राजाराम त्रिपाठी
हाल ही में केंद्र सरकार ने फसलों का 2023-24 खरीफ का घोषित किया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तथा इस बार MSP में फसलवार की गई वृद्धि निम्नानुसार है।धान (सामान्य) 2183 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 143 रुपए,धान (ग्रेड ए) 2203 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 143 रुपए,ज्वार (हाइब्रिड) 3180 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 210 रुपए,ज्वार (मालदंडी) 3225 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 235 रुपए,बाजरा 2500 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 150 रुपए,रागी 3846 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 268 रुपए,मक्का 2090 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 128 रुपए ,तूर (अरहर) 7000 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 400 रुपए, मूंग 8558 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 803 रुपए,उड़द 6950 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 350 रुपए,मूँगफली 6377 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 527 रुपए ,सूरजमुखी बीज 6760 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 360 रुपए
सोयाबीन (पीला) 4600 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 300 रुपए,तिल 8635 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 805 रुपए ,रामतिल 7734 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 447 रुपए ,कपास (मध्यम रेशा) 6620 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 540 रुपए
कपास (लम्बा रेशा) 7020 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि 640 रुपए,
सरकार फसलों की लागत में खेती में लगने वाले सभी खर्चो को जोड़कर 50% लाभ जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने का दावा भी कर रही है। लेकिन खेती में किसान तथा उसके परिवार की मजदूरी, फसल में लगने वाले मजदूरों का भुगतान, बैलों के मूल्य तथा उनके भोजन एवं रखरखाव का व्यय, ट्रैक्टर पावर टिलर, मोटरसाइकिल आदि सभी मशीनों का खर्च, भूमि के लीज का भुगतान खर्च, बीज, उर्वरक, खाद, सिंचाई शुल्क, ट्रैक्टर,ड्रिप ,सिंचाई पंप आज सभी कृषि उपकरणों एवं कृषि भवनों पर मूल्यह्रास, कार्यशील पूंजी पर ब्याज, पंप सेटों के संचालन के लिए डीजल/बिजली आदि पर किए गए खर्च, विविध मूल्य तथा पारिवारिक श्रम की मजदूरी वर्तमान बाजार मूल्य के आधार पर नहीं जोड़ा जाता है। जब खेती पर लगने वाले लागत की गणना ही सही नहीं है तो आगे मुनाफे की बात करना ही व्यर्थ है। यही कारण है कि खेती आज भी घाटे का सौदा बना हुआ है। हालत यह है कि ट्रैक्टर की जुताई के खर्चे में लगभग 20% की वृद्धि हो गई मजदूरी में लगभग 25% की वृद्धि हो गई। खाद बीज दवाई में 20 से 25% की वृद्धि देखी जा रही है। ऐसी हालत में धान अथवा मक्का की कीमत में 6% की वृद्धि से किसान को 50% लाभ मिलने के बजाय उल्टा घाटा हो रहा है।
सरकार झूठ बोलती है कि सभी फसलों पर दिया जा रहा है लागत का 1.5 गुना मूल्य :-
हर बार की तरह सरकार के पिछलग्गू जेबी किसान संगठन तथा उनके दलाल नेता गण इस बार भी इस एमएसपी मूल्य वृद्धि को क्रान्तिकारी बताते हुए मुक्तकंठ से इस "ऊंट के मुंह में जीरा" जैसी वृद्धि की तारीफ करते हुए इसके लिए सरकार की प्रशंसा करते हुए सरकार को धन्यवाद ज्ञापित करते घूम रहे हैं। *जबकि सरकारी शांताकुमार कमेटी का कहना है कि, अभी केवल 6% उत्पादन ही एमएसपी पर खरीदा जाता है,बाकी 94% किसानों का उत्पादन एमएसपी से भी कम रेट पर बिकता है, जिसके कारण किसानों को हर साल लगभग 7 लाख करोड़ का नुकसान होता है । हर साल किसानों को मिलने वाली सभी प्रकार की सब्सिडी को अलग कर दिया जाए तो भी, देश भर के किसानों को 5 लाख करोड़ का घाटा हर साल सहना पड़ रहा है. इन हालातों में खेती और किसानी कैसे बचेगी यह सोचने का विषय है.*
देश को दलहन एवं तिलहन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार द्वारा इन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी के चलते सरकार ने पिछले वर्षों में इन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP में अधिक वृद्धि की घोषणा की है। सरकार हर साल इसी तरह उपरोक्त परंपरागत फसलों का निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा करने की मात्र औपचारिकता निभाती है, लेकिन यह मूल्य किसानों को दिलाने का कोई प्रयास नहीं करती। समर्थन मूल्य पर खरीदी को अनुवाद बनाने की कानून को लागू करके ही किया जा सकता है।
अब सरकार लेकिन दलहनों, तिलहनों और अन्य पोषक धान्य/श्री अन्न जैसे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने का भारी प्रचार रही है, इस भारी प्रचार से केवल मीडिया को फायदा हो रहा पर इसकी खेती से किसानों को कितना फायदा दिलाया जाएगा इसका कोई रोड मेप नहीं है।
किसानों की इस दुर्दशा का कारण स्वयं किसान तथा किसान संगठन भी हैं । यह सही है कि देश के हुक्मरानों ने किसानों के साथ हमेशा दोयम दर्जे का सौतेला व्यवहार किया है, लेकिन साथ ही यह भी कटु सत्य है कि किसानों के असली दुश्मन यह हमारे मौकापरस्त किसान नेता और उनके जेबी, पिछलग्गू किसान-संगठन हैं। इन किसान संगठनों ने हमेशा किसान हितों को बेच कर अपना उल्लू साधा है। ज्यादातर किसान नेता भीतर खाने किसी न किसी राजनेता से या राजनीतिक दलों से जुड़े रहते हैं, जिसके चलते ही यह किसान नेता किसानों के आंदोलनों के समय किसानों के ज्वलंत मुद्दों के समाधान को तरजीह देने की जगह उन राजनीतिक पार्टियों की हितों की रक्षा को अपना परम धर्म व कर्तव्य मानकर कार्य करते हैं, देश की खेती तथा किसानों को ऐसे किसान नेताओं तथा इनकी गोपनीय दुरभसंधियों ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। लेकिन अब वक्त आ गया है कि देश के समस्त किसान अपने हितों के लिए स्वयं जागरूक बनें, आज किसानों को देश में बिके हुए किसान नेताओं और इनके बिकाऊ किसान-संगठनों को पहचान कर, इन तथाकथित किसान नेताओं की नेतागिरी चमकाने वाली खुल्ली दुकानों के चंगुल से जल्द से जल्द मुक्ति पाकर अपनी असल समस्या के निदान के लिए एकजुट होना होगा, तब ही उनकी समस्याओं का भविष्य में उचित समाधान हो पायेगा। वैसे भी देश के नीतिनिर्माताओं को किसानों की ज्वलंत समस्याओं पर राजनीतिक पैंतरेबाजी करने की जगह खुले मन से व सकारात्मक विचारों के साथ मनन करके मूल समस्या का निदान समय रहते करने की जरूरत है, तब ही देश का सर्वांगीण विकास हो पायेगा।
*"एमएससी गारंटी कानून" लाए बिना नहीं चलने वाला अब काम :-* अब सरकार को यह समझना होगा कि एमएसपी यानि कि "न्यूनतम समर्थन मूल्य" दरअसल किसानों के लिए यह प्राण-वायु यानि कि आक्सीजन की तरह है। इसके अभाव में देश का किसान घुट-घुट कर मर रहा है। सरकार को इसके लिए एक सक्षम "एमएसपी गारंटी कानून" लाना ही होगा। आईफा पिछले कई वर्षों से इसके लिए संघर्षरत है। हमारा मानना है कि इस कानून के लागू होने से देश के खजाने पर 1 रूपए का भी बोझ नहीं पड़ेगा, बस व्यापारियों को किसान भाइयों को उनके खून पसीने की मेहनत का उचित मूल्य देना होगा, बस इतनी सी बात है। आईफा यह बिल्कुल नहीं कहती कि पूरे देश के किसानों का पूरा उत्पादन सरकार खरीदे, हम तो कहते हैं कि सरकार चाहे तो किसानों से 1 ग्राम भी अनाज ना खरीदे, आप तो बस कानून द्वारा यह सुनिश्चित कर दीजिए कि सरकार द्वारा निर्धारित "न्यूनतम समर्थन मूल्य" से कम पर कोई भी, कहीं भी न खरीदें। वैसे आज भी सरकार किसानों से जितना भी खाद्यान्न खरीदती है, वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही खरीद करती है, यानी कि सरकार पर इस कानून को लाने से कोई बोझ नहीं पड़ने वाला। आप मेरी बात लिखकर रख लें, यह सरकार हो अथवा कोई और सरकार, सरकार को सभी किसानों को उनके समस्त कृषि उत्पादों का लाभकारी "न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून" जल्द से जल्द देना ही होगा। देश के प्रत्येक किसान द्वारा उत्पादित हर फसल का एक लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होना चाहिए। इसमें खाद्यान्न, दलहन, तिलहन ,गन्ना, कंद, मूल, फल, सब्जी, पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, मसाले , नारियल, केला, औषधीय व सुगंधीय पौधे, नर्सरी सहित खेती के सभी उत्पाद शामिल होनी चाहिए।
इसके लिए सरकार गैर राजनीतिक किसान संगठनों के साथ मिल बैठकर बात करें और किसानों के समस्त उत्पादों के लिए "न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून" का बिल शीघ्र अति शीघ्र ले आएं।और देश के चुनिंदा उन्नत, अनुभवी किसानों तथा गैर राजनीतिक किसान संगठनों के साथ मिल बैठकर ही चाहे न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना चाहिए तथा कृषि योजनाओं के वर्तमान स्वरूप क्रियान्वयन विधि की पुनर्समीक्षा करनी चाहिए और इन सभी योजनाओं को धरातल पर किसानों के हित में युक्ति-युक्त, कारगर, व्यावहारिक एवं परिणाम मूलक बनाया जाना चाहिए।