डॉ. सुधीर सक्सेना
छन्दय यानि इलेक्शन | इलेक्शन यानि चुनाव । सिंहली- अंग्रेजी युग्म रचें तो होगा छन्दय-मोड। यानि हमारा समुद्रतटीय पड़ोसी राष्ट्र श्रीलंका इन दिनों छन्दय मोड में है। ज्यादा वक्त नहीं है। इस माह की 21 सितंबर को करीब एक करोड़ 70 लाख मतदाता विषम परिस्थितियों से गुजर रहे द्वीप-राष्ट्र का नया राष्ट्रपति चुनेंगे!
बिसात बिछी है। पांसे फेंके जा चुके हैं। वातावरण आवेशित है। दुविधा है। संभ्रम है।ज्यादातर खिलाड़ी सुपरिचित हैं। यूं तो एक अनार के लिये बीमारों की संख्या 39 है, किंतु मुकाबले में मुख्यतः चार खिलाड़ी हैं। ये चार खिलाड़ी हैं: अनेक दलों का समर्थन प्राप्त, निवर्तमान राष्ट्रपति निर्दलीय प्रत्याशी रानिल विक्रमसिंघे, समागी जन बालवेगया के सजिथ प्रेमदासा, श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना के नमल राजपक्षे और जनता विमुक्ति पेरामुना के अनुरा कुमारा दिसानायके। इनमें पांच बार प्रधानमंत्री रह चुके 75 वर्षीय रानिल वरिष्ठतम हैं, जबकि सन 2019 के चुनाव में असफल रहे सजिथ प्रेमदासा और अनुरा दिसानायके क्रमशः 57 और 55 वर्ष के हैं। श्रीलंका की राजनीति में सर्वाधिक प्रभावशाली रहे कुबेर-घराने के नमल की आयु 38 वर्ष है। गौरतलब है कि श्रीलंका की राजनीति में राजपक्षे परिवार को स्वेच्छाचारी और एकाधिकारवादी घराने के तौर पर जाना जाता है। विगत संसदीय चुनाव में उसके पांच सदस्य जीते थे। महिंदा राजपक्षे बने प्रधानमंत्री, अनुज त्रयी गोटबाया राष्ट्रपति, चमल सिंचाई मंत्री, बेसिल वित्तमंत्री और पुत्र नमल खेलमंत्री। सन 2022 में व्यापक जनाक्रोश राजपक्षे परिवार के खानदानी राज के पतन का कारण बना। यूँ तो रानिल सत्ताच्युत गोटबाया राजपक्षे की पसंद थे, लेकिन वक्त ने रानिल पर गोटबाया के भरोसे की चूलें हिला दी है। यही वजह है कि अविश्वास और आशंका के वशीभूत उन्होंने युवा नमल को मैदान में उतार दिया है। लंदन विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक नमल एसएलपीपी का 'पोस्टर ब्वॉय हैं। उनको मिले वोट इस बात का पैमाना होंगे कि अधिनायक-वृत्ति और स्वेच्छाचारिता के बावजूद श्रीलंकन राजपरिवार को कितना पसंद करते हैं? यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है, जिसका उत्तर 21 सितंबर से पहले नहीं मिल सकता। पिछले दो दशकों से श्रीलंका में सता की चाबी राजपक्षे परिवार के हाथों में है। सन 2004 में प्रेसीडेंट चंद्रिका कुमारतुंगा ने महिंदा को पहले-पहल पीएम बनाया था। उसके साल भर बाद महिंदा राष्ट्रपति बने और सन् 2015 तक पदासीन रहे। तीन साल बाद उनका सितारा फिर चमका और सन 2019 से 2022 तक वह फिर पीएम रहे। कोरोना काल के बाद सन 2022 उनके लिये अपशकुनी सिद्ध हुआ। अरागलिया विद्रोह ने राजपक्षे परिवार के पाँवों तले से जमीन खींच ली। एकबारगी लगा कि महिंदा पलायन को बाध्य होंगे, लेकिन कूचे से बेआबरू होकर निकलने की अटकलों-आशंकाओं के बीच उन्हें पूर्वोत्तर प्रांत के नौसैनिक अड्डे त्रिंकोमाली में मुकम्मल सुरक्षा मिल गयी। राजपक्षे घराना फौजी हिफाजत में तबसे वहीं रह रहा है।