाना समय की माँग है। यह भी जानकारी मिली है कि डीएम और एसएसपी भी घटना के करीब पौने तीन घंटे बाद घटनास्थल पहुँचे थे। इसलिए भी इनके विरूद्ध सख्त कार्रवाई होना आवश्यक है।
    हाल के वर्षों में देश में मंदिरों और धार्मिक आयोजनों के दौरान भगदड़ की कुछ प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं  । 2005 में महाराष्ट्र के मंधारदेवी मंदिर में हुई भगदड़ में 340 श्रद्धालुओं की मौत और 2008 में राजस्थान के चामुंडा देवी मंदिर हुई भगदड़ में कम से कम 250 लोगों की मौत शायद आपको याद ही न हो।  हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भी 2008 में ही धार्मिक आयोजन के दौरान मची भगदड़ में 162 लोगों की जान चली गई थी। मध्यप्रदेश  में 31 मार्च 2023 को इंदौर शहर के एक मंदिर में रामनवमी के अवसर पर आयोजित हवन कार्यक्रम के दौरान एक प्राचीन बावड़ी के ऊपर बनी स्लैब ढह जाने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई। एक जनवरी 2022 को जम्मू-कश्मीर स्थित प्रसिद्ध माता वैष्णो देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए थे। 14 जुलाई 2015 को आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी जिले में ‘पुष्करम’ उत्सव के पहले दिन गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर भगदड़ से 27 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई तथा 20 अन्य घायल हो गएथे। तीन अक्टूबर 2014 में दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में भगदड़ मचने से 32 लोगों की मौत हो गई थी। 13 अक्टूबर 2013 को  मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गईऔर  100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे।  
 यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सत्संग में आए अधिकांश श्रद्धालु ग्रामीण क्षेत्रों के ही थे। इसमें भी महिलाएँ सर्वाधिक थी, जो अपने साथ छोटे बच्चों को लेकर आई थी। सत्संग में आए लोग अधिकांश अनपढ़ थे, जो अंधविश्वास के कारण बाबा की चरण रज और अमृत जल पाने के लिए सत्संग में आए थे। भगदड़ में हुई मौतों का सीधा संबंध अशिक्षा से है। इसलिए केन्द्र और समस्त राज्य सरकारों का दायित्व बनता है कि वे सर्वोच्च प्राथमिकता पर शिक्षा पर खर्च करें। सभी स्कूलों में रिक्त शिक्षकों के पदों की अनिवार्य रूप से पूर्ति करे। स्कूल भवन बनाए और वहाँ तमाम आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था करे। आज केवल साक्षर होना ही जरूरी नहीं है, शिक्षित होना भी जरूरी है। यह केवल शिक्षा से ही संभव हो सकता है। अन्यथा इसी प्रकार बाबाओं के सत्संग में आए दिन भगदड़ मचती रहेगी,मौतें होती रहेगी और बाबा राजनैतिक संरक्षण पाकर अपनी दुकान बेखौफ चलाते रहेंगे।

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