राजेश बादल
इंसानियत के लिए बेहद संवेदनशील और निर्णायक दौर चल रहा है।ज्यों ज्यों कृत्रिम बुद्धिमत्ता और सोशल मीडिया के नए अवतार आ रहे हैं,वे समूची मानव बिरादरी के लिए कई पेंच भी पैदा कर रहे हैं।यह पेंच भविष्य की तस्वीर को अत्यंत चमकदार बनाते हैं तो इस तस्वीर को खंडित करने की आशंकाएँ भी विकराल रूप ले रही हैं। इन आशंकाओं के बीच यह गंभीर प्रश्न भी खड़ा हो गया है कि क्या हम सारे संसार के लिए निर्धारित नैतिक , मानवीय और लोकतांत्रिक मूल्यों का विनाश करने पर तो उतारू नहीं हैं ? आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर चल रही ताज़ा बहस तो कम से कम यही संकेत देती है।चैट जी पी टी बनाने वाले अमेरिकी स्टार्ट अप ओपन एआई की संपादकीय सामग्री के चुनाव का तरीक़ा संसार के अनेक देशों को रास नहीं आ रहा है। दूसरी ओर चीनी अवतार डीपसीक अपनी एक ख़ास चीनी गंध के साथ इसका मुक़ाबला करने को तैयार है। यह सिर्फ़ चीनी हितों की रक्षा का ध्यान रखने के लिए तैयार किया गया है। भारत जैसे कुछ कुछ तटस्थ मुल्क़ ठिठके हुए हैं। न तो उनका अपना कोई ऐसा प्लेटफॉर्म है और न इतनी आसानी से आनन फानन में तैयार हो सकता है।अलबत्ता भारतीय आई टी मंत्री अश्विनी वैष्णव यह दावा कर रहे हैं कि भारत शीघ्र ही अपना अवतारी संस्करण लाएगा। तब तक चैट जी पी टी के लिए भारत का बाज़ार तो खुला ही है। जब ओपन एआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सेम ऑल्टमेन भारत में आकर कहते हैं कि भारत आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस में वर्ल्ड लीडर बन रहा है तो अप्रत्यक्ष रूप से उसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि भारत को अपना अलग से प्लेटफॉर्म खड़ा करने की आवश्यकता क्या है ? यह वही ऑल्ट मेन हैं ,जो डेढ़ साल पहले तक कह रहे थे कि भारत में एआई की वृद्धि दर निराशाजनक है। लेकिन जब बीते एक बरस में एआई का इस्तेमाल करने वाले तीन गुना बढ़ गए तो सेम ने भी अपने सुर बदल लिए हैं । सरकारी दावे के अनुरूप यदि भारत का अपना प्लेटफॉर्म आ गया तो ओपन ए आई के कारोबार का क्या होगा ? इस समय भारत में चैट जी पी टी के उपयोगकर्ता विश्व में किसी भी अन्य देश की तुलना में सर्वाधिक हैं।
लेकिन मुद्दा ओपन आई के संपादकीय कंटेंट का भी है।भारत में ख़बरिया घरानों ने उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज़ कराया है। कुछ और घराने भी अपने कॉपी राइट कंटेंट को बिना अनुमति इस्तेमाल करने के कारण चैट जी पी टी से नाराज़ हैं। उनका तर्क है कि बड़ी मेहनत से उन्होंने यह कंटेंट तैयार किया और उसने यह पका पकाया कंटेंट अपने प्लेटफॉर्म पर इस्तेमाल कर लिया। यह अनुचित है। चैट जी पी टी का तर्क है कि उसने उसी सामग्री का उपयोग किया है ,जो पहले से ही सार्वजनिक मंचों पर आ चुकी है। पर , यह उसका तर्क बड़ा मासूम लगता है। यदि कोई अपने कॉपीराइट कंटेंट का उपयोग अपनी आमदनी बढ़ाने में कर रहा है तो यह उसका भारतीय संविधान में प्रदत्त अधिकार है। उसी कंटेंट को जी पी टी भी शेयर करेगा तो मूल कंपनी घाटे में रहेगी क्योंकि चैट जी पी टी भी तो पैसा कमाएगी। उस कंटेंट से अपनी आय बढ़ाएगी ,जिस कंटेंट को उसने किसी दूसरे प्लेटफॉर्म से चुराया है।यह सरासर ग़लत है।इसी आधार पर ओपन एआई पर विभिन्न देशों में एक दर्ज़न से ज़्यादा मुक़दमें चल रहे हैं।
चैट जी पी टी इसलिए भी भारत में अपने बाज़ार को फिलवक्त नहीं खोना चाहेगा कि भारत सरकार अभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को प्रोत्साहित करने के लिए बढ़ावा दे रही है। वह क़रीब चालीस फ़ीसदी सब्सिडी दे रही है। मान लें कि मौज़ूदा क़ीमत 261 रूपए एक घंटे के कंटेंट की है तो सब्सिडी के बाद किसी भी उपभोक्ता को सिर्फ़ 100 रूपए ही देने होंगे।यह किसी भी एआई अवतार के लिए बहुत बड़ी सुविधा है।सूत्र कहते हैं कि सेम ऑल्ट मेन ने भारत के हितों का ध्यान रखने का भी वादा भारत सरकार से किया है। इससे मतलब राष्ट्रीय हितों से है।
अब दूसरी तरफ आते हैं। चीनी अवतार डीपसीक भी चीन से बाहर लोकप्रिय हो रहा है। पाकिस्तान ,बांग्लादेश , रूस ,नेपाल और अनेक देशों में यह बेहद लोकप्रिय हो रहा है। बताने की ज़रुरत नहीं कि यह चैट जी पी टी का मुक़ाबला कर रहा है।डीप सीक के बारे में कहा जाता है कि इसकी मेमोरी हाथी की तरह है। यह आपकी हर गतिविधि को याद रखता है। इसे आप अपने पर्सनल सेक्रेटरी की तरह भी उपयोग में ला सकते हैं। लेकिन चीन का डीप सीक इस्तेमाल करते समय यह ध्यान में रखना होगा कि वह ऐसी कोई भी जानकारी आपको नहीं देगा ,जो चीन में लोकतंत्र को बढ़ावा देती हो। मसलन 1989 में थियानमन चौक पर लोकतंत्र बहाली की माँग को लेकर छात्रों पर गोलियाँ बरसाई गईं थीं और बड़ी संख्या में छात्र मारे गए थे। अब इस घटना के बारे में आप डीपसीक से कुछ चाहेंगे तो आपको कुछ नहीं मिलेगा।इसी तरह ताइवान के बारे में चीनी नज़रिए से जानकारी उपलब्ध कराएगा। चैट जी पी टी इस मामले में तनिक उदार है ,लेकिन उससे भी आप ऐसी अपेक्षा नहीं कर सकते कि वह अमेरिका के ख़िलाफ़ हर जानकारी मुहैया कराएगा।ऐसी स्थिति में भारत के लिए अपना प्लेटफॉर्म विकसित करना आवश्यक है।
इन आधुनिकतम नक़ली दिमाग़ों से हमारी सारी समस्याएँ हल हो जाएँगीं। कम से कम अमेरिकी उद्योगपति मार्क एंडरसन तो यही कहते हैं। वे इस विषय के जानकार भी माने जाते हैं।जून 2023 में लिखे एक लेख में वे कहते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दुनिया को नष्ट नहीं करेगा। एक और जानकार रे कुर्जवील भी अइसही मानते हैं। मगर , मेरी चिंता तो 2023 में ही चीन, अमेरिका और तीस अन्य देशों की ओर से स्वीकार किया गया ब्लेचली घोषणापत्र को लेकर है।यह घोषणापत्र कहता है कि एआई मनुष्य को मनुष्य के ख़िलाफ़ बाँट देगा और प्रतिद्वंद्वी देशों को विनाशकारी टकराव बिंदु तक ले जाएगा।यदि इक्कीसवीं सदी का वैश्विक तानाशाही तंत्र दुनिया पर विजय भी हासिल कर ले तो बहुत संभव है कि उसका संचालन उसी तानाशाह के हाथ से फिसलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के हाथों में आ जाए और वह परमाणुबम तक चलाने का फ़ैसला अपनी बुद्धि के आधार पर कर ले। एक अधिनायक इस एआई को खुद अपनी सत्ता हथियाने से कैसे रोक सकता है ?