राजेश बादल
भारत ने नया जनादेश दे दिया है । परिणामों ने एक्जिट पोल के रुझानों को झटका दिया है। इस चुनाव का जनादेश एक नज़रिए से भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करता दिखाई दे रहा है । भले ही एन डी ए को बहुमत मिला है ,लेकिन परिणामों ने प्रतिपक्ष के लिए संजीवनी का काम किया है। यह संजीवनी प्रजातंत्र के लिए भी है क्योंकि बिना असहमत पक्ष के लोकतंत्र नहीं चलता ।पिछली बार के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को इस मुल्क के मतदाताओं ने जिस शिखर बिंदु पर पहुंचाया था,उसने पार्टी में अहंकार और अधिनायकवादी बीजों को अंकुरित कर दिया था । इन बीजों का असर 2024 के इस चुनाव में भी दिखाई पड़ा ।आप सहमत होंगे कि इसी वजह से यह चुनाव अधिनायक बनाम लोकतंत्र की स्थिति में लड़ा गया ।
प्रतिपक्ष दरअसल पिछले चुनाव में अत्यंत दीनहीन ,दुर्बल और महीन आकार का था ।इसलिए उससे नीचे ,उसके जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता था और भारतीय जनता पार्टी जहां पर थी ,उससे ऊपर जाने की कोई संभावना नहीं थी । जब एन डी ए के नेता अपने प्रचार अभियान में तीन सौ और चार सौ पार का सब्ज़बाग मतदाताओं को दिखा रहे थे तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन अपनी एकता को साबित करने की कोशिशों में जुटा था । एन डी ए का अभियान प्रधानमंत्री के चेहरे पर ही केंद्रित रहा ।बीजेपी कार्यकर्ता अति विश्वास में थे ।यही विश्वास उन्हें झटका दे गया ।
बीजेपी को बड़ा सदमा उत्तरप्रदेश से लगा ।इस विराट महा प्रदेश ने अधिकांश मुद्दों की हवा निकाल दी । न तो राममंदिर निर्माण का जादू चला और न सांप्रदायिक विभाजन काम आया । परिणामों का संकेत यही है कि उत्तर प्रदेश में सुशासन का नारा भी काम नहीं आया ।पार्टी बेरोजगारी,भ्रष्टाचार और मंहगाई जैसी समस्याओं से निपटने में नाकाम रही । बीएसपी के मतदाता वर्ग का छिटकना भी इंडिया गठबंधन के लिए फायदेमंद रहा । बहुजन समाजपार्टी का कट्टर वोट बैंक कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की ओर स्थानांतरित हो गया ।यह पार्टी के लिए बड़ा सबक है ।रही सही कसर पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा के बयानों ने पूरी कर दी ।बिहार में उन्होंने साफ कहा कि छोटे और क्षेत्रीय दलों का कोई भविष्य। नही है ।इससे एन डी ए में शामिल छोटे दल उससे दूर होते चले गए । नड्डा ने दूसरा बयान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को नाराज करने वाला दिया ।उन्होंने कहा कि अब बीजेपी को आर एस एस की जरूरत नहीं है ।इससे संघ भी खफा हो गया ।
वैसे तीसरी बार सरकार एन डी ए की बनने में कोई बाधा नहीं नजर आती ।भारत के चुनाव इतिहास में यह पहला अवसर होगा,जबकि कोई गैर कांग्रेसी सरकार लगातार तीसरी बार काम संभालेगी। कांग्रेस की ओर से सिर्फ़ जवाहर लाल नेहरू यह करिश्मा कर सके हैं।लेकिन 1952 के आम चुनाव का परिदृश्य कुछ और था,जब कि 2024 के भारत की तस्वीर एकदम भिन्न है । वह सदियों की गुलामी से मुक्ति पाया अनगढ़ हिंदुस्तान था।उसे पेशेवर शिल्पी की तरह रचने और लोकतांत्रिक आकार में तराशने का बेहद कठिन काम जवाहरलाल नेहरू ने किया और उन्होंने जो नींव तैयार की,उस पर इमारत खड़ी करने का काम बाद के प्रधानमंत्रियों ने किया।इस कड़ी में जम्हूरियत को और पुख़्ता करने का काम बीजेपी सरकार और उसके नेता नरेंद्र मोदी पर आन पड़ा है।हम उम्मीद करें कि बहत्तर साल पुराना संसदीय प्रजातंत्र भविष्य में और अधिक चमकीला तथा भरोसेमंद साबित होगा ।