छोटा सा ही क्यों न हो दशाश्वमेध घाट वाली मुन्नी देवी को अपने कारोबार पर नाज है। चितरंजन पार्क की उत्तरी सीमा से सटे रंग-बिरंगी छटा वाले स्टाल पर विभिन्न किस्म की मालाएं, कलावा, कड़ा, ग्रह सिद्ध अंगूठी, तांबे-लोहे के ब्रेसलेट, ताबीज, पेंडेंट और न जाने क्या-क्या अरकस बथुआ बेचने वाली मुन्नी अपने धंधे को लेकर बड़ी ही 'ईगोइस्ट' हैं।
छोटा सा ही क्यों न हो दशाश्वमेध घाट वाली मुन्नी देवी को अपने कारोबार पर नाज है। चितरंजन पार्क की उत्तरी सीमा से सटे रंग-बिरंगी छटा वाले स्टाल पर विभिन्न किस्म की मालाएं, कलावा, कड़ा, ग्रह सिद्ध अंगूठी, तांबे-लोहे के ब्रेसलेट, ताबीज, पेंडेंट और न जाने क्या-क्या अरकस बथुआ बेचने वाली मुन्नी अपने धंधे को लेकर बड़ी ही 'ईगोइस्ट' हैं।