राजेश बादल
जब इंसान की नज़र और नीयत में ईमानदारी होती है तो उससे बड़ी से बड़ी सत्ताएँ भयभीत रहती हैं। महात्मा गाँधी से डरकर गोरा वाइस रॉय अपने परिजन को चिट्ठी लिखता है कि इस मुल्क़ का असली वाईसरॉय तो एक अधनंगा फ़क़ीर है। उसके पीछे करोड़ों लोग चलते हैं। वही गांधी ,जो अँगरेज़ सरकार के क़ानून को नहीं मानता। वह बिना इजाज़त अखबार निकालता है और वही लिखता है ,जो उसका जी चाहता है।अभिव्यक्ति की आज़ादी को वह इंसान का मौलिक अधिकार समझता है। हर तानाशाह असहमति के सुरों से डरता है। स्वतंत्रता के बाद भी ऐसा ही एक गाँधी राजेंद्र माथुर के रूप में आता है। वह सिर्फ़ सच लिखता है। संसार की सबसे ताक़तवर महिला इंदिरा गांधी को वह सात मुद्दे लिखकर आईना दिखाता है। नतीज़तन इंदिरा गाँधी शब्दों पर अंकुश लगाने के लिए माफ़ी माँगती हैं। इसी श्रेणी में एक संपादक धर्मवीर भारती आता है ,जो सेंसरशिप के विरोध में और लोकतंत्र के पक्ष में धर्मयुग के पन्ने भर देता है। ऐसे ही बेखौफ संपादक इस राष्ट्र में निष्पक्ष पत्रकारिता के प्रतीक बन जाते हैं और प्रतीक कभी नहीं मरते। वे विचारों की तरह हरदम अवाम के दिल में धड़कते रहते हैं।
राजेंद्र माथुर पर मेरी एक पुस्तक सदी का संपादक शीघ्र ही आ रही है।लेकिन इस बीच वरिष्ठ मित्र प्रेम जनमेजय ने धर्मवीर भारती पर एक नायाब ग्रन्थ हम पाठकों को तोहफ़े की शक़्ल में सौंपा है।राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने माने क़रीब सत्तर लेखकों ने इस यज्ञ में अपनी आहुति दी है।इनमें एक मेरी भी है।पुस्तक के लेखों के हवाले से हम धर्मवीर भारती के उन रूपों को जानते हैं ,जो अब तक हमारे सामने नहीं आए थे।जिन शब्दसितारों ने एक नए धर्मवीर भारती को प्रस्तुत किया है,उनमें अमृतलाल नागर,कमल किशोर गोयनका ,शरद जोशी,शीला झुनझुन वाला,चित्रा मुदगल,त्रिलोकदीप ,हरीश पाठक,डॉक्टर ज्ञान चतुर्वेदी और विश्वनाथ सचदेव जैसे हस्ताक्षर भी हैं।अपनी विशिष्ट शैली में प्रेम जी,जॉर्ज ऑरवेल का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं," जो अतीत को नियंत्रित करता है ,वही भविष्य को नियंत्रित करता है।जो वर्तमान को नियंत्रित करता है ,वह भूत को नियंत्रित करता है।तो क्यों न हम सब मिलकर धर्मयुग के उस युग को स्मरण शब्दों से जीवित करें "।ज़ाहिर है धर्मयुग के शिल्पी धर्मवीर भारती को जाने बग़ैर यह संभव नहीं है।पर,धर्मयुग का धर्मवीर भारती बेहद रूखा ,सख़्त और कड़क इंसान था। उनके दफ़्तर में कोई जाए तो सोच भी नहीं सकता था कि इसी गर्वीले,रौबीले संपादक ने कभी गुनाहों का देवता जैसा उपन्यास भी लिखा होगा। मित्र हरीश पाठक उनके इस मिजाज़ के बारे में लिखते हैं,"दहशत का आलम यह था कि भारती जी के केबिन में जाने से पहले कोई अपने गुरु को याद करता तो कोई हनुमान जी को। यह डॉक्टर धर्मवीर भारती का आतंक ,प्रभाव या जलवा ही था। आप जो चाहें कह लें। वे हिंदी के ऐसे इकलौते संपादक थे ,जो चौबीस घंटे धर्मयुग के बारे में ही सोचते थे "।
पदमश्री डॉक्टर ज्ञान चतुर्वेदी पचास बरस पहले जब व्यंग्य लेखन की शुरुआत कर रहे थे ,तो डॉक्टर भारती ने ही उन्हें गढ़ा।उस दौर में उनकी कुछ रचनाएँ लगातार लौट कर आती रहीं।ज्ञान जी को लगा कि कोई उप संपादक उनकी रचनाओं को लौटा रहा है। तनिक खिन्न होकर ज्ञान जी ने उन्हें चिट्ठी लिखी।भारती जी का उत्तर आया," आपकी सारी रचनाओं को मैंने ही देखा है और वापस किया है। भविष्य में भी जब तक आप पिछली रचना से आगे बढ़े नहीं दिखेंगे,हम नहीं छापेंगे। अपनी हर रचना में आप कुछ आगे बढ़ते मिलें तो मुझे ख़ुशी होगी। दूसरों से अपनी तुलना न करें कि किसकी कौन सी कमज़ोर रचना छप गई। आपकी प्रतियोगिता बस आपसे है। बार बार ख़ुद को आप हरा सकें तो ही हम आपको धर्मयुग में छाप सकेंगे "।अब बताइए आज के दौर में क्या कोई संपादक अपने रचनाकारों को इस तरह रचने का काम करता है ?
हाँ - एक तथ्य इस समूचे ग्रन्थ में उपेक्षित सा रह गया। एक - दो आलेखों में आंशिक ज़िक्र आया है। पर वह धर्मवीर भारती को समग्रता से समझने के लिए पर्याप्त नहीं है। जाने - अनजाने में धर्मवीर भारती की पहली पत्नी कांता भारती ,उनसे भारती जी के तनावपूर्ण रिश्ते ,अलगाव और भारती जी का दूसरा विवाह इस ग्रन्थ से अनुपस्थित है। दरअसल गुनाहों का देवता भारती जी की ज़िंदगी का ही एक हिस्सा है ,जिसमें उनकी पहली पत्नी कांता जी के साथ न्याय नहीं हुआ। कांता जी को महसूस हुआ कि वे छली गईं। इसके बाद ही उन्होंने अपने पर लगे आरोपों का उत्तर देते हुए रेत की मछली नाम से एक उपन्यास लिखा। चूँकि कांता जी से भी मेरी मुलाक़ात हुई थी और उनसे मैं पीड़ा भरी दास्तान सुन चुका था। इसलिए लगता है कि इस कथा को बेबाक़ी से प्रस्तुत किया जाना चाहिए था। अतीत के प्रेत कभी इंसान का पीछा नहीं छोड़ते। इतिहास में कई कहानियाँ इसका सुबूत हैं। कांता - कथा उजाग़र होने से भारती जी के क़द पर कोई असर नहीं पड़ता। वे हमारे दिलों में पहले की तरह ही धड़कते रहेंगे। मैनें राज्यसभा टीवी के दिनों में भारती जी पर एक बायोपिक बनाने का विचार किया था। लेकिन पुष्पा भारती जी की शर्त थी कि वे पटकथा को एप्रूव करेंगीं। यह शर्त कोई भी स्वीकार नहीं कर सकता। मैंने भी नहीं मानी। इस कारण आज तक भारती जी पर कोई फ़िल्म नहीं बन सकी। फिर भी धर्मवीर भारती - धर्मयुग के झरोखे से एक अनमोल ग्रन्थ बन पड़ा है। यह ग्रन्थ चंद रोज़ पहले प्रेम जी ने मुझे दिया। उनके पश्चिम विहार स्थित सार्थक अपार्टमेंट के निवास में देर तक समकालीन पत्रकारिता और साहित्य पर चर्चा हुई।मौजूदा कालखंड में राजेंद्र माथुर ,धर्मवीर भारती और शरद जोशी और शिद्दत से याद आते हैं। मेरे साथ राज्य सभा टीवी में सहयोगी रहे लेखक और पत्रकार रितु कुमार भी चर्चा में साथ थे।यहाँ कुछ चित्र मेरे आलेख के भी हैं। एक चित्र प्रेम जी के साथ है।